-शिल्पी रस्तोगी...
अक्षय कुमार को 64वें नेशनल फिल्म अवार्ड में ‘रुस्तम’के लिए बेस्ट
एक्टर का अवार्ड मिलने के ऐलान के साथ ही यह चर्चा होने लगी है कि अक्षय को यह पुरस्कार
मिलना कितना सही है और कितना गलत। अक्षय को यह अवार्ड दिए जाने के समर्थक ‘रुस्तम’
में उनके
अभिनय की तारीफें करते नहीं थक रहे हैं तो वहीं इस बात का विरोध कर रहे लोगों का कहना
है कि उन्हें यह पुरस्कार मोदी सरकार से उनकी नजदीकियों के चलते मिला है। उधर कुछ लोग
ऐसे भी हैं जो यह तो मानते हैं कि अक्षय राष्ट्रीय पुरस्कार डिज़र्व तो करते हैं लेकिन
‘रुस्तम’ के लिए नहीं। ऐसे लोगों
को इस पुरस्कार की घोषणा के साथ दी गई जूरी की टिप्पणी ‘निजी और सामाजिक खलबली
में फंसे एक किरदार को निपुणता से निभाने के लिए’ पर गौर करना चाहिए।
अक्षय को यह अवार्ड दिए जाने का विरोध कर रहे ज्यादातर लोगों
का मानना है कि उनकी बजाय ‘दंगल’ के आमिर खान,
‘उड़ता पंजाब’
के शाहिद
कपूर या ‘अलीगढ़’ के मनोज वाजपेयी को यह
पुरस्कार मिलना चाहिए था। यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि ऐसा कहने वाले भी सिर्फ
हिन्दी फिल्मों की ही बात कर रहे हैं और यह नहीं जानते कि पिछले साल दूसरी भाषाओं में
किन फिल्मों और किन अभिनेताओं ने उम्दा काम किया था। रही बात अक्षय की तो फिल्म आलोचकों
को मानना है कि ‘रुस्तम’ में उनका काम बुरा बिल्कुल
नहीं था और उन्हें अगर यह पुरस्कार मिला है तो इसे सिरे से गलत नहीं ठहराया जा सकता।
अवार्ड देने वाली जूरी के अध्यक्ष प्रियदर्शन का यह कहना भी ध्यान मांगता है कि अक्षय
को यह अवार्ड 38 सदस्यों की जूरी ने बहुमत के आधार पर दिया है और आप जूरी के निर्णय
को यूं नकार नहीं सकते।
और अगर अक्षय की मोदी सरकार से नजदीकियों के पक्ष की बात करें
तो यह जाहिर बात है कि हर सरकार अपने करीबियों को पुरस्कृत करती आई है। सैफ अली खान
का उदाहरण सामने है जिन्हें ‘हम तुम’
के लिए नेशनल
अवार्ड तब मिला था जब उनकी मां शर्मिला टैगोर सेंसर बोर्ड की अध्यक्ष थीं और केंद्र
में कांग्रेस की सरकार थी जिससे सैफ के परिवार की नजदीकियां सबको मालूम हैं। इस फिल्म
के ठीक बाद सैफ की ‘ओंकारा’ आई थी और कहा गया था कि
अगर इस फिल्म के लिए सैफ को अवार्ड मिलता तो कोई उंगली ही नहीं उठनी थी।
रही बात ‘दंगल’
के आमिर
खान की तो इधर इस बार अवार्ड देने वाली जूरी के अध्यक्ष फिल्मकार प्रियदर्शन की टिप्पणी
गौर करने लायक है कि ‘जब आमिर खुले तौर पर यह कह चुके हैं कि पुरस्कारों
और पुरस्कार-समारोहों में उनका यकीन नहीं है तो हम क्यों न उन्हें सम्मानित करें जिन्हें
पुरस्कारों की कद्र है।’ यहां यह याद करना मुनासिब
होगा कि जब आमिर की बनाई ‘तारे जमीन पर’ को नेशनल अवार्ड मिला था
तो वह पुरस्कार समारोह में ही नहीं आए थे। वैसे प्रियदर्शन का यह सवाल भी ध्यान देने
लायक है कि पिछले साल रमेश सिप्पी की अध्यक्षता वाली जूरी ने जब सिप्पी के बेहद करीबी
दोस्त अमिताभ बच्चन को ‘पीकू’ के लिए यही पुरस्कार दिया
था तब कोई शोर क्यों नहीं मचा?
शिल्पी रस्तोगी |
खैर, जो भी हो। एक बार फिर यह
बात सही साबित हुई कि जब-जब अवार्ड की घोषणा होती है तो विवाद होते ही हैं। पहले भी
हुए, इस बार भी और यकीन मानिए, आगे भी होते रहेंगे।
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