Sunday 4 February 2018

सोच बदलती हैं ‘पैडमैन’ जैसी फिल्में-राकेश चतुर्वेदी


-दीपक दुआ...
दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से अभिनय का पाठ पढ़ कर मुंबई पहुंचे अभिनेता राकेश चतुर्वेदी उन चंद लोगों में शुमार हैं जिन्होंने फिल्मों से जुड़ने और मुंबई में एक लंबा समय बिताने के बाद भी थिएटर से नाता नहीं तोड़ा है। नसीरुद्दीन शाह के थिएटर ग्रुप मोटलीके प्रमुख अभिनेताओं में गिने जाने वाले राकेश परजानियामें काम कर चुके हैं और बतौर निर्देशक भी वह दो फिल्में बोलो रामऔर भल्ला एट हल्ला डॉट कॉम बना चुके हैं। लेकिन अभिनय की भूख उन्हें बार-बार कैमरे के सामने ले आती है। अब वह अक्षय कुमार वाली फिल्म पैडमैनमें नजर आएंगे। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
-‘पैडमैनके बारे में बताएं। आपका इसमें क्या किरदार है और उस किरदार की इस कहानी में कितनी अहमियत है?
-यह आर. बाल्की की फिल्म है जो चीनी कमऔर पाजैसी यादगार फिल्में बना चुके हैं। यह एक ऐसे इंसान अरुणाचलम मुरुगानंथम के जीवन पर आधारित फिल्म है जिसने महिलाओं के लिए सस्ते सैनेटरी नैपकिन बनाने की दिशा में बहुत ही महत्वपूर्ण काम किया था। अक्षय कुमार इस कहानी के नायक हैं और मैं इसमें एक प्रोफेसर का किरदार निभा रहा हूं। यह किरदार छोटा है लेकिन इसकी अहमियत यह है कि यह अक्षय के जीवन में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक घटना की वजह बनता है।
-आपको लगता है कि एक छोटे-से रोल में आने के बावजूद यह फिल्म आपको बतौर एक कलाकार फायदा पहुंचाएगी?
-मुझे पूरी उम्मीद है कि ऐसा होगा क्योंकि यह किरदार इस कहानी के चंद अहम टर्निंग प्वाईंट्स में से एक है और मुझे लगता है कि जब दर्शक यह फिल्म देख कर निकलेंगे तो उन्हें मेरा किरदार भी जरूर याद रहेगा।
-टॉयलेट या सैनेटरी नैपकिन जैसे वर्जित समझे जाने वाले विषयों पर मनोरंजक फिल्में बनने से लोगों की सोच पर कितना असर पड़ता है?
-जब ऐसे विषयों पर बड़े सितारे फिल्म लेकर आते हैं तो उसका असर जरूर पड़ता है। लोग इन विषयों के बारे में सोचने लगते हैं, बात करने लगते हैं और कहीं कहीं एक खुलापन आने लगता है। मुझे लगता है कि धीरे-धीरे ही सही लेकिन इस तरह की फिल्में समाज की सोच को बदलने का और समाज को आगे लेकर जाने का काम करती हैं।
-और कौन-सी फिल्में कर रहे हैं?
-दो फिल्में पूरी हो चुकी हैं। एक का नाम है धूर्तऔर दूसरी है अदृश्य इनके अलावा एक बहुत बड़े बैनर की एक बहुत बड़ी फिल्म कर रहा हूं जिसका नाम मैं अभी नहीं बता सकता।
-बतौर निर्देशक अपनी अगली फिल्म कब शुरू करेंगे?
-बहुत जल्दी। यह फिल्म मई तक पूरी हो जाएगी जिसमें मैं काम कर रहा हूं, उसके बाद अपनी ही फिल्म शुरू करूंगा।
-थिएटर आप लगातार किए जा रहे हैं?
-थिएटर में मेरी जड़ें हैं, मेरा खाद-पानी सब मुझे थिएटर से ही मुझे मिलता है। मुझे नहीं लगता कि मैं थिएटर कभी छोड़ पाऊंगा।

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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