Friday, 6 April 2018

रिव्यू-छल और कपट का खेल-‘ब्लैकमेल’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
पति एक दिन जल्दी घर गया तो देखा कि पत्नी अपने प्रेमी के साथ बिस्तर में है। पैसे की तंगी झेल रहा पति प्रेमी को ब्लैकमेल करने लगा। मगर प्रेमी खुद अपनी पत्नी के पैसों पर पल रहा है। तो वह अपनी प्रेमिका यानी ब्लैकमेलर की पत्नी को ही ब्लैकमेल करने लगा। पत्नी पैसे कहां से लाती। उसने झूठ बोल कर पति से मांगे। पति तो पहले ही उसके प्रेमी से मांग रहा था।

कहानी दिलचस्प लगती है। है भी। इसके साथ जोड़े गए दूसरे प्लॉट भी दिलचस्प हैं। मसलन पति के ऑफिस की एक लड़की भी उसे ब्लैकमेल कर रही है। उसे ढूंढने निकला जासूस भी उसे ब्लैकमेल कर रहा है। उधर प्रेमी और उसकी अमीर पत्नी का अलग एंगल है और इधर पति के ऑफिस की भी अपनी कहानी है। कहानी उलझी हुई होने के बावजूद कन्फ्यूज नहीं करती है। फिल्म दिखाती है कि यहां कोई दूध का धुला नहीं है और जिसे मौका मिल रहा है वह दूसरे को ब्लैकमेल कर रहा है। लेकिन जिस तरह से डायरेक्टर ने दर्शकों को बहुत ज्यादा समझदार मानते हुए कई जगह कहानी के सिरे खुले छोड़ दिए कि वे इसे खुद समझ जाएंगे, वे दिक्कत पैदा करते हैं। पति और पत्नी के संबंध ठंडे क्यों हैं? क्यों पति ऑफिस के बाद भी वहां बैठ कर टाइम पास करता है? पति-पत्नी आपस में ठीक से बात तक नहीं करते लेकिन ऑफिस से निकलने से पहले वह रोज उसे मैसेज भेज कर बताता है कि मैं रहा हूं, क्यों? उसे किसी दूसरे मर्द के साथ देखने के बाद बैकग्राउंड में जो गाना बजता है उसके शब्द इन दोनों के संबंधों की उष्मा से मेल नहीं खाते। और अंत में अचानक से कहानी जैसे खत्म हो जाती है, दर्शक बेचारा ठगा-सा रह जाता है। निर्देशक अभिनय देव इसे दिल्ली बैलीवाले फ्लेवर से परे ले जाते तो यह एक धांसू फिल्म हो सकती थी।

दरअसल इस किस्म की कहानियां तेज रफ्तार के साथ पैनापन, चुटीलापन, कसावट और रोमांच मांगती हैं। इस फिल्म में ये सब कुछ है मगर अपर्याप्त है और सही जगह पर नहीं है। हां, दिलचस्प किरदारों और कलाकारों की एक्टिंग के मामले में ये कम नहीं है। इरफान, दिव्या दत्ता, अरुणोदय सिंह, प्रभा बनीं अनुजा साठे और जासूस चावला बने गजराज राव बेमिसाल रहे हैं। एक गाने में आईं उर्मिला मातोंडकर झुर्रियां ही दिखा गईं। हर फिल्म में किसी एक हिट पंजाबी गाने का बुखार टी सीरिज के सिर चढ़ गया लगता है।
अपनी रेटिंग-ढ़ाई स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

1 comment:

  1. Bahut achhi banta bante sirf achhi ban ke reh gae...Thank u sir

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