Saturday 29 September 2018

रिव्यू-‘सुई धागा’ में सब बढ़िया है

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
दिल्ली से सटा यू.पी. का कोई कस्बा। एक बिल्कुल ही आम परिवार। अभावों से जूझता। रहने को ढंग की जगह, सुविधाएं, जेब भर पैसा, कायदे का काम। फिर भी सब बढ़िया है। बीवी ममता के कहने पर मौजी भैया नौकरी छोड़ कर लग गए अपना ही कुछकरने। ढेरों अड़चनें आईं। कुछ अपनों ने साथ छोड़ा तो कुछ परायों ने हाथ बंटाया। लेकिन हिम्मत हारी दोनों ने और जुटे रहे। अंत में तो इन्हें जीतना ही हुआ।

अभावग्रस्त और बिल्कुल नीचे से उठ कर कुछ बड़ा हासिल करने की अंडरडॉगकिस्म की कहानियां दर्शकों को हमेशा से लुभाती रही हैं। लेकिन यह कहानी सिर्फ मौजी और ममता की ही नहीं है। उनकी हिम्मत, संघर्ष, मेहनत से कुछ बड़ा हासिल करने की ही नहीं है। बल्कि यह अपने भीतर और भी बहुत कुछ ऐसा समेटे हुए है जिसके बारे में मुख्यधारा का सिनेमा आमतौर पर बात नहीं करता है। या कहें कि बॉक्स-ऑफिस के समीकरण उसे ऐसा करने से रोकते हैं।

रिव्यू-‘पटाखा’ फूटा मगर धीमे से

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
अगर आप विशाल भारद्वाज की फिल्मों के फैन हैं तो आपने इस फिल्म का ट्रेलर जरूर देखा होगा। और अगर आपने इस फिल्म का ट्रेलर देखा है तो आपको इंटरवल तक की फिल्म देखने की बिल्कुल जरूरत नहीं है। जी हां, इंटरवल तक की फिल्म के सारे अहम दृश्य ट्रेलर में चुके हैं। आप चाहें तो इंटरवल तक एक अच्छी नींद ले सकते हैं। अब रही बात इंटरवल के बाद की। तो यह हिस्सा भी आपको तभी पसंद आएगा जब आपके अंदर विशाल भारद्वाज की फिल्मों के लिए मजनू-रांझा वाली दीवानगी हो। वरना इस दौरान भी आप सो सकते हैं। अब पैसे खर्च के थिएटर में सोने ही जाना है, तो आपकी मर्जी।

Thursday 27 September 2018

यात्रा-नसीरुद्दीन शाह की आवाज़ गूंजती है आगरा के किले में

-दीपक दुआ...
सूरज ढलने के बाद किसी किले में बैठ कर लाइट एंड साउंड शो के जरिए वहां के इतिहास से रूबरू होना मुझे हमेशा से भाता रहा है। आगरा के किले में रोज़ाना शाम होने वाले लाइट एंड साउंड शो के बारे में काफी सुना था। कई बार आगरा जाना हुआ लेकिन इस शो को देखने का वक्त नहीं निकल पाया। इस बार वहां गए तो पहले ही दिन सूरज ढलने से पहले हम लोग वहां पहुंच गए। सोचा, कुछ खा-पीकर अंदर चलेंगे। लेकिन किले के बाहर सिवाय एक गंदे-से ढाबे, दो-एक आइस्क्रीम, कोल्ड-ड्रिंक के ठेलों और एक गोलगप्पे वाले के, और कुछ भी नहीं था। पहले यहां कई ढाबे हुआ करते थे लेकिन अब प्रशासन ने उन्हें हटा दिया है। अब इस जगह पर यू.पी. टूरिज़्म या आगरा प्रशासन कोई कैफेटेरिया, रेस्टोरेंट वगैरह भी तो बना सकता है। खैर...!