Tuesday, 9 February 2021

मुफ्त में फिल्म देखिए-पसंद आए तो पैसे दीजिए

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb)
हैडिंग पढ़ कर चौंकिए मत, यह सच है। जी हां, एक फिल्मकार ने अपनी बनाई एक फिल्म के लिए यह अनोखा बिज़नेस मॉडल पेश किया है जिसमें वह दर्शकों को अपनी फिल्म मुफ्त में दिखा रहे हैं और यह गुज़ारिश कर रहे हैं कि अगर आपको यह फिल्म पसंद आए तो उन्हें थोड़े पैसे भेज दीजिए। थोड़े मतलब कुछ भी, दस, बीस, पचास रुपए, या जो भी आप चाहें।
 
यहां बात हो रही है फिल्मटोनीकी। यह एक सायको सस्पैंस-थ्रिलर फिल्म है जिसके लेखक, निर्माता और निर्देशक हैं विपुल के. रावल। बतौर लेखक विपुल नेइक़बाल, ‘रुस्तम, ‘बत्ती गुल मीटर चालूजैसी फिल्में लिखी हैं। इसके बाद उन्होंने बहुत ही कम बजट, सिर्फ 75 लाख रुपए मेंटोनीबना डाली जिसमें तमाम नए कलाकार लिए और यहां तक कि बहुत सारे नए तकनीशियन भी। फिल्म ठीक-ठाक बन गई लेकिन जैसा कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में होता है, इसे रिलीज़ करने में उन्हें नाकों चने चबाने पड़ गए। किसी तरह से यह फिल्म नवंबर, 2019 में रिलीज़ हुई तो इसे कायदे के थिएटर मिले, शो और ही सलीके से इसका प्रचार हो पाया, लिहाजा यह फिल्म पिट गई।
 
इसके बाद विपुल ने एक अनोखा काम किया। उन्होंने इस फिल्म को अपने यू-ट्यूब चैनल पर डाल दिया ताकि सब लोग इसे मुफ्त में देख सकें। फिल्म की शुरूआत में दर्शकों से गुज़ारिश की जाती है कि इस फिल्म को देखने के बाद अगर आप चाहें तो उन्हें कुछ पैसे भेज दें। इस फिल्म को रिलीज़ करने से जुड़े अपने संघर्ष और फिल्म इंडस्ट्री के माफियाओं से अपनी भिड़ंत के बारे में विपुल 18 मिनट के एक वीडियो में बताते हैं, जिसे यहां क्लिक करके देखा जा सकता है।
 
अब बात आती हैटोनीकी कि यह कैसी फिल्म है? बतौर समीक्षक कहूं तो यह बिल्कुल भी बुरी नहीं है। पुलिस एक युवक को बंदूक के साथ पकड़ती है और धीरे-धीरे शहर में हो रही ढेरों हत्याओं के राज़ खुलने लगते हैं। बतौर लेखक-निर्देशक विपुल कहानी का सस्पैंस अंत तक बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। हालांकि इस कहानी और इस पर तैयार की गई स्क्रिप्ट में सुधार की गुंजाइश दिखती है लेकिन एक अलग किस्म की सस्पैंस फिल्म के तौर पर इसे देख कर आप बिल्कुल भी निराश नहीं होंगे, यह तय है।
 
इस फिल्म को आप इस लिंक पर क्लिक कर के मुफ्त में देख सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे-अगर आपको यह पसंद आए तो इसके निर्माता को कुछ पैसे भेज दीजिएगा ताकि वह आगे भी इस तरह की ईमानदार सिनमाई कोशिशें करता रहे। पैसे भेजने के तमाम तरीके इस फिल्म के लिंक को खोलने पर नीचे डिस्क्रिप्शन में दिए गए हैं।
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दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

4 comments:

  1. अब तो देखनी ही पड़ेगी। और यकीन मानिये पसंद आई तो आधी टिकिट के पैसे भी 😀

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  2. Bhut jabardast struggle rha hai vipul sir ka

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  3. बहुत सुंदर प्रयोग l

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