Tuesday 16 March 2021

रिव्यू-प्यार की नई परिभाषा गढ़ती ‘सर’

-गति उपाध्याय... (Featured in IMDb Critics Reviews)
नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध इस फिल्मइज़ लव एनफ? सरमें एक तरफ है जवान विधवा काम वाली बाई रत्ना, जो अपने काम, ज़िम्मेदारियों और इमेज के प्रति हर पल सतर्क और चौकन्नी रहती है। दूसरी तरफ उसका मालिक अश्विनसरपरिवार के लिए अपनी खुशियों को ताक पर रख देने वाला गंभीर मिज़ाज का रईस युवा नायक है। अभी-अभी उसकी शादी टूटी है और वह हताश है। रत्ना उसे उम्मीद देती है। एक घर में रहते हुए ये दोनों करीब आते हैं। अश्विन कोलोग क्या कहेंगेकी परवाह नहीं लेकिन रत्ना के लिए यह रिश्ता इतना आसान नहीं।
 
फिल्म बताती है कि खामोशियों को सुनना प्यार है, चुप्पियों को तोड़ने की कोशिश करना प्यार है। अभी जहां ज़्यादा प्यार का मतलब ज़्यादा बातें हो चला है वहीं यह फिल्म बताती है कि असल प्रेम तो रेशम से भी कोमल है जहां शब्दों का ज़रा-सा भी उलझाव प्रेम के तंतुओं में टूटन पैदा कर देता है। हैरानी की बात ये कि फिल्म में नायक-नायिका कहीं भी साथ खुल कर हंसे तक नहीं हैं। दरअसल हंसाने और खुश रखने के बीच के फर्क को बताती है यह फिल्म।
 
प्रेम को विकसित करने का निर्देशिक का ट्रीटमेंट काबिले-तारीफ है। प्यार परवाह का ही दूसरा नाम है जो फिल्म के पहले दृश्य से आखिरी दृश्य तक देखा जा सकता है। फिल्म दिखाती है कि ज़्यादा पैसे होने का मतलब परेशानियों का कम होना नहीं होता। हर इंसान, चाहे वह अमीर हो या गरीब, अपनी-अपनी तरह की मजबूरियों में बंधा हुआ है। एक दृश्य में रत्ना कहती भी है-‘मैंने सोचा था कि अमीर लोगों की लाइफ आसान होती होगी सर, पर आप भी तो...!’
 
फिल्म का पहला दृश्य विधवा नायिका के चूड़ी पहनने से शुरू होता है जो अपने गांव की बंदिशों और शहर के खुलेपन के फर्क को बताता है। गांव के पुरुष अपने साथ सोच का छोटापन भी लाते हैं जबकि दो कामवाली औरतें अपनी सोच बड़ी कर के बड़े ही प्रोफेशनल तरीके से अपने-अपने काम को हैंडल करती दिखती हैं। सच ही कहा गया है-औरतें ही एक दिन दुनिया बदलेंगी।
 
इस फिल्म की नायिका जैसी नायिका अभी भारतीय सिनेमा के लिए नई है। एक पल को अपनी हैसियत भूलने वाली नायिका, रोमांटिक पलों में भी खुद को संभालने वाली नायिका, हर परिस्थिति में सही और गलत का फैसला खुद करने वाली नायिका यहां विरले ही दिखती हैं। अकेले होने पर भी हर बार घर में एंट्री के वक्त चप्पल हाथ में लेकर आना, स्टील के गिलास में चाय पीना, ज़मीन में बैठ कर खाना, सर को बिना जताए, बिना दखल दिए उनकी परवाह करना।
 
इस कहानी में किरदार कम हैं। संवाद उससे भी कम। रफ्तार पसंद लोगों को फिल्म कुछ रुकी-रुकी सी लगेगी। संवाद के स्थान पर दृश्यों का विस्तार किया गया है। फिल्म हालांकि हिन्दी-अंग्रेज़ी मिश्रित है लेकिन इसे देखने बैठें तो यह आसानी से समझ में आने लगती है। गीतदिल को थोड़ा ब्रेक दे...’ लुभाता है।
 
दमदार अभिनय के लिए तिलोत्तमा शोम और विवेक गोम्बर को दर्शक बहुत दिनों तकसरवाली हीरोइन और हीरो के नाम से याद रखेंगे। गीतांजलि कुलकर्णी, अनुप्रिया गोयनका, दिव्या सेठ, बचन पचरा का काम भी उम्दा रहा। गुस्सा, नफरत, साज़िश, हिंसा और सैक्स के बिना प्रेम को उसके पवित्र रूप के तौर पर विकसित करने के लिए डायरेक्टर रोहेना गेरा की यह फिल्म बरसों तक याद की जाएगी।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(गति उपाध्याय ने एम.बी.ए. किया है। बैंकर भी रही हैं। अंदर की लेखिका की आवाज़ पर सब छोड़छाड़ कर अब सिर्फ लेखन करती हैं। ढेरों लेख, समीक्षाएं और कविताएं लिख-छप चुकी हैं।)
 

3 comments:

  1. कड़क सी दिखने वाली नर्म दिल लड़की जिसे सबकी अथाह चिंता है सिवाय अपनी छोड़कर, उसे बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं,खूब लिखे❤️

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  2. बहुत सही फिल्म है...बढ़िया लिखा

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