Saturday, 17 December 2016

रिव्यू-इस कचरे की 'वजह तुम हो'

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
अब यह मत कहिएगा कि आपने कचरा परोसने वाली फिल्मों को पसंद नहीं किया था, उन्हें तगड़ी कमाई नहीं करवाई थी। और यह तो तय है कि कचरे वाली फिल्मों से कमाए गए पैसों से फिर कचरे वाली फिल्में ही बनेंगी। तो जनाब, अगर ऐसी फिल्में बन रही हैं तो इसकी वजह सिर्फ आप ही हैं।

एक टी.वी. चैनल पर किसी का लाइव मर्डर प्रसारित हो तो जाहिर है कि पहला शक उस चैनल के मालिक पर जाएगा। लेकिन जिस पर शक जाए, वह तो कातिल होता ही नहीं है। तो फिर किसी दूसरे पर शक जाएगा। और अगर दूसरा भी अपराधी निकले तो? अजी तीसरा, चौथा, कोई तो पकड़ में आएगा ही।

इस किस्म की किसी सस्पेंस-थ्रिलर फिल्म में कातिल कौनकी गुत्थी को सुलझते हुए देखना सचमुच दिलचस्प होता है और इस फिल्म में भी इसे कायदे से परत-दर-परत सुलझाया गया है। लेकिन दिक्कत तब आती है जब बनाने वाले इसे जबरन एक सैक्स-थ्रिलर बनाने पर उतारू हो जाएं। कहां तो आप दिमाग लगा रहे हैं कि अब क्या होगा, कौन होगा कातिल, कैसे करेगा वह अगला कत्ल और कहां बीच में जाते हैं नंगई से भरे सीन, एक-दूसरे के शरीर को मसलते हीरो-हीरोइन और वह भी बिना वजह।

किरदारों को कायदे से गढ़ा ही नहीं गया। जिस पुलिस अफसर को आप पर्दे पर धांसू डायलॉग मारते देखते हैं, दिमागदार समझते हैं, वह असल में अपने हर कदम पर बुरी तरह से नाकाम होता जाता है। फिर इस फिल्म की स्क्रिप्ट एकदम पैदल है। ढेरों ऐसे सीन हैं जिन्हें देख कर आप अपने हाथों को अपने ही सिर के बाल नोचने से रोकते हैं। हां, इन दृश्यों का मजाक उड़ाते हुए इस फिल्म को देखा जाए तो यह कहीं ज्यादा मजा देंगे।

ऊपर से इस फिल्म के कलाकार...उफ्फ...! एक शरमन जोशी को छोड़ कोई भी तो एक्टिंग नहीं जानता। सना खान जैसी नायिकाएं एक्टिंग भले ही ढंग से करें, कामुक दिखने और खुल कर पर्दे को गर्माने का काम अच्छे से करना जानती हैं।

फिल्म के गाने बेहद बोर हैं। तीन गानों में तो पुराने गानों को ही रीमिक्स किया गया है जो झुलाते कम और खिजाते ज्यादा हैं। हां, गर्माते जरूर हैं।

विशाल पंड्या को अब भट्ट कैंप स्टाइल ऑफ फिल्ममेकिंगसे ऊपर उठ जाना चाहिए। कब तक वह कचरे पर परफ्यूम छिड़क कर दर्शकों को बरगलाते रहेंगे?
अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार

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