Sunday 30 August 2020

रिव्यू-सिनेमा की अर्थी उठाती ‘सड़क 2’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
अच्छा बताइए कि आपको मुंबई से कैलाश जाना हो तो आप क्या करेंगे? अब यह मत कहिएगा कि कैलाश तो चीन में है, पासपोर्ट-वीज़ा लगेगा। आप यह बताइए कि जाएंगे कैसे? कम से कम दिल्ली तक तो हवाई जहाज पकड़ेंगे न? लेकिन नहीं हमारी हीरोइन ने मुंबई से ही कार बुक कराई है। वो भी तीन महीने पहले, ठीक उस दिन के लिए जिस दिन के बारे में उसे पता है कि मर्डर के आरोप में जेल में बंद उसका प्रेमी बाहर आ जाएगा। तीन महीने में...! सच्ची...! ऊपर से ये दोनों अपने साथ इतने छोटे बैग लेकर जा रहे हैं जिनमें चार कच्छे-बनियान भी ढंग से न आएं। इससे बड़ा बैग तो दिल्ली की लड़कियां मैट्रो ट्रेन में लेकर घूमती हैं। हां, जेल से बाहर आते समय उस उल्लू, ओह सॉरी, उस प्रेमी के हाथ में एक गिटार और एक उल्लू का पिंजरा ज़रूर है। इस लड़की को कोई मारना चाहता है। पर जब तक अपना टैक्सी-ड्राईवर संजू बाबा उसके साथ है, किस की मज़ाल, जो उसे छू भी सके।

Saturday 29 August 2020

रिव्यू-शो मस्ट गो ऑन सिखाती ‘राम सिंह चार्ली’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
किसी फिल्म का नाम उसके किसी किरदार के नाम पर हो तो अमूमन दो बातें होती हैं। पहली यह कि या तो उसे बनाने वालों के ज़ेहन में ही यह बात साफ नहीं है कि वे क्या कहना चाहते हैं। दूसरी यह कि उन्हें तो पता है लेकिन वे चाहते हैं कि दर्शक खुद समझे कि असल में वे क्या कहना चाहते हैं। यहां पर दूसरी वाली बात है। नितिन कक्कड़ अपनी अब तक की फिल्मों (फिल्मीस्तान, मित्रों, नोटबुक, जवानी जानेमन) से इतना तो बता ही चुके हैं कि कहानी में से मानवीय संवेदनाओं को बारीकी से पकड़ कर उन्हें पर्दे पर उकेरने का गुर उन्हें बखूबी आता है। उनकी यह फिल्म बेशक उनका अब तक का सबसे मैच्योर काम है।

Friday 28 August 2020

बुक रिव्यू-कोरे पन्नों पर लिखी इरफान की दास्तान

-दीपक दुआ...
इरफान सबके चहेते अदाकार थे। उनका काम देख चुके लोग जानते हैं कि उन्होंने कुछ भी कभीनॉनसेंसनहीं किया होगा। अपने काम से ऐसी छवि कम ही कलाकार गढ़ पाते हैं कि उनका नाम या चेहरा सामने आते ही कुछ सार्थक काम का अहसास होने लगे। इरफान से मिल चुके या उन्हें कहीं बातचीत करते देख चुके लोग अक्सर इस बात को चिन्ह्ति करते रहे हैं कि वह असल ज़िंदगी में भी कभीनॉनसेंसनहीं हुए। इस किताब से यह धारणा और मज़बूत होती है जिसमें वरिष्ठ फिल्म आलोचक पत्रकार अजय ब्रह्मात्मज ने इरफान के साथ हुए समय-समय पर हुए अपने कुछ साक्षात्कारों को संकलित किया है।

Monday 24 August 2020

रिव्यू-जीना और जीतना सिखाती है ‘गुंजन सक्सेना’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
एक छोटी बच्ची ने पायलट बनने का सपना देखा। पिता ने हर कदम उसका साथ दिया। पायलट नहीं बन पाई तो उसे एयरफोर्स में जाने को कहा। लेकिन क्या हर कदम पर दुनिया उस लड़की का स्वागत ही करेगी? अपने समाज की तो आदत ही रही है लड़कियों के पंख कतरने की। लेकिन गुंजन लड़ी, लड़ी तो जीती, जीती तो ऐसे कि मिसाल बन गई।

Saturday 22 August 2020

रिव्यू-तंग सोच को ठेंगा दिखाती ‘मी रक़्सम’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
भरतनाट्यम-भारत का डांस। हमाराअपनाडांस। लेकिन अगर कोईपरायाभी इसे करना चाहे तो हम उसे रोकते नहीं हैं। ऐसी ही एकपराईलड़की मरियम और उसके पिता के संघर्षों की कहानी है यह। मां की असमय मौत के बाद किशोरी मरियम का मन हुआ कि वह भरतनाट्यम सीखे। पिता सलीम ने रोका नहीं, उलटे साथ दिया। लेकिन आड़े गए तंग सोच वाले वे लोग जिन्होंने समाज की हर बात का ठेका ले रखा है। हाशिम सेठ के इशारे पर सलीम को उसकेअपनोंने ही दुत्कारना शुरू कर दिया। उधर जयप्रकाश जैसे लोग भी भला कहां खुश थे एकपराईलड़की को यह डांस करते देख कर।