
Sunday, 31 May 2020
रेट्रो रिव्यू-किताब में मिले किसी सूखे फूल-सी नाज़ुक ‘96’

Sunday, 24 May 2020
बुक रिव्यू-कलम तोड़ ‘बाग़ी बलिया’
-दीपक दुआ...

Saturday, 16 May 2020
ओल्ड रिव्यू-सच के जुदा चेहरे दिखाती ‘तलवार’
15-16 मई,
2008 की उस रात दिल्ली से सटे नोएडा के जलवायु विहार के उस फ्लैट में सचमुच क्या हुआ था, यह या तो मरने वाले जानते थे या मारने वाले जानते हैं। सालों तक चली तहकीकात में कुछ भी सामने नहीं आया। या फिर आने नहीं दिया गया? कहते हैं कि सच के कई चेहरे होते हैं। 14 साल की आरुषि और उसके अधेड़ उम्र नौकर हेमराज के कत्ल के बाद ऐसे कई चेहरे सामने आए और जिस को जो चेहरा माफिक लगा,
उसने उसी को अपना लिया। इस फिल्म के आने से पहले क्राइम जर्नलिस्ट अविरूक सेन की किताब ‘आरुषि’ को पढ़ने के बाद यह उम्मीद जगी थी कि थोड़ी-सी मेहनत और की गई होती तो इस केस का चेहरा कुछ और होता और काफी मुमकिन है कि अपनी ही मासूम बेटी और अधेड़ नौकर के कत्ल का आरोप झेल रहे तलवार दंपती बेदाग होते।
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