पिछली वाली ‘फोर्स’ के पांच साल बाद आए इस सीक्वेल में कहानी पांच साल बाद की ही है। ए.सी.पी. यशवर्द्धन (जॉन अब्राहम) अब पहले से ज्यादा चुप्पा, ज्यादा सख्त और ज्यादा ‘सटकेला’ हो चुका है। चीन में छुप कर काम कर रहे भारत के एजेंट एक-एक कर मारे जा रहे हैं। गद्दार कोई अंदर का ही आदमी है। मरते-मरते एक एजेंट अपने दोस्त यश को एक हिंट दे जाता है। यश रॉ की अफसर के.के. (सोनाक्षी सिन्हा) के साथ हंगरी जाकर उस गद्दार को ढूंढ भी निकालता है। लेकिन बाजी लगातार पलटती रहती है।
पर्दे का खलनायक बदल रहा है। अब हमारी लड़ाई पाकिस्तान नहीं, चीन के साथ है। बदले माहौल की झलक फिल्म और इसके संवादों में आती है तो दर्शक इससे खुद को जोड़ पाते हैं। अरुणाचल प्रदेश में चीन के घुस आने का जिक्र है और जाॅन का यह संवाद भी कि ‘सर वक्त बदल गया है, अब हम अंदर घुस कर मारते हैं।’ साफ है कि लेखक आसपास की दुनिया से बेखबर नहीं है। दर्शकों को पर्दे पर यही तो चाहिए-लफ्फाजी नहीं, मुद्दे की बात करो।
इस किस्म की एक्शन-थ्रिलर फिल्मों में जिस कसावट, पैनेपन और रफ्तार की जरूरत होती है, वह इस फिल्म में पहले ही सीन से है। चीन में एजेंटों के मारे जाने की सीक्वेंस हो या इधर मुंबई में यश का एंट्री-सीन, सब ऐसे धारदार हैं कि आप दम साधे देखते हैं और कम से कम इंटरवल तक तो एक पल के लिए भी पर्दे से नजर नहीं हटा पाते। डायरेक्टर अभिनय देव ने लगभग पूरी फिल्म को सलीके से संभाला है। सैकिंड हॉफ में चंद पलों के लिए फिल्म धीमी पड़ती है लेकिन जल्द संभल भी जाती है। हालांकि यह कमियों से भी अछूती नहीं है। थ्रिलर फिल्म में आप अतार्किक नहीं हो सकते। एक-दो जगह यह फिल्म तर्क छोड़ कर ‘फिल्मी-सी’ हुई है लेकिन इसकी तेज गति आपको इन बातों पर ध्यान देने का मौका नहीं देती। अंत जरूर कमजोर है क्योंकि दुनिया भर में कोई भी सरकार अपने जासूसों की पोल खुलने पर उन्हें न तो स्वीकारती है न स्वीकारेगी, भले ही कैसे भी दबाव हों।
मुंह की बजाय हाथ-पैरों से बात करने वाले इस किस्म के किरदारों में जॉन जंचते आए हैं और यहां भी वह पूरी फॉर्म हैं। सोनाक्षी सिन्हा कुछ एक जगह बेबस दिखी हैं लेकिन वह भी अपनी भूमिका में फिट लगी हैं। ताहिर राज भसीन का बेफिक्र अंदाज उनकी कुटिलता को और निखारता है। एक्शन सीन बहुत ही बढ़िया तरीके से कंपोज़ किए गए हैं और इसमें कैमरे ने भी बखूबी साथ निभाया है। हालांकि ये सीक्वेंस काफी लंबे हैं लेकिन एक्शन और थ्रिल के चाहने वालों को यह बोर नहीं करते। गाने फिल्म में हैं नहीं। ‘मि. इंडिया’ के ‘काटे नहीं कटते ये दिन ये रात...’ का एक नया वर्जन जरूर है जो असल में ‘नैनसुख’ के लिए डाला गया है।
इस फिल्म में रोमांस नहीं है, इमोशंस नहीं है, कॉमेडी भी नहीं है। इनकी गुंजाइश थी भी नहीं। फिल्म मुख्यतः एक्शन और थ्रिल परोसती है और इसकी खुराक में कमी नहीं आने देती। ऐसे मसाले पसंद हैं तो यह फिल्म आपके लिए है, देख डालिए।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
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