Sunday 21 July 2019

रिव्यू-आज में जीने का आनंद देती ‘अरदास करां’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
पंजाबी फिल्मों के मस्ती-मज़ाक और हो-हल्ले के बीच अरदास करांकिसी सुहानी हवा के खुशबूदार झोंके सरीखी लगती है। पंजाबी गायिकी के स्टार गिप्पी ग्रेवाल ने एक्टिंग के मैदान में उतरने के बाद 2016 में अरदाससे निर्देशन की कमान संभाली थी जिसे काफी ज़्यादा पसंद किया गया था। अब इस फिल्म में वह एक बार फिर निर्देशक और एक्टर के तौर पर सामने आए हैं।

ब्रिटेन में रह रहे पंजाबी परिवारों में रहे और चुके जेनरेशन गैप और तालमेल की कमियों की बात कहती इस फिल्म की कहानी साधारण है। अपने-अपने बच्चों से तंग आकर कुछ दिन के लिए दुनिया घूमने निकल पड़े तीन बुज़ुर्गों को उनका ड्राईवर मैजिक (गुरप्रीत घुग्गी) ज़िंदगी को खुल कर जीने के ऐसे-ऐसे मंत्र बताता है कि इन तीनों का घर-परिवार और ज़िंदगी पर विश्वास लौटने के साथ-साथ और पुख्ता हो उठता है। यह अलग बात है कि इन्हें जीना सिखा कर मैजिक खुद मर जाता है।


अपनी पिछली फिल्म अरदासमें हृषिकेश मुखर्जी की बावर्चीसरीखी कहानी दिखाने के बाद गिप्पी ने इस बार उन्हीं की आनंदका दामन थामा है। साधारण लगती यह फिल्म अपने संवादों के ज़रिए गहरा असर छोड़ पाने में कामयाब रही है। इसका एक-एक संवाद दिल छूता है, कचोटता है, भावनाओं का उभारता है और बहुत बार आंखें भी नम करता है। अपनों से ही नहीं, हर किसी से रल-मिल-जुल कर जीने की सीख देती इस फिल्म की बड़ी खासियत यह भी है कि यह किसी को बुरा नहीं बताती, किसी एक पक्ष में जाकर खड़ी नहीं होती बल्कि दिखाती है कि जैसा बोओगे, वैसा ही काटने को मिलेगा।

गिप्पी ग्रेवाल और सपना पब्बी के रोल छोटे हैं लेकिन इनका काम अच्छा है। सबसे शानदार किरदार मैजिक का है जिसे घुग्गी ने जी-जान से निभाया है। गिप्पी के बेटे शिंदा ग्रेवाल में भरपूर मासूमियत के साथ-साथ अद्भुत अभिनय-क्षमता भी है। जपजी खेरा, मेहर विज, योगराज सिंह, राणा रणबीर, राणा जंग बहादुर जैसे सभी कलाकार अपने-अपने किरदारों में फिट रहे हैं। फिल्म की लोकेशंस बहुत प्यारी हैं और मोह लेती हैं। फिल्म की एक और बड़ी खूबी इसके गीत है जिनके शब्द फिल्म के मिज़ाज के साथ घुल-मिल कर फिल्म के असर को गाढ़ा करते हैं। संगीत और आवाजे़ं उम्दा हैं।

यह फिल्म बहुत उम्दा होने के बावजूद प्यार-मोहब्बत की सीख देती है, मिल-जुल कर, खुल कर, बीते  कल को भुला कर आज में जीना सिखाती है। ऐसी बातें कहती है जो पता हम सब को हैं, लेकिन उन्हें मानता कोई-कोई है। पंजाबी सिनेमा को एक सार्थक दिशा भी यह देती है। इसे परिवार के साथ बैठ कर देखा जाना चाहिए। और हां, इसे देखते हुए आंखें भीगें तो उन्हें रोकिएगा नहीं। जो बहेगा, वह मैल ही होगा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्डके सदस्य हैं और रेडियो टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

5 comments:

  1. आज सोच रहा था रविवार को क्या करूँ।आभार आपका अब जाता हूं फ़िल्म देखने

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  2. बहुत खूब क्या विचार पेश किए हैं धन्यवाद दीपक भाई लगता है आप अपने इस फिल्म को बड़े ध्यान से देखा और समझा है

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