-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critic Reviews)
मुंबई 17, बोले तो धारावी का इलाका। झोंपड़पट्टी, कचरापट्टी, गुज़रने को तंग गलियां, रहने को तंग खोलियां,
तंग सोच, तंग दिल। लेकिन यहां रहने वाले मुराद को उठना है, उड़ना है क्योंकि उसे लगता है कि अपना टाइम आएगा। रैप लिखते-लिखते वह गाने भी लगता है। हालांकि उसके मामा का मानना है कि नौकर का बेटा नौकर ईच बनेगा, यही फितरत है। मामी कहती है कि गाना ही है तो ग़ज़ल गा लो। उसका ड्राईवर बाप भी कहता है कि सपने वो देखो जो तुम्हारी असलियत से मैच करते हों। पर मुराद का कहना है कि वह अपनी असलियत बदलेगा ताकि वो उसके सपनों से मैच कर सके।