-दीपक दुआ...
अपने पहले ही प्रयास में कोई इतना बड़ा फिल्म समारोह आयोजित करे और बेहद सुगमता से उसे अंजाम तक ले जाए तो उसे शाबाशी देने का दिल करता है। पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित हंसराज कॉलेज में हुए तीन दिवसीय ‘कैंपस शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल’ में शामिल होने और उसकी तमाम गतिविधियों को करीब से देखने के बाद मैं दावे से यह कह सकता हूं कि इस आयोजन का भविष्य उज्ज्वल है और दूसरों को भी इसका अनुकरण करना चाहिए।
अभिनेता शाहरुख खान के कॉलेज के तौर पर पहचाने जाने वाले हंसराज कॉलेज से पिछले सत्तर साल में बड़ी तादाद में ऐसे लोग पढ़-गुढ़ कर निकले हैं जो देश-विदेश में उच्च पदों पर बैठे हैं। अपनी वर्तमान प्राचार्या श्रीमती रमा की अनोखी सहभागिता, सक्रियता और समर्थन से यह कॉलेज पढ़ाई से इतर भी हर क्षेत्र में नाम कमा चुका है। यहीं पर हिन्दी पढ़ाने वाले महेंद्र प्रजापति,
‘कैंपस कॉर्नर’ पाक्षिक समाचार-पत्र की संपादक अंकिता और महाकवि जयशंकर प्रसाद फाउंडेशन के विजय शंकर ने पिछले दिनों इस फिल्मोत्सव का आयोजन किया।
इस फिल्मोत्सव का उद्घाटन ही काफी प्रभावी रहा। सुबह मशहूर लेखक-व्यंग्यकार हरीश नवल फिल्मी लेखन पर एक सत्र ले चुके थे जिसके बाद हुए उद्घाटन में उनके साथ फिल्म आलोचक अजय ब्रह्मात्मज, लेखक-आई.ए.एस राकेश मिश्रा,
फिल्म ‘केसरी’ मे मुल्ला सैदुल्लाह बने अभिनेता राकेश चतुर्वेदी,
फिल्म ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज़’ की नायिका बिदिता बाग, फिल्म ‘कहानी’
की लेखिका अद्वैता काला और बतौर मुख्य अतिथि संगीतकार-फिल्मकार विशाल भारद्वाज मौजूद थे। इस दौरान विशाल ने भरपूर समय दिया और काफी देर तक मौजूद लोगों के सवालों के जवाब देते रहे। इसके बाद युवा फिल्म समीक्षक मुर्तज़ा अली खान ने स्क्रीन-राईटिंग पर एक वर्कशॉप ली जिसमें बड़ी तादाद में प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
तीन दिन तक चले इस आयोजन में विभिन्न विषयों पर बहुत सारे सेमिनार, चर्चाएं, वर्कशॉप्स आदि भी आयोजित किए गए जिनमें साहित्यकार अनंत विजय,
फिल्म व कला आलोचक विनोद भारद्वाज, फिल्म चिंतक अजित राय, लेखिका साधना अग्रवाल, फिल्म ‘पटाखा’ के कहानीकार चरण सिंह पथिक,
जागरण प्रकाशन के प्रशांत कश्यप, पुणे फिल्म संस्थान में पढ़ाने वाले सिद्धार्थ शास्ता,
अभिनेता नलिन सिंह जैसी कई नामी हस्तियों ने भाग लिया और प्रतिभागियों को सिनेमा से जुड़ी ढेरों बातें बताईं।
इस फिल्म समारोह में बड़ी तादाद में शॉर्ट-फिल्में आईं जिनमें से काफी सारी फिल्मों का प्रदर्शन भी यहां किया गया। इन फिल्मों में ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी से भी एक-एक फिल्म भी आई थी। इन फिल्मों में से चुन कर 16 फिल्में समारोह की जूरी को दी गईं जिनमें दो मूक फिल्मों के अलावा हिन्दी, अंग्रेज़ी,
तमिल, भोजपुरी, हरियाणवी, मराठी,
बुंदेली, बांग्ला जैसी भाषाओं की फिल्में शामिल थीं। समारोह की दो सदस्यीय जूरी में राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शॉर्ट-फिल्ममेकर अरुण चड्ढा और मैं शामिल थे। ये फिल्में इस कदर उम्दा थीं कि इनमें से से चार अलग-अलग श्रेणियों में विजेताओं का निर्धारण करने में हमें सचमुच बहुत दिक्कतें आईं। हंसराज कॉलेज के छात्रों द्वारा रंगभेद पर बनाई ‘भेद’, जयपुर के ईशान हर्ष की ‘ब्रोकन एंबिशन्स’, अतिशय जैन की बुंदेली फिल्म ‘संथारा’,
हिन्दी भाषा का मान बढ़ाती अवनीश के. की ‘हिन्दी हैं हम’, तमिल की ‘सोपानम’, विजय कुमार की ‘पारो’
जैसी फिल्में सचमुच सराहना की पात्र थीं। पर चूंकि सिर्फ चार अवार्ड ही दिए जाने थे इसलिए जूरी की दी हुई रैंकिंग के आधार पर चालीस हज़ार रुपए की राशि वाला बैस्ट फिल्म का सम्मान मराठी फिल्म ‘तरंग’ को दिया गया। इसके अलावा बीस-बीस हज़ार रुपए की राशि के तीन पुरस्कार दिए गए। बैस्ट निर्देशक का पुरस्कार स्वप्निल शैट्टी निर्देशित मराठी फिल्म ‘प्रॉन्स’
को मिला। बैस्ट लेखन का राहुल यादव की फिल्म ‘10 का 4’ को और बैस्ट संपादन का कार्तिक सिंह की फिल्म ‘बिट्टू-द फोटोग्राफर’ को दिया गया। समापन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर अभिनेत्री वाणी त्रिपाठी उपस्थित थीं।