Saturday, 3 March 2018

रिव्यू-‘परी’-कथा नहीं व्यथा है

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
किसी हाॅरर फिल्म से आखिर हमें क्या उम्मीद होती है? यही कि उसमें कोई बुरी आत्मा होगी जो किसी के शरीर में घुस जाएगी। फिर वो उसे और उसके आसपास वालों को चैन से जीने नहीं देगी। कोई तांत्रिक, ओझा, पंडित, पादरी टाइप का बंदा आएगा। तंतर-मंतर होंगे, खून-खराबा होगा, फिर सब सही हो जाएगा। चलते-चलते एक सीन ऐसा भी आएगा कि फिल्म का सीक्वेल बन सके।

पहले रामसे भाइयों और इधर विक्रम भट्ट ने हमें हाॅरर फिल्मों के नाम पर जो अफीम चटाई है उसके नशे में हम किसी हाॅरर फिल्म से इससे कुछ हट कर दिखाने की उम्मीद भी नहीं करते हैं। यही कारण है कि अपने यहां हाॅरर के नाम पर सुपरनेचुरल चीजें ही ज्यादा आती हैं, साइक्लाॅजिकल नहीं। कोई रामगोपाल वर्मा इस रास्ते पर चलना भी चाहता है तो किनारे कर दिया जाता है। खैर, अनुष्का शर्मा की यह फिल्म परीहमें एक अलग ही दुनिया में ले जाती है जिसमें सुपरनेचुरल बातें होने के बावजूद इंसानी पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया गया है।

बतौर निर्माता अनुष्का शर्मा अभी तक की अपनी तीनों फिल्मों-एन.एच.10’, ‘फिल्लौरीऔर अब परीसे अपनी एक अलहदा जमीन तलाश रही हैं। स्वाभाविक है कि इस तलाश में उन्हें ठोकरें भी मिलेंगी लेकिन उनकी इस हिम्मत की तारीफ बनती है कि मसाला सिनेमा के पाले से आने के बावजूद वह एक अनदेखे, अनजाने मैदान में पांव टिकाने की कोशिशें कर रही हैं।

प्रोसित राॅय के निर्देशन में संभावनाएं दिखती हैं। अनुष्का शर्मा अपने अभिनय से प्रभावित करती हैं तो प्रमब्रत चटर्जी अंडरप्ले करते हुए असर छोड़ते हैं। रजत कपूर, ऋताभरी चक्रवर्ती, दिब्येंदु भट्टाचार्य तमाम दूसरे कलाकार उम्दा काम करते दिखे हैं। कैमरे के एंगल्स और बैकग्राउंड म्यूजिक से अपेक्षित असर सामने पाया है। कोलकाता शहर की बारिश भी इसमें एक किरदार के तौर पर दिखती है और जेहन में बाकी रह जाती है।

इस फिल्म की कहानी आम दर्शकों के लिए थोड़ी क्न्फ्यूजन भरी हो सकती है। डराने वाले दृश्यों से ज्यादा दहलाने वाले दृश्यों का होना भी हाॅरर पसंद करने वालों को अखर सकता है। कहानी का ट्रीटमैंट लीक से हट कर है और मुमकिन है नींबू-मिर्ची की आदत लगा बैठे दर्शकों को यह पसंद आए। लेकिन अगर सचमुच हाॅरर के दायरे में कुछ हट कर देखने का मन हो, कुछ मैच्योर किस्म का समझ में आता हो तो यह फिल्म आपको पसंद आएगी और याद भी रहेगी।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

6 comments:

  1. Apke hat ke kehne ke andaz ne hi movie ko dekhne layak bana dia...Thank u sir

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  2. Apka review padd kr is film ko dekhne ki ikchha or bad gai h... Thank u sir for ur sensible review.....

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