Thursday 26 March 2020

वेब-रिव्यू : इंसानी मन के अंधेरों को दिखाती ‘असुर’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
आज की दिल्ली में एक सीरियल किलर का आतंक है। वह चुन-चुन कर उन लोगों को मार रहा है जो भले हैं, परोपकारी हैं। हर कत्ल का एक ही पैटर्न। सीबीआई के दिग्गज फॉरेंसिक और अपराध-विज्ञान में एक्सपर्ट लोग भी लाचार। क्यों...?
11 बरस पहले बनारस में एक लड़के ने अपने पिता को मार डाला। गजब लड़का। पन्ने पलटते-पलटते किताबें याद कर लेता। ज़बर्दस्त मेधावी लेकिन पिता उसे असुर कहते थे। क्यों...?
क्या वही लड़का ये सारे कत्ल कर रहा है? क्या वह अकेला है या उसकी कोई टीम है? और क्या वह सचमुच कत्ल कर रहा है या फिर धरती से अच्छाई को मिटा रहा है ताकि कोई अवतार आए और वह उससे भिड़े...?

अच्छाई-बुराई, नेकी-बदी, सुर-असुर का टकराव युगों-युगों से होता आया है, होता रहेगा। वूट सलैक्ट की यह नई वेब-सीरिज़ असुरइसी बात को फिर से रेखाकिंत करती है। भारतीय वेब-सीरिज़ कंटेंट के मामले में लगातार कुछ अलग और उम्दा कर रही हैं। खासतौर से थ्रिलर के मामले में। इस सीरिज़ की कहानी अपने अनोखे, रहस्यमयी और आध्यात्मिक पहलुओं के चलते ज़्यादा आकर्षित करती है और शुरू से ही ऐसा बांध लेती है कि आपको हर अगले पल में होने वाली घटनाओं के इंतज़ार के साथ-साथ यह जानने की उत्सुकता भी लगातार बनी रहती है कि आखिर यह सब क्यों और कैसे हो रहा है। किस के इशारे पर हो रहा है, यह आभास हो जाने के बावजूद आखिरी वक्त तक सस्पेंस बना रहता है और राज़ खुलने के बाद रोमांच कम डर ज्यादा लगता है कि अगले सीज़न में तो और भी बुरा हो सकता है। अच्छाई और बुराई की लड़ाई को जिस तरह से धार्मिक ग्रंथों के हवाले से बताया-दिखाया गया है उससे यह कहानी आपके अंतस में उतरती है और कहीं-कहीं डर भी पैदा करती है कि कहीं हम अच्छाई और नेकी की राह पर चल कर गलत तो नहीं कर रहे? पाप कम होगा तो कोई अवतार कैसे जन्मेगा?

गौरव शुक्ला और उनके साथी लेखकों ने लगभग पूरे आठ एपिसोड में अपनी कलम से पकड़ बनाए रखी है। कहीं-कहीं टाइम लाइन गड़बड़ाती है। इक्का-दुक्का चीज़ें गैरज़रूरी भी लगती हैं। कुछ एक जगह चीज़ें एकदम फिल्मीभी हुई हैं। ऐसे में कुछ सवालों के जवाब नहीं मिलते। कातिल हर मरने वाली की तर्जनी क्यों काट लेता है? अंत सचमुच कमज़ोर है। लगता है कि अगले सीजन की गुंजाइश खुली रखने के चक्कर में इसे जल्दबाज़ी में निबटा दिया गया। निर्देशक ओनि सेन दृश्यों की बनावट और बुनावट से प्रभावित करते हैं। कैमरा और बैकग्राउंड म्यूजिक मिल कर कहानी के असर को गाढ़ा करते हैं।
 
अरशद वारसी अपने सधे हुए अभिनय से बेहद प्रभावी रहे हैं। बरुण सोबती, अनुप्रिया गोयनका, रिद्धि डोगरा, अमय वाघ समेत बाकी कलाकार भी उम्दा रहे हैं। शारिब हाशमी बेहद विश्वसनीय लगे हैं। उन्हें देख कर लगता ही नहीं कि वह कैमरे के सामने हैं।न्यूज़ एंकर के तौर पर दिखीं भावना मुंजाल सहज लगती हैं। यह अच्छा है कि टी.वी. एंकर के तौर पर असल एंकर को ही दिखाया जाए। रोमांच और रहस्य में लिपटी आध्यात्मिकता वाली बातों के साथ कुछ डार्क देखना अच्छा लगता हो तो यह सीरिज़ आपको बहुत पसंद आएगी। 
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सिरीज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

3 comments:

  1. देखनी पड़ेगी...तब पता चलेगा इस समीक्षा का अर्थ

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  2. अंत सचमुच कमज़ोर है।

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  3. शुरुआत बहुत अच्छी थी शुभ जोशी टाइप के लोग रियलिटी में होते है क्या इस व्यस्त जिंदगी में कुंडली नक्षत्र क्या ऐसा होता है शुरुआत के चार एपिसोड अच्छे रहे बाकी के इसलिए बकबास लगे चाहे कोई भी हो कितना भी बड़ा क्रिमिनल हो इंटेलीजेंस से ज्यादा सुविधाएं उसके पास नही होंगी सारी की सारी इंटेलीजेंस फेल हो गई एक 20 साल के लड़के के सामने और तो और उसने हर जगह अपने लोग स्थापित कर दिए बिना किसी सोर्स के....

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