Friday, 20 October 2017

रिव्यू-‘गोलमाल’ है भई सब झोलझाल है...

-दीपक दुआ...  (Featured in IMDb Critics Reviews)
सबसे पहले कहानी की बात। हंसिए मत, ‘गोलमालजैसी फिल्मों में भी कहानी होती है। भले ही वह कितनी ही महीन, बारीक, पतली, हल्की, कमजोर, बेकार या ऊल-जलूल क्यों न हो। तो, इस कहानी में गोलमालवाले सारे कैरेक्टर ऊटी के एक अनाथाश्रम में पले-बढ़े हैं। उस अनाथाश्रम के सेठ जी को मारने के बाद वहां की जमीन को कोई हड़पना चाहता है और ये लोग मिल कर उस विलेन से लड़ते हैं। इस काम में ये एक भूतनी की और वह भूतनी इनकी मदद करती है। उधर एक लाइब्रेरियन है जिसे भूत दिखाई देते हैं। क्यों? और इन सबको भी वह भूतनी दिखती है, किसी और को नहीं। क्यों? ये लोग आए तो उस भूतनी की मदद करने हैं, लेकिन देखा जाए तो वह भूतनी ही अपने-आप सब कुछ सुलटा लेती है। क्यों? और अगर भूतनी ने ही सब कुछ करना था तो वह इन पर निर्भर ही क्यों थी? ऐसे ढेर सारे क्योंआपके मन में आ सकते हैं। पर जिस फिल्म को बनाने वालों ने उसके पोस्टर पर ही लॉजिक नहीं सिर्फ मैजिकलिख दिया हो, उसे देखते हुए ऐसे सवाल मन में लाना इल्लॉजिकल है, गुनाह है, गुनाह-ए-अजीम है।

गोलमालजैसी फिल्में बनाई ही इसलिए जाती हैं ताकि आपको सब कुछ’ (जी हां, सब कुछ) भुला कर मसालेदार, चटपटा मनोरंजन परोसा जा सके जिसमें भले ही दिमागहीन बाते हों लेकिन जिन्हें देख-सुन कर आप हंसे और कुछ पल के लिए ही सही, उन नॉनसेंस चीजों को भी एन्जॉय करें। इस फ़ॉर्मूले को रोहित अपनी कॉमेडी फिल्मों में परोसते आए हैं और हर बार सफल भी रहे हैं। यह फिल्म भी इस काम में कामयाब रही है। काफी सारे सीन और संवाद ऐसे हैं जो आपको हंसाते हैं। हालांकि इसकी ढाई घंटे की लंबाई कई जगह बेवजह खिंचती हुई भी लगती है लेकिन जब सामने मसालों की बौछार हो तो किसे फर्क पड़ता है।

ऐसी फिल्मों में एक्टिंग की गहराई या निर्देशन की संजीदगी की बात भी नहीं की जाती। हां, कुछ सरप्राइज एलिमेंट जरूर हैं जो अच्छे लगते हैं। रही म्यूजिक की बात, तो ऐसी फिल्मों में गाने इसलिए होते हैं ताकि उस दौरान आप बाहर जाकर खुद हल्के हो लें और पॉपकॉर्न-बर्गर वगैरह पर अपनी जेब हल्की कर आएं।

गोलमालसीरिज की फिल्में असल में तीखे-चटपटे मसालों का झोलझाल होती हैं। इन्हें बिना दिमाग को कष्ट दिए देखना चाहिए। यह हुनर और हिम्मत आपके पास हो तो इस फिल्म को जरूर देखिए, दोस्तों के साथ, फैमिली के साथ।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपनी वेबसाइट सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

2 comments:

  1. What about acting sir...Comedy wo bhi rohit wali me first time hath azmaya hai tabbu ne

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    1. लिख तो दिया कि "ऐसी फिल्मों में एक्टिंग की गहराई या निर्देशन की संजीदगी की बात भी नहीं की जाती"... वैसे तब्बू से कॉमेडी नहीं करवाई गई है...

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