Sunday 26 May 2019

इंटरव्यू-विवान शाह-मेरे अंदर लेखक और एक्टर दोनों हैं

-दीपक दुआ...
विवान शाह 29 बरस के हैं। वह अभिनेता नसीरुद्दीन शाह और अदाकारा रत्ना पाठक शाह के बेटे हैं और महज 21 की उम्र में अपनी पहली फिल्म ‘7 खून माफकर चुके हैं। बावजूद इसके उन्होंने अब तक सिर्फ तीन और फिल्में हैप्पी न्यू ईयर’, ‘बॉम्बे वैल्वेटऔर लाली की शादी में लड्डू दीवानाकी हैं। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि पिछले दिनों उन्होंने अंग्रेजी में लिविंग हैलनाम से एक क्राइम थ्रिलर उपन्यास लिख डाला। उनसे हुई बातचीत के अंश-

Saturday 25 May 2019

रिव्यू-‘बेबी’ का बेबी-संस्करण है ‘इंडियाज़ मोस्ट वांटेड’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Review)
पुणे की जर्मन बेकरी समेत देश में कई जगह बम धमाकों के आरोपी रहे आतंकी यासीन भटकल को नेपाल से पकड़ कर लाने की घटना के इस फिल्मी संस्करण में आई.बी. यानी खुफिया ब्यूरो के उन एजेंटों की कहानी दिखाई गई है जिन्होंने इस काम को अंजाम दिया था। आई.बी. के कारनामों पर हमारी फिल्में ज़्यादा बात नहीं करती हैं। इनका मुख्य काम देश के भीतरी सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करना और देश के अंदरूनी खतरों को भांपना होता है। यह फिल्म बिहार के ऐसे ही कुछ आई.बी. एजेंटों के बारे में दिखाती है जो अपने सीनियर अफसरों की मनाही के बावजूद बिना हथियार, बिना किसी सपोर्ट के टूरिस्ट बन कर नेपाल जाते हैं और वहां से उस आतंकी को पकड़ भी लाते हैं। फिल्म दिखाती है कि किस तरह से कुछ जुनूनी लोग अपनी और अपनों की परवाह किए बगैर, बिना पैसे या शोहरत की इच्छा के, देश की राह में बिछे कांटे उखाड़ते हैं।

Friday 24 May 2019

रिव्यू-भाता है वह ‘मोदी’ तो भाएगी यह ‘मोदी’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Review)
जिस फिल्म का नाम पी एम नरेंद्र मोदीहो और जिसमें करोड़ों लोगों के प्रिय (और करोड़ों के अप्रिय भी) नेता नरेंद्र मोदी की जीवन-यात्रा दिखाई गई हो तो दर्शक उसमें क्या देखना चाहेंगे? इस सवाल के दो जवाब हो सकते हैं। पहला यह कि मोदी-समर्थक इस फिल्म में मोदी की महिमा का मंडन और उनका प्रशस्ति-गान देखना चाहेंगे और दूसरा यह कि मोदी-विरोधी इसे... देखना ही क्यों चाहेंगे? तो कुल जमा निष्कर्ष यह कि जब यह फिल्म देखनी ही मोदी समर्थकों ने है तो इसमें ऐसा कुछ क्यों डालना जो मोदी-विरोधियों को खुश करे? और जब इसे मोदी-विरोधियों ने देखना ही नहीं है तो क्यों इसमें ऐसी चीज़ें भरपूर मात्रा में डाली जाएं जो मोदी-समर्थकों को रास आएं? और जब रास आने वाली चीज़ें ही डालनी हैं तो फिर क्या तो सिर, क्या पैर, क्या तो लॉजिक और क्या तथ्य!

Saturday 18 May 2019

रिव्यू-रिश्तों का रंगीन पंचनामा-‘दे दे प्यार दे’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Review)
18 साल पहले अपने बीवी-बच्चों को छोड़ कर लंदन बसे 50 साल के बुड्ढेहीरो को एक 26 साल की लड़की मिलती है। शुरूआती लुका-छुपी के बाद ये दोनों शादी करने को राज़ी हो जाते हैं। हीरो उसे इंडिया में अपनी फैमिलीसे मिलवाने लाता है। दिक्कत यहां आकर शुरू होती है। हीरो की बेटी और बाप उसे दुत्कारते हैं। हीरो का बेटा अपनी होने वाली मांपर ही फिदा हो जाता है। हीरो की बीवी और हीरो की होने वाली बीवी के बीच एक अघोषित जंग छिड़ जाती है। हीरो बेचारा अब असमंजस में है कि पुराने रिश्ते निभाए या नए रिश्ते को थामे।