
'करीब करीब सिंगल' की इस दिलचस्प कहानी का नायक योगी रंगीला है। इंजीनियर है मगर नौकरी नहीं कविताएं करता है। जो मुंह मे आया कह देता है, जो दिल में आया कर लेता है। वहीं नायिका जया नीरस किस्म की है। योगी का साथ उसे बदलता है और वह खुलने लगती है। उसका साथ पाकर योगी भी बदलता है।
इस तरह की रोड-मूवी अपने यहां कम बनती हैं। बरसों बाद लौटीं डायरेक्टर तनुजा चंद्रा ने इस सफर को बखूबी संभाला है। फ़िल्म हालांकि बिना उपदेश पिलाए काफी कुछ कहती चलती है लेकिन कहीं-कहीं आया बिखराव इसे पटरी से उतार देता है। बावजूद इसके, यह एक दिलचस्प प्लॉट को दिलचस्प अंदाज़ में दिखा पाने में कामयाब रही है।

'पीकू' और 'हिन्दी मीडियम' से ज़्यादा अलग नहीं हैं। साऊथ से आईं पार्वती रिझा नहीं पातीं। उनकी जगह राधिका आप्टे सरीखी कोई अदाकारा ज़्यादा जंचतीं। कम देर के लिए दिखे पुष्टि शक्ति, नेहा धूपिया, सिद्धार्थ मेनन, बृजेंद्र काला जैसे अदाकारों ने बढ़िया काम किया। टैक्सी ड्राइवर बने अमन खासे प्रभावी रहे।
रोड-मूवी में लोकेशंस कहानी में किरदार बन जाते हैं लेकिन यहां ऐसा होते-होते रह गया। गाने भी धांसू नहीं बन पाए। थोड़ा और ज़ोर लगाया जाता तो यह फ़िल्म बेहतरीन के करीब भी हो सकती थी।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
bilkul sahi bat h
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