पहले तो यही साफ हो जाए कि यह फिल्म 15 साल पहले आई ‘तुम बिन’ का रीमेक नहीं बल्कि उसी श्रृंखला में बनी फिल्म है। यानी इसकी कहानी का उस की कहानी से कोई नाता नहीं है। हां, इसका फ्लेवर उस फिल्म की कहानी जैसा ही है।
नायक-नायिका की शादी होने वाली है। नायक एक हादसे में लापता हो जाता है। नायिका की जिंदगी में कोई और आ जाता है। सब सही होने लगता है कि अचानक नायक लौट आता है।
इस किस्म की कहानियां हम पर्दे पर कई दफा देख चुके हैं। अंत में जब दो नायकों और नायिका के बीच त्रिकोण बन जाता है तो उनमें से किसी एक को त्याग करना ही पड़ता है। तो फिर इस फिल्म में नया क्या है? जवाब है-कुछ नहीं। लेकिन यह फिल्म आपको बासा माल नहीं परोसती बल्कि यह आपको उस पुराने दौर की फिल्मों की याद दिलाती है जब पर्दे पर प्यार और भावनाओं की चाशनी परोसी जाती थी जो आंखों, कानों और दिलों में उतर कर मीठे-मीठे अहसास दिलाया करती थी।
फिल्म की कहानी में भले ही नयापन न हो लेकिन इसकी स्क्रिप्ट खूबसूरती से बुनी गई है। प्यार और जुदाई के अहसासों को बखूबी बयान करती इस कहानी के संवाद भी काफी प्यारे हैं। फिल्म की रफ्तार भले ही धीमी हो लेकिन इसके इसी धीमेपन में ही खुमारी है। निर्देशक अनुभव सिन्हा ने इसे जिस तरह से धीमी आंच पर पकाया है, उससे इसका स्वाद और निखर गया है। इंटरवल के बाद कई जगह इसे बेवजह खींचने की बजाय 10-15 मिनट के कट मारे जाते तो यह और बढ़िया बन सकती थी।
फिल्म की लोकेशंस बहुत खूबसूरत हैं। सभी कलाकार बहुत खूबसूरत और प्यारे लगते हैं और लगभग सभी ने अपने-अपने हिस्से के काम बखूबी निभाए हैं। नेहा शर्मा और कंवलजीत सिंह अपने किरदारों को ऊंचाई तक ले जा पाने में कामयाब रहे हैं। गाने ज्यादा हैं लेकिन अच्छे हैं। पिछली वाली ‘तुम बिन’ में जगजीत सिंह का गाया ‘कोई फरियाद...’ कई टुकड़ों में आया है और हर बार आंखें भिगो गया है।
यह कहना गलत होगा कि आज की तेज-रफ्तार पीढ़ी को ऐसी फिल्में नहीं भातीं। जो फिल्म होठों पर मुस्कुराहट, दिलों में गुदगुदाहट और आंखों में नर्माहट ला सकती हो, उससे परे हटना ठीक न होगा। प्यार का मीठा-नमकीन अहसास चखना अच्छा लगता है तो यह फिल्म मिस मत कीजिएगा। और हां, रुमाल तो आप साथ रखते ही हैं न?
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
बढिया, पहली वाली थोड़ी-थोड़ी याद है, बड़ी इमोशनल थी वो वाली
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