Sunday, 22 April 2018

पुस्तक समीक्षा-कड़वी कहानियों का संग्रह

-दीपक दुआ...
प्रिया गर्ग पहले हिन्दी पढ़ाती थीं। अब वह हिन्दी में लिखती हैं। अपनी लिखी 10 कहानियों के इस पहले संग्रह को उन्होंने मेरा रेप हुआ थाका नाम दिया है। वह कहती हैं कि इस किताब में शामिल कहानियां गढ़ी नहीं गईं बल्कि यूं ही आसपास मिलती चली गईं। नए लेखकों के साथ आमतौर पर ऐसा ही होता है। अपने आसपास की घटनाओं, किरदारों पर गौर करने की उनकी क्षमता और उन्हें कहानियों में पिरोने की कुव्वत ही उन्हें लेखक बनने की ओर अग्रसर करती है। प्रिया की इन कहानियों में नयापन नहीं दिखता। इन कहानियों के किरदार और घटनाएं हम रोज़ अपने आसपास की दुनिया में देखते-सुनते हैं। लेकिन हममें से कितने हैं जो उन किरदारों से, उन घटनाओं से विचलित होते हैं? प्रिया जरूर हुई होंगी। उनकी कहानियों में कसक है, उन घटनाओं के प्रति दर्द है। हां, उन्होंने इन कहानियों को अपने जेहन में थोड़ा और पकाया होता तो ये और ज्यादा निखर कर आतीं। लेखन में प्रिया अभी नई हैं। उनकी कलम का कच्चापन भी छुपा नहीं रह पाता। लेकिन अपनी कहानियों में वह जरूरी कड़वाहट लाने में कामयाब रही हैं। नोशनप्रेस से आई इस किताब की इन कहानियों को पढ़ कर जेहन में कसैला स्वाद आता है। यही इन कहानियों की और बतौर लेखिका प्रिया की सफलता है।

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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