-दीपक दुआ...
दिल्ली में रोहिणी स्थित जी3एस सिनेमा |
रमजान शुरू और फिल्में बंद। कुछ समय पहले तक हिन्दी सिनेमा के कारोबार की यही तस्वीर हुआ करती थी। हालांकि हाल के बरसों में ट्रैंड थोड़ा बदला है लेकिन अभी भी बड़ी फिल्मों के निर्माता रमजान में अपनी फिल्में रिलीज करने से बचते हैं और इस साल भी यही सूरत है।
फिल्म पत्रकार सरफराज सिद्दिकी |
फिल्मी कारोबार के बन गए या बना दिए गए ढेरों नियमों, कायदों और मिथकों में से एक काफी पुराना नियम रहा है रमजान के पवित्र महीने के दौरान बड़ी फिल्मों को रिलीज न करना। दरअसल इस नियम के पीछे विशुद्ध कारोबारी कारण रहता आया है। फिल्म पत्रकार सरफराज सिद्दिकी का कहना है कि इस दौरान बड़ी तादाद में मुस्लिम वर्ग के लोग मनोरंजन के साधनों से दूर रह कर रोजे और इबादत में मसरूफ रहते हैं और चूंकि किसी फिल्म को हिट कराने में मुस्लिम दर्शकों की बड़ी भूमिका मानी जाती रही है सो कोई भी बड़ा निर्माता इस दौरान अपनी बड़ी फिल्म को लाने का जोखिम नहीं उठाता है।
बात सही भी है और यही कारण है कि रमजान आने से पहले वाले शुक्रवार को बड़ी फिल्में निबटा दी जाती हैं और एक बार रमजान शुरू हो जाए तो फिर ऐसी फिल्में नहीं आतीं जिनके निर्माताओं को यह भरोसा हो कि ये फिल्में तो हर वर्ग के लिए है। 2017 की तस्वीर देखें तो रमजान से पहले ‘हाफ गर्लफ्रैंड’ और ‘हिन्दी मीडियम’ के बाद अब किसी बड़ी फिल्म के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा और जाहिर है यह इंतजार ईद पर आने वाली बिग-बजट फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ ही खत्म करेगी।
पर इधर हालात थोड़े बदले भी हैं। पिछले कुछ सालों में रमजान के दौरान भी बड़े बजट और बड़ी स्टार कास्ट की फिल्में आने लगी हैं और इनमें से कुछ एक ने अच्छा बिजनेस भी किया है। 2011 के रमजान में प्रकाश झा जैसे बड़े निर्देशक की अमिताभ बच्चन, सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण वाली बेहद महंगी फिल्म ‘आरक्षण’ का आना इस परंपरा की नींव हिलाने के लिए काफी रहा। 2012 में ‘क्या सुपर कूल हैं हम’ और ‘जिस्म 2’ जैसी दो ऐसी फिल्में रमजान में आईं जिनका इंतजार दर्शकों को लंबे समय से था। अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर 2’ भी रमजान में ही रिलीज हुई। 2013 में रमजान के दौरान ‘रमैया वस्तावैया’, ‘डी डे’, ‘बजाते रहो’ जैसी फिल्में आईं।
सिने-विश्लेषक विनोद मिरानी |
2014 में ‘हंपटी शर्मा की दुल्हनिया’ और ‘हेट स्टोरी 2’ ने भरपूर कामयाबी पाकर इस मिथ को ज़ोर से तोड़ा। 2015 में ‘एबीसीडी 2’ और ‘बाहुबली’ ने आकर कामयाबी पाई तो वहीं 2016 में ‘हाऊसफुल 3’ ने रमजान शुरू होने से ठीक पहले आकर थिएटरों में कब्जा जमा लिया और किसी बड़ी फिल्म के न होने का फायदा लूटा। ‘उड़ता पंजाब’ भी 2016 के रमजान में ही आई थी। सिने-विश्लेषक विनोद मिरानी कहते हैं कि फिल्में रिलीज करने के अच्छे मौके अब वैसे ही काफी कम रह गए हैं ऐसे में रमजान के दौरान चार शुक्रवारों को खराब करने की बजाय समझदारी से फिल्में रिलीज करने का सिलसिला अब शुरू हो चुका है।
2017 की बात करें तो रमजान के दौरान बड़ी फिल्में लापता हैं। जो ‘स्वीटी वैड्स एनआरआई’, ‘दोबारा’, ‘बहन होगी तेरी’ आ रही हैं वे दरअसल खाली पड़े मैदान का फायदा उठाने की फिराक में हैं। रमजान खत्म होने से हफ्ता भर पहले यशराज की ‘बैंक चोर’ और अश्विनी चैधरी की ‘अतिथि इन लंदन’ के आने को भी समझदारी माना जा सकता है क्योंकि फिर ईद पर तो सलमान के ही जलवे होने की उम्मीद है।
जी3एस सिनेमा के महाप्रबंधक सतीश गर्ग |
वैसे फिल्मी कारोबार से जुडे़ लोगों का मानना है कि अच्छी फिल्में चाहे जब आएं, चलती ही हैं। दिल्ली में रोहिणी स्थित जी3एस सिनेमा के महाप्रबंधक सतीश गर्ग कहते हैं कि बड़े शहरों और खासकर मल्टीप्लेक्स सिनेमाघरों में फिल्मों की मांग हमेशा बनी रहती है क्योंकि इनमें रमजान के दौरान फिल्मों से दूर रहने वाले मुस्लिम दर्शक काफी कम आते हैं। शायद यही वजह है कि रमजान को लेकर जो मिथक बरसों से चले आ रहे थे वे अब दरकने लगे हैं।
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