-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
कपिल शर्मा का टी.वी. शो देखते समय कभी गौर कीजिएगा, हल्के से हल्के पंच और घिसे हुए चुटकुलों पर भी आप हंसते हैं, मुस्कुराते हैं क्योंकि आपको लगता है कि यह बंदा जो कह रहा है, कर रहा है, आपके मनोरंजन के लिए ही तो कर रहा है। इस फिल्म को देखते हुए भी आप ऐसा ही करते हैं। बात-बात पर और बिना बात पर भी हंसते हैं, लेकिन जल्द ही आपको यह अहसास होने लगता है कि यह कोई स्टैंडअप कॉमेडी का शो नहीं, बल्कि एक संजीदा फिल्म है जिसकी कहानी को जिस तरह से और जिस दिशा में बहना चाहिए, वह फ्लो इसमें नहीं है। और तब आप निराश होते हैं, बुरी तरह से निराश होते हैं।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार
हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय।
मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित
लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

1921 के वक्त के पंजाब में लड़के को लड़की से प्यार हुआ लेकिन लड़की के दादा जी बीच में आ गए कि लड़का तो अंग्रेजों की नौकरी करता है। उधर राजा साहब ने उसी लड़के के जरिए छल कर के कागज पर गांव वालों के अंगूठे लगवा लिए और उनकी जमीनें हड़प लीं। लड़के ने भी कसम खा ली कि राजा साहब की तिजोरी से वह कागज लेकर आऊंगा।
इस काल्पनिक कहानी की शुरूआत, और यहां तक कि ट्रीटमैंट तक आमिर खान वाली ‘लगान’ सरीखा है। लेकिन यह ‘लगान’ के पैर के अंगूठे के नाखून के बराबर भी नहीं है। इसकी वजह है इसकी स्क्रिप्ट का बिखराव और हल्कापन। बेमतलब की बातें इतनी ज्यादा ठूंसी गई हैं और उन पर इतनी देर तक कैमरा रखा गया है कि शक होने लगता है कि डायरेक्टर राजीव ढींगड़ा ‘कट’ बोलना भूल गए, संपादक की कैंची गुम हो गई या ये दोनों ही कपिल शर्मा के सामने कुछ बोल नहीं पाए। दो घंटे 40 मिनट...? पका मारा।
फिल्म में कुछ भी जोरदार नहीं है। अंग्रेज बुरे होते हैं-बताया गया है, दिखाया नहीं गया। काॅमेडी हल्की है, प्यार की छुअन भी। राजा या अंग्रेजों का अत्याचार भी। देशप्रेम की भावना भी। अंग्रेजी राज का अहसास कराने के लिए चार अफसर और दो सिपाही ही रख पाए कपिल...? असहयोग आंदोलन के समय ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा...? गांव का सलीके से बनाया गया एकदम नकली-सा लगता सैट...? यार, कुछ ज्यादा होमवर्क कर लेते, थोड़ा ज्यादा पैसे खर्च लेते। हां, किरदारों की बोली और रहन-सहन में पंजाबियत भरपूर झलकी है।
कपिल औसत किस्म के एक्टर हैं और अगर वह सचमुच खुद को लीड हीरो बनने से नहीं रोक पा रहे हैं तो उन्हें खुद को और मांजना चाहिए। नायिका इषिता दत्ता ‘दृश्यम’ में अजय देवगन की बड़ी बेटी बन कर आ चुकी हैं। अभिनेत्री तनुश्री दत्ता की यह छोटी बहन खूबसूरत हैं और किरदार में फिट नजर आती हैं। बाकी तमाम नामी सहयोगी कलाकारों में से कपिल की दादी बनीं जतिंदर कौर और दोस्त बने इनामुलहक सबसे ज्यादा प्रभावी रहे। गीत-संगीत पर की गई मेहनत दिखती है। ज्योति नूरां और राहत फतेह अली खान के गाए गीत जंचते भी हैं।
बिना पूरी और सही तैयारी के किसी सब्जैक्ट में हाथ डालने का नतीजा है ‘फिरंगी’। कपिल का नाम जुड़ा हो तो लगता है कुछ सतरंगी होगा, अतरंगी होगा... मगर अफसोस, यह फिल्म बे-रंगी ज्यादा है...!
अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार
Nice news
ReplyDeleteSpot on, review!
ReplyDeleteOh...Kapil sharma ka future bante bante bigad jana hai...
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