-खबर है कि आप इस फिल्म को करने से हिचक रही थीं। क्यों?
-दरअसल मैं निजी तौर पर रीमेक में काम करने के लिए ज्यादा उत्साहित नहीं होती हूं। खासतौर पर अगर वह किसी क्लासिक फिल्म का रीमेक हो। इस फिल्म का जब ऑफर आया तब भी यही बात थी क्योंकि ‘राजकहिनी’ एक ऐसी फिल्म है जिसे क्लासिक माना जाता है और जब इस तरह की फिल्म को फिर से बनाया जाता है तो इम्तिहान काफी कड़ा हो जाता है।
-तो फिर कैसे आप इसे करने को राजी हुईं?
-कई बार आपके अंदर के कलाकार की भूख आपके अपने ही बनाए नियमों से ऊपर निकल जाती है। जब मैंने ‘राजकहिनी’ देखी तो मुझे लगा कि मुझे यह फिल्म करनी चाहिए क्योंकि बतौर एक कलाकार यह मुझे बहुत कुछ देने वाली है।
-आपको इतने अलग-अलग किरदारों में देखने के बाद लगता नहीं कि अब आपको कुछ मुश्किल लगता होगा। लेकिन क्या इस फिल्म को करते समय क्या कुछ ऐसा था जो आपको मुश्किल लगा?
-बहुत अच्छा लगता है यह सुन कर कि लोगों को ऐसा लगता है कि मेरे लिए कुछ मुश्किल नहीं है पर हर बार मुझे लगता है कि मैं नहीं कर सकती या नहीं कर पाऊंगी। जब पहली बार भट्ट साहब और श्रीजित मेरे पास यह फिल्म लेकर आए तो बतौर एक्टर मैं हां कहना चाहती थी लेकिन अंदर कहीं मैं हिचक रही थी, मुझे लग रहा था कि यह फिल्म बहुत कुछ मांग रही है मुझसे और क्या मैं इसे इतना दे पाऊंगी?
-असल में इतना एग्रेसिव किरदार मैंने अब तक नहीं निभाया था। मुझे दरअसल गुस्सा करना नहीं आता। मुझे किसी को भी गुस्सा करने में बहुत दिक्कत होती है। मुझे याद है कि ‘परिणीता’ में एक सीन था जहां मुझे अपने मामा जी को डांटना था और फिल्म के बाद विधु विनोद चोपड़ा जी का मुझे फोन आया कि पूरी फिल्म में तुमने इतना अच्छा काम किया लेकिन वो एक सीन है जो तुम नहीं कर पाईं। तो ‘बेगम जान’ में मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज यही था और इसीलिए मैं बार-बार श्रीजित से बेगम जान के बारे में सवाल पूछती रहती थी ताकि मैं इस किरदार को ज्यादा से ज्यादा अपने अंदर ले सकूं और समझ सकूं कि क्या चीजें थीं, क्या घटनाएं थीं जिनकी वजह से उसके अंदर इतना गुस्सा है और वह जो है, किस वजह से है।
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