Friday, 18 August 2017

रिव्यू-तकदीर के रिसते ज़ख्म दिखाती ‘पार्टिशन 1947’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
एक सीन देखिए-15 अगस्त, 1947 को हर तरफ आजादी का जश्न मनाया जा रहा है। बंगाल के नोआखली की उस छत पर भी, जहां महात्मा गांधी सोए हुए हैं, एक लड़की पूछती है-क्या हम बापू को जगाएं? दूसरी कहती है-नहीं, बापू का कहना है कि जश्न की कोई वजह नहीं है।

सच पूछिए तो जिस तरह से हमारी धरती के टुकड़े करके अंग्रेजों ने हमें आजादीदी थी और उन दिनों जिस तरह से इंसान, इंसान को मार, काट रहा था, वह जश्न का मौका था भी नहीं। मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी के तौर पर याद किए जाने वाले हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे का दंश रह-रह कर आज भी लोगों को सालता है। ढेरों किताबों और फिल्मों में अलग-अलग नजर और नजरिए से इस त्रासदी पर बात की गई है। गुरिंदर चड्ढा की यह फिल्म 1975 में लिखी गई लैरी कॉलिन्स और डोमिनिक लैपियर की किताब फ्रीडम एट मिडनाइटपर आधारित इंगलिश फिल्म वाइसरायज़ हाउससे डब होकर हिन्दी में आई है।

आज का राष्ट्रपति भवन ही तब वाइसरॉय हाऊस कहलाता था। फिल्म आखिरी वाइसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन के भारत आने और उनके माउंटबेटन प्लानके मुताबिक भारत को दो टुकड़ों में बांटने की कहानी को उनके, उनके परिवार और उनके वाइसरॉय हाऊस के नौकरों की नजर से देखती है। फिल्म यह भी खुलासा करती है कि पाकिस्तान पाने की जिन्ना की जिस जिद को हम अपने इतिहास की सबसे बड़ी भूल मानते हुए जिन्ना, नेहरू और माउंटबेटन को कटघरे में खड़ा करते हैं उसकी पटकथा तो असल में ब्रिटेन में बैठे चर्चिल ने काफी पहले ही लिख दी थी। असलियत में जिन्ना को पाकिस्तान नाम का लॉलीपॉप देकर ब्रिटेन एक अलग ही खेल रच रहा था। हालांकि यह फिल्म विभाजन की पीड़ा या उस दौरान हुई तबाही का खौफनाक मंजर नहीं दिखा पाती है लेकिन यह सब दिखाना शायद इस फिल्म का मकसद था भी नहीं। वाइसरॉय हाऊस के नौकरों में एक हिन्दू लड़के और एक मुस्लिम लड़की की प्रेम-कहानी के जरिए फिल्म दिलों में आई दरार और दूरियों की बात भी बखूबी करती जाती है।

डायरेक्शन, सैट्स, कैमरा और सधी हुई एक्टिंग के अलावा इस फिल्म को बंटवारे के उस ज़ख्म के लिए भी देखा जाना चाहिए जिसे तकदीर ने दोनों मुल्कों पर थोपा और जो आज सत्तर बरस बाद भी रिस रहा हैदोनों तरफ।
अपनी रेटिंग-साढ़े तीन स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम(www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)



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