2004 का बगदाद। इराक में अमेरिकी-ब्रिटिश सेना को घुसे हुए साल भर हो चुका है। राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन के पकड़े जाने के बावजूद ये लोग यहां जमे हुए हैं। यहां रह रहे ज़्यादातर भारतीय अपने देश को लौट चुके हैं मगर नेपाली पासपोर्ट पर यहां पहुंचे मदन तिवारी का परिवार यहीं फंसा हुआ है। बम धमाके, गोलीबारी इनके लिए आम है। मदन के बेटे चिंटू का आज बर्थडे है। सारी तैयारियां हो रही हैं कि तभी हो-हल्ला शुरू हो जाता है। एक बम फटता है और तफ्तीश के लिए दो फौजी इनके यहां घुस आते हैं।
Sunday, 28 June 2020
Saturday, 27 June 2020
रिव्यू-धीमे-धीमे कदम बढ़ाती ‘भोंसले’
-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
मुंबई शहर। गणपति उत्सव के लिए मूर्तियां सज रही हैं। दूसरी तरफ पुलिस कांस्टेबल
गणपत भोंसले रिटायर हो रहा है। वह अकेला है, नितांत अकेला। जिस सस्ती-सी, पुरानी चाल में वह रहता
है वहां बसे मराठियों को लगता है कि मुंबई सिर्फ उनकी है और यू.पी.-बिहार से आए ये ‘भैये लोग’ जबरन यहां घुसे चले आ रहे हैं।
टैक्सी-ड्राईवर विलास अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए भोंसले भाऊ को ‘अपनी तरफ’ खींचना चाहता है। उधर उत्तर भारतीय
संघ वाले भी डटे हुए हैं। लेकिन भोंसले पर अपने आसपास की हरकतों का कोई खास असर नहीं
होता। मगर एक दिन कुछ ऐसा होता है कि वह कदम उठाने को मजबूर हो जाता है।
Sunday, 14 June 2020
रिव्यू-जब कहानी ‘चोक्ड’ हो और कुछ न बोले
मुंबई। पति बेरोज़गार संगीतकार। गाना छोड़ चुकी पत्नी बैंक की नौकरी से घर चला रही है। एक बच्चा। हालत तंग, आमदनी सीमित, प्यार गायब। किचन की नाली बार-बार चोक हो जाती है। एक रात उस नाली में से नोटों के बंडल निकलते हैं। अगली रात फिर। पत्नी खुश। पर कुछ ही दिन में सरकार नोटबंदी लागू कर देती है। पुराने नोट अब नहीं चलेंगे। अब क्या हो? किस के हैं ये नोट? क्या होगा लोगों का, नोटों का, इस परिवार का?
Friday, 12 June 2020
रिव्यू-नमक नींबू की कमी से नीरस होती ‘गुलाबो सिताबो’
लखनऊ की एक बहुत पुरानी हवेली फातिमा महल। एकदम खंडहर। उसकी उतनी ही पुरानी मालकिन-95 बरस की फातिमा बेगम। उनका 78 बरस का शौहर मिर्ज़ा-एकदम खड़ूस, कंजूस, नाकारा और सनकी। इस हवेली में रहते पांच किराएदारों के परिवार। ये मिर्ज़ा से परेशान, मिर्ज़ा इनसे परेशान। इनमें से ही एक है बांके जिसके साथ मिर्ज़ा की हरदम तू-तू-मैं-मैं लगी रहती है। मिर्ज़ा इस हवेली को बेगम से हड़पना चाहता है तो वहीं किराएदार चाहते हैं कि उन्हें भी कुछ मिल जाए। इस पकड़म-पकड़ाई में कभी मिर्ज़ा आगे तो कभी बांके एंड पार्टी।
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