Sunday 27 August 2017

काम्या पंजाबी-परांठे मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं

-दीपक दुआ...
हालांकि काम्या पंजाबी ने कहो ना प्यार है’, ‘ तुम जानो हम’, ‘फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’, ‘यादें’, ‘कोई मिल गयाजैसी बड़ी-बड़ी फिल्मों में एक-दो सीन के छोटे-छोटे रोल भी किए हैं लेकिन उन्हें नाम, पहचान और शोहरत मिली छोटे पर्दे से। ढेरों सीरियल और रिएलिटी शोज कर चुकीं काम्या कलर्स के लोकप्रिय शो शक्ति-अस्तित्व के अहसास कीमें प्रीतो के किरदार में नजर रही हैं---
-टेलीविजन की भागदौड़ भरी जिंदगी से कोई शिकायत?
-नहीं। उलटे मुझे तो यह भागदौड़ पसंद है और मैं इसे काफी एन्जाॅय भी करती हूं। अगर मुझे कभी एक दिन से ज्यादा की छुट्टी मिल जाए तो मैं बोर होने लगती हूं। दरअसल मुझे काम करना इतना ज्यादा अच्छा लगता है कि मुझे छुट्टी लेना ही पसंद नहीं है।

-तो ऐसे में अपनी फिटनेस पर कैसे ध्यान दे लेती हैं आप?
-कहते हैं कि अगर आप किसी काम को करने की ठान लें तो आप उसे कर सकते हैं। मैं रोजाना 12 घंटे शूट करती हूं लेकिन उसके बाद रात को जिम भी जरूर जाती हूं। शूट के दौरान भी मैं अपनी डाइट पर ध्यान देती हूं और बीच-बीच में काफी सारा पानी पी कर खुद को फ्रैश रखने की कोशिश करती हूं। मैंने तय किया है कि मैं अगले बीस साल बाद भी आपको ऐसी ही फिट नजर आऊंगी।

-तो फिर पंजाबी पराठों का क्या होगा?
-वे भी चलते रहेंगे। हम पंजाबियों का तो दिन ही परांठों से शुरू होता है। और मेरे घर में तो आप चाहे जब भी जाएं, दस मिनट में हर किस्म के परांठे तैयार मिलेंगे। परांठे मेरी जिंदगी का हिस्सा हैं जिन्हें मैं नहीं छोड़ सकती लेकिन साथ ही वर्कआउट करके खुद को फिट भी रखती हूं।

-खाना बनाने का भी शौक है?
-ज्यादा तो नहीं लेकिन जब भी मुझे फुर्सत मिलती है, मैं अपनी बेटी के लिए कुछ कुछ बनाना पसंद करती हूं।

-फिल्मों में कम काम करने की वजह?
-असल में जब मैंने शुरू किया था तो उस समय ऐसे ही मस्ती-मजाक में किया था कि चलो कुछ पाॅकेट मनी निकल आएगी। पर जब मैंने एक्टिंग को सीरियसली लिया और इसे एक प्रोफेशन के तौर पर लेना शुरू किया तो मैंने जान-बूझकर यह तय किया कि मुझे टी.वी. ही करना है। इसकी एक वजह तो यह है कि मैं अपने घर के पास ही काम करना चाहती हूं और दूसरी यह कि मैं नहीं चाहती कि मैं दस सीन करूं और एक साल बाद पर्दे पर जब वह फिल्म आए तो उनमें से भी एक ही सीन उसमें हो। मेरे अंदर हीरोइन बनने की कोई चाहत तो कभी थी और ही है। मैं जो कर रही हूं उसी में काफी खुश हूं। सच तो यह है कि मैं टी.वी. से बहुत प्यार करती हूं और मरते दम तक टी.वी. करना चाहती हूं।

-कोई ऐसा रोल जिसे करने की तमन्ना मन में हो?
-जी हां, मैं उमराव जानकी रेखा जी वाला रोल करना चाहती हूं। मैं अर्थकी शबाना जी जैसा या स्मिता जी जैसा कोई रोल करना चाहती हूं।पर क्या ऐसे रोल छोटे पर्दे पर मिल पाना संभव है? ‘क्यों नहीं?’ काम्या कहती हैं, ‘छोटा पर्दा अब तेजी से बदल रहा है। बहुत सारी नई चीजें इस पर रही हैं जिन्हें लोग देखना पसंद करते हैं। तो मुझे यकीन है कि ऐसी कहानियां भी टी.वी. पर आएंगी और मुझे ऐसे रोल जरूर करने को मिलेंगे।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपनी वेबसाइट सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
 

1 comment:

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