Friday 23 March 2018

रिव्यू-च्च...च्च...‘हिचकी’, वाह...वाह...‘हिचकी’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
एक नामी स्कूल। होशियार बच्चे। काबिल टीचर। कुछ बच्चे नालायक। वे पढ़ना चाहते हैं उन्हें कोई पढ़ाना चाहता है। एक नया टीचर आता है। बाकियों से अलग। पढ़ाने का ढंग भी जुदा। नालायक बच्चे उसे भगाने की साज़िशें करते हैं। लेकिन वह डटा रहता है, टिक जाता है और उन्हीं नालायक बच्चों को होशियार बना देता है।

Friday 16 March 2018

रिव्यू-ऐसी ‘रेड’ ज़रूर पड़े, बार-बार पड़े

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
फिल्म वाले अक्सर स्यापा करते हैं कि उनके पास नई और अच्छी कहानियां नहीं हैं। कैसे नहीं हैं? पुराणों-पोथियों को बांचिए, अपने आसपास की दुनिया को देखिए, बीते दिनों के अखबारी पन्नों को पलटिए तो जितनी कहानियां इस मुल्क में मिलेंगी उतनी तो कहीं मिल ही नहीं सकतीं। आखिर (एयरलिफ्ट’, ‘पिंकसमेत कई फिल्में लिख चुके) रितेश शाह भी तो इन्हीं पन्नों से यह कहानी निकाल कर लाए ही हैं न।

Sunday 11 March 2018

रिव्यू-‘हेट स्टोरी’... आंखें सेंक लो थोड़ी

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
जब खुद (महेश, मुकेश, विक्रम) भट्टों के भट्ठे से एक ही तरह की घिसी-पिटी, कच्ची-पक्की ईंटों जैसी फिल्में रही हों तो उनके चेले विशाल पंड्या से ज्यादा बड़ी उम्मीदें भला क्यों लगाई जाएं? वैसे भी हेट स्टोरीसीरिज़ की फिल्मों का तय फाॅर्मूला है-किसी की हेट वाली स्टोरी में किसी की हाॅट वाली बाॅडी का खुल्लम-खुल्ला दर्शन। दर्शक भी इनके तय ही हैं जो बिना हमारी-आपकी तरह चूं-चां किए इन फिल्मों को पचा लेते हैं। हां, अभी तक की फिल्मों में थोड़ी कायदे की कहानी और सलीके के एक्टर हुआ करते थे, इस बार ये सब नहीं है तो क्या हुआ। एक बार दुकान चल जाने के बाद जरूरी तो नहीं कि माल की क्वालिटी वही पुरानी वाली रखी जाए?

Saturday 3 March 2018

रिव्यू-‘परी’-कथा नहीं व्यथा है

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
किसी हाॅरर फिल्म से आखिर हमें क्या उम्मीद होती है? यही कि उसमें कोई बुरी आत्मा होगी जो किसी के शरीर में घुस जाएगी। फिर वो उसे और उसके आसपास वालों को चैन से जीने नहीं देगी। कोई तांत्रिक, ओझा, पंडित, पादरी टाइप का बंदा आएगा। तंतर-मंतर होंगे, खून-खराबा होगा, फिर सब सही हो जाएगा। चलते-चलते एक सीन ऐसा भी आएगा कि फिल्म का सीक्वेल बन सके।