Saturday, 11 November 2017

रिव्यू-करीब करीब बेहतरीन

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
अधेड़ उम्र को छू रहे नायक-नायिका अब तक सिंगल हैं। एक डेटिंग साइट की मदद से ये मिलते हैं और मिलते-मिलाते ये एक लंबे सफर पर निकल पड़ते हैं। इस दौरान एक-दूसरे को समझते-समझाते ये खुद को और जिंदगी को करीब से जान पाते हैं।

'करीब करीब सिंगल' की इस दिलचस्प कहानी का नायक योगी रंगीला है। इंजीनियर है मगर नौकरी नहीं कविताएं करता है। जो मुंह मे आया कह देता है, जो दिल में आया कर लेता है। वहीं नायिका जया नीरस किस्म की है। योगी का साथ उसे बदलता है और वह खुलने लगती है। उसका साथ पाकर योगी भी बदलता है।


इस तरह की रोड-मूवी अपने यहां कम बनती हैं। बरसों बाद लौटीं डायरेक्टर तनुजा चंद्रा ने इस सफर को बखूबी संभाला है। फ़िल्म हालांकि बिना उपदेश पिलाए काफी कुछ कहती चलती है लेकिन कहीं-कहीं आया बिखराव इसे पटरी से उतार देता है। बावजूद इसके, यह एक दिलचस्प प्लॉट को दिलचस्प अंदाज़ में दिखा पाने में कामयाब रही है।

इरफान ऐसे किरदारों में जंचते हैं लेकिन वह लगातार यही करते रहे तो बोर करने लगेंगे। उनका यह किरदार
'पीकू' और 'हिन्दी मीडियम' से ज़्यादा अलग नहीं हैं। साऊथ से आईं पार्वती रिझा नहीं पातीं। उनकी जगह राधिका आप्टे सरीखी कोई अदाकारा ज़्यादा जंचतीं। कम देर के लिए दिखे पुष्टि शक्ति, नेहा धूपिया, सिद्धार्थ मेनन, बृजेंद्र काला जैसे अदाकारों ने बढ़िया काम किया। टैक्सी ड्राइवर बने अमन खासे प्रभावी रहे।

रोड-मूवी में लोकेशंस कहानी में किरदार बन जाते हैं लेकिन यहां ऐसा होते-होते रह गया। गाने भी धांसू नहीं बन पाए। थोड़ा और ज़ोर लगाया जाता तो यह फ़िल्म बेहतरीन के करीब भी हो सकती थी।
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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