Friday, 20 September 2019

रिव्यू-एंटरटेनमैंट की पिच पर चला ट्रैक्टर-‘द ज़ोया फैक्टर’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
25 जून, 1983-इंडियन टीम ने क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता और ठीक उसी दिन सोलंकी परिवार में एक लड़की ज़ोया जन्मी। क्रिकेट के दीवाने पिता ने उसे लकी-चार्म मान लिया। बड़ी होकर काम के सिलसिले में यह लड़की इंडियन क्रिकेटर्स से मिली और हारती हुई टीम जीतने लगी। सबने मान लिया कि ज़ोया का लक-फैक्टर ही टीम को जिता रहा है। पर क्या सचमुच ऐसा है...?

कहानी दिलचस्प है, हट कर है, और शायद इसीलिए 2008 में आया अनुजा चौहान का लिखा अंग्रेज़ी उपन्यास ज़ोया फैक्टर’ (अंग्रेज़ीदां पाठकों ने) काफी पसंद किया था। बरसों तक विज्ञापनों की दुनिया में काम करने और क्रिकेटर्स के अजीबोगरीब अंधविश्वासों को करीब से देखने वाली अनुजा ने इस उपन्यास में यह सवाल उठाया था कि क्या महज़ किसी एक शख्स के लक-फैक्टर से टीम इंडिया की परफॉर्मेंस बदली जा सकती है? साथ ही हर चमत्कार को नमस्कार करने की आम लोगों की प्रवृत्ति को भी उन्होंने कटघरे में खड़ा किया था। पर क्या यह ज़रूरी है कि किसी बेस्टसेलर उपन्यास पर बनी फिल्म भी उतनी ही उम्दा और बेस्ट हो...?

Friday, 13 September 2019

रिव्यू-किसी ‘सायर’ की ‘गज्जल’-ड्रीम गर्ल

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
एक लड़का है जो लड़की की आवाज़ निकाल सकता है। कोई और नौकरी नहीं मिलती तो एक फ्रेंडशिप कॉल सेंटर में पूजा बन कर लोगों का दिल बहलाता है और उनका बिल बढ़ाता है। पर उलझनें तब बढ़ती हैं जब उसके दीवाने उससे शादी करने और उसके लिए मरने-मारने पर उतर आते हैं। अब यह सच वह किसी को बता नहीं सकता कि कइयों की ड्रीमगर्ल यह पूजा असल में कोई दूजा है।

रिव्यू-मर्ज़ी और ज़बर्दस्ती की बात ‘सैक्शन 375’ में

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
फिल्म की यूनिट में काम करने वाली एक लड़की के साथ उसके डायरेक्टर ने रेप किया। आरोप साबित हुआ और डायरेक्टर को 10 साल की सज़ा हो गई। केस हाई-कोर्ट में पहुंचा तो धीरे-धीरे केस की परतें खुलने लगीं, कुछ दबी हुई बातें सामने आने लगीं और कुछ ढके हुए सच आकर सवाल पूछने लगे कि जो हुआ उसमें मर्ज़ी ज़्यादा थी या ज़बर्दस्ती...?

Friday, 6 September 2019

रिव्यू-जूझना सिखाते हैं ये ‘छिछोरे’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
ज़िंदगी से हार मानने को तैयार अपने बेटे को हौसला देने के लिए एक बाप उसे अपने कॉलेज और होस्टल के दिनों की कहानी सुना रहा है। धीरे-धीरे इस कहानी के 25-26 साल पुराने किरदार भी जुटते हैं जो उसे बताते हैं कि आज कामयाबी के आसमान पर बैठे ये लोग कभी कितने बड़े लूज़र थे और कैसे इन्होंने मुश्किलों का सामना किया।