-दीपक दुआ...
‘बाला, ओ बाला, ओ बाला...!’
अरे नहीं-नहीं, अक्षय बहुत समर्पित कलाकार हैं, गंजे ही हुए होंगे। और अक्षय ही क्यों, ‘बाला’ में आयुष्मान खुराना और ‘उजड़ा चमन’
में सन्नी सिंह ने तो जरूर इन फिल्मों के लिए अपना सिर खाली किया होगा।
इस तरह की ढेरों बातें आपके जेहन में भी आती होंगी। दरअसल सच यह है कि ये सब मेकअप का ही कमाल है। लेकिन ऐसा कैसा मेकअप, कि वह कहीं से भी मेकअप नहीं लग रहा है? दरअसल मेकअप की इस आधुनिक विधा को हम प्रोस्थेटिक के नाम से जानते हैं और अब सिर्फ हॉलीवुड में ही नहीं बल्कि अपने यहां भी इस कला का खुल कर इस्तेमाल हो रहा है। बहुत सारे ऐसे प्रोस्थेटिक आर्टिस्ट हैं जो हिन्दी समेत तमाम भारतीय फिल्मों में कलाकारों को उनके किरदारों के मुताबिक इस तरह से बदल रहे हैं कि न सिर्फ दर्शक बल्कि खुद वे कलाकार भी अचंभित रह जाते हैं कि उन्हें क्या से क्या बना दिया गया। जल्द आ रही ‘बाला’ में आयुष्मान खुराना और ‘उजड़ा चमन’
में सन्नी सिंह के टकले वाले लुक को देख कर कहीं से भी यह नहीं लगता कि यह प्रोस्थेटिक का कमाल है। खास बात यह है कि ‘हाऊसफुल 4’ हो, ‘बाला’,
‘उजड़ा चमन’ या पिछले दिनों आई ‘छिछोरे’ में तमाम प्रमुख कलाकारों का अधेड़ उम्र वाला मेकअप,
इन्हें करने का श्रेय जाता है राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुकीं मेकअप आर्टिस्ट प्रीतिशील सिंह को।
1983 में पंजाब के पठानकोट में जन्मीं प्रीतिशील को पांच साल तक बतौर इलैक्ट्रिकल इंजीनियर काम करने के दौरान लगातार यह लगता रहा कि वह गलत रास्ते पर हैं। तब उन्होंने सब छोड़-छाड़ कर अमेरिका की टिकट कटाई और वहां से उन्होंने जो सीखा, उसका नतीजा यह निकला कि पंजाबी फिल्म ‘नानक शाह फकीर’
के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ट मेकअप आर्टिस्ट का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया। उसके बाद तो जैसे गाड़ी चल निकली। ‘तलवार’,
‘बाजीराव मस्तानी’, ‘हाऊसफुल 3’,
‘रंगून’, ‘पद्मावत’, ‘शिवाय’,
‘मुल्क’, ‘पी एम नरेंद्र मोदी’
जैसी ढेरों फिल्मों के कलाकारों पर अपनी कलाकारी दिखा चुकीं प्रीतिशील खुद को लुक-डिजाइनर कहलवाना पसंद करती हैं। वह कहती हैं कि यह काम बहुत ही धैर्य का है जिसमें डिजाइनर और कलाकार, दोनों को घंटों तक साधना करनी होती है तब कहीं जाकर मनचाहा लुक मिल पाता है।
आने वाली ढेरों बड़े बजट की फिल्मों में प्रीतिशील का काम देखने को मिलेगा। साथ ही वह कैरेक्टर डिजाइनिंग का एक स्कूल भी शुरू करने जा रही हैं ताकि यहां के मेकअप आर्टिस्ट को विदेशों की बजाय यहीं पर ही सारी ट्रेनिंग दी सके।
(मेरा यह आलेख ‘हिन्दुस्तान’
में 10 नवंबर,
2019 को प्रकाशित हो चुका है।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
बेहतरीन आलेख सर 💐
ReplyDeleteशुक्रिया... आभार...
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