-दीपक दुआ...
23 फरवरी, 2020... दिल्ली के जमना पार का एक हिस्सा अचानक से दहशत का केंद्र बन
गया था। नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में सड़कों पर हफ्तों से जमे बैठे एक वर्ग विशेष
के लोगों ने अचानक पुलिस और दूसरे संप्रदाय के लोगों के घरों, दुकानों को जलाना, लूटना शुरू कर दिया। उन्हें चुन-चुन
कर मारा जाने लगा। कहा गया कि एक नेता के बयान के बाद वे लोग भड़के। लेकिन इन लोगों
की हरकतें बता रही थीं कि इनका यह ‘भड़कना’ अचानक नहीं था बल्कि इसके लंबी तैयारी की
जा रही थी। जब आरोपियों की धर-पकड़ शुरू हुई तो धीरे-धीरे सच सामने आने लगा। उन मनहूस
दंगों की पहली बरसी पर रिलीज़ हुई डॉक्यूमेंट्री ‘दिल्ली रायट्स-ए टेल ऑफ बर्न एंड ब्लेम’
सच की उन्हीं दबी-छुपी परतों को सामने लाने का काम कर रही है जिन्हें पहले मुख्यधारा
मीडिया के एक वर्ग और उसके बाद सोशल मीडिया के सिपाहियों ने या तो सामने नहीं आने दिया
या फिर उन परतों में से सिर्फ उन्हीं को खोला जिनसे उनके खुद के हित सध रहे थे।