-प्रभात पाण्डेय...
संगीतकार विनोद |
हिन्दी फिल्मों के सुरीले सफर में विनोद नाम का एक ऐसा संगीतकार भी था जो महज 13 साल तक फिल्मों में सक्रिय रहा और सिर्फ साढ़े सैंतीस की उम्र में दुनिया छोड़ गया। इस लगभग गुमनाम संगीतकार का एक गीत ‘लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा, अड्डी टप्पा अड्डी टप्पा लाई रखदा...’ आज भी उनकी याद दिलाने के लिए पर्याप्त है।
हिन्दी फिल्म-संगीत को अपने सुरों से सुशोभित करने वाले विनोद का असली नाम एरिक रॉबर्ट्स था। 28 मई, 1922 को लाहौर के एक ईसाई परिवार में जन्मे विनोद जन्म से ही अत्यंत प्रतिभावान गायक व संगीतकार थे। मात्र 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना एक रिकॉर्ड ‘सामने आएगा कोई, जलवा दिखाएगा कोई’ रिलीज कर दिया था। विनोद उस दौर के सुप्रसिद्ध संगीतकार पंडित अमरनाथ के शिष्य और सहयोगी थे। यह वही पंडित अमरनाथ थे जिनके दो भाई हुस्नलाल-भगतराम भी हिन्दी फिल्मों से बतौर संगीतकार जुड़े। 1948 में विनोद ने 3 हिन्दी फिल्मों ‘खामोश निगाहें’, ‘पराए बस में’ और ‘कामिनी’ में संगीत दिया लेकिन ये तीनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल न हो सकीं। फिर 1948 में उन्होंने एक पंजाबी फिल्म ‘चमन’ में संगीत दिया जिसमें लता मंगेशकर के गाए तीन पंजाबी गीत थे और ये तीनों ही बेहद लोकप्रिय हुए।
पत्नी शीला और दोनों बेटियों के साथ विनोद |
हिन्दी फिल्मों में विनोद को पहली और बड़ी सफलता 1949 में आई फिल्म ‘एक थी लड़की’ से मिली जिसमें लता, जी.एम. दुर्रानी व मौहम्मद रफी का गाया कांगड़ा की पहाड़ी लोक-धुन पर आधारित गीत ‘लारा लप्पा लारा लप्पा लाई रखदा...’ खूब चला। यहां तक कि इस गीत को पर्दे पर गाने वाली अभिनेत्री मीना शौरी तो ‘लारा लप्पा गर्ल’ के नाम से ही मशहूर हो गई थीं। इसी फिल्म के एक गीत ‘दिल्ली से आया भाई पिंगू...’ में खुद विनोद भी पर्दे पर नजर आते हैं। विनोद ने शीला बैट्टी से शादी की थी जिसके बाद वह लाहौर से दिल्ली आ गए। इसके बाद वह बंबई जा पहुंचे जहां उन्होंने ‘अनमोल रतन’(1950), ‘वफा’ (1950-संगीतकार बुलो सी रानी के साथ), ‘मुखड़ा’ (1951), ‘सब्जबाग’ (1951), ‘आग का दरिया’ (1953), ‘लाड़ला’ (1954), ‘ऊटपटांग’ (1955), ‘मुमताज महल’ (1957) जैसी कई फिल्मों में सुंदर एवं श्रेष्ठ संगीत दिया।
उन्होंने कुल 32 फिल्मों (27 हिन्दी और 5 पंजाबी) में संगीत देने के अतिरिक्त कुछ गैर-फिल्मी गीतों की धुनें भी बनाईं। विनोद के संगीत का एक विशिष्ट पहलू उनका हिन्दी फिल्मों में पंजाबी गीत व पंजाबी फिल्मों में हिन्दी गीत देना था। ऐसे गीतों में हिन्दी फिल्म ‘सब्जबाग’ (1951) में लता का गाया पंजाबी गीत ‘नी मैं कैंदी रह गई...’ और पंजाबी हिट फिल्म ‘मुटियार’ (1951) में तलत द्वारा गाई यादगार गज़ल ‘ऐ दिल मुझे जाने दे, जिस राह पे जाता हूं...’ उल्लेखनीय हैं।
विनोद की दोनों बेटियां वीना और वीरा |
लेकिन यह विनोद का दुर्भाग्य ही रहा कि श्रेष्ठ संगीत देने के बावजूद उनकी अधिकांश फिल्में छोटे बैनर्स की थीं और बॉक्स ऑफिस पर सफल न हो सकीं जिसके चलते विनोद को न शोहरत मिली और न ही बड़े बैनरों की फिल्में। धीरे-धीरे वह आर्थिक रूप कमजोर पड़ने लगे और निराशा ने उन्हें शराब की लत डाल दी। गुर्दे की समस्या भी होने लगी। ऐसे में 1957 के एक दिन संगीतकार ओ.पी नैयर उन के घर पहंुचे और विनोद के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए बिना आड़े वक्त में उनकी मदद करने के इरादे से उनकी दो बेटियों-वीना और वीरा (शादी के बाद वीना सोलोमन व वीरा मिस्त्री) में से बड़ी बेटी 9 वर्षीय वीना से एक गाना सुनाने को कहा। गाना सुनने के बाद गाने की प्रशंसा करते हुए उन्होंने उस बच्ची के हाथ में 500 रुपए रखे और चुपचाप चले गए।
गायिका मीनल वाघ और सुलोचना के साथ विनोद |
1959 में उनका भाग्य पलटा। उस समय के प्रसिद्ध बैनर ‘फिल्मिस्तान’ ने उन्हें अपनी फिल्म ‘एक लड़की सात लड़के’ में संगीत देने का अनुबंध किया। उन्होंने पांच में से दो गीत तैयार कर भी लिए लेकिन एक दिन शेव करते समय उनके चेहरे पर ब्लेड लग गया जिससे उन्हें टिटनेस हो गया। खराब गुर्दे के कारण यह समस्या और बढ़ गई और उन्हें अस्पताल में दाखिल होना पड़ा। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि यदि उन्हें केवल एक वर्ष का जीवन-दान मिल जाए तो वह इस फिल्म का संगीत पूरा कर लेंगे। लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था ठीक क्रिसमस के बड़े दिन यानी 25 दिसंबर, 1959 को वह चल बसे। उनके बाद इस फिल्म के बाकी तीन गीतों को संगीतकार एस. मोहिंदर ने पूरा किया। आज 28 मई को विनोद के जन्मदिन पर हम उन्हें उनके दिए यादगार संगीत के लिए नमन करते हैं।
प्रभात पाण्डेय |
(प्रभात पाण्डेय खनन इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रहे हैं। 40 से 60 के दशक के हिन्दी फिल्म-संगीत के वह चितेरे हैं। रिटायरमैंट के बाद अब वह वाराणसी में रह कर सुनहरे दौर के फिल्म-संगीत के श्रवण, मनन, अध्ययन और रिसर्च में समय व्यतीत करते हैं।)