अगर आप सलमान खान के फैन हैं तो इस सवाल का सिर्फ एक ही जवाब हो सकता है-सलमान खान।
तो बस खुश हो जाइए, यह फिल्म आपके लिए ही है।
अब रही बात उनकी जो किसी फिल्म को उस फिल्म के लिए देखते हैं और आंख मूंद कर यूं ही किसी के फैन नहीं हो जाते। तो सुनिए, यह खेल पर आधारित फिल्म नहीं है। हां इसमें कुश्ती है, फिल्म के नायक और नायिका पहलवान हैं और कुश्ती करना, जीतना, मैडल लाना ही उनका सपना है। बावजूद इसके इस फिल्म को एक स्पोर्ट्स-फिल्म नहीं कह सकते। मुख्यतः यह एक लव-स्टोरी है जिसमें छिछोरा नायक पहलवान नायिका को प्रभावित करने के फेर में पहलवानी करने लगता है और फिर उसके हाथों बेइज्जत होकर इसी काम को सीरियसली ले लेता है। फिर कुछ ऐसा होता है कि वह पहलवानी छोड़ देता है। इसके बाद वह लौटता है तो किसी और को नहीं बल्कि अपने-आप को जीतने के लिए।
कहानी भले ही साधारण हो मगर यह रोचक है और पहले से अंदाजा लगने वाले कई मोड़ों के बावजूद इनसे गुजरते हुए रोमांच होता है। हां, कई जगह यह गैरजरूरी बातें करने लगती है और इसकी रफ्तार भी बेहद धीमी हो जाती है। 10-15 मिनट की एडिटिंग इसे और चुस्त बना सकती थी। लेकिन फिल्म के ही एक संवाद के मुताबिक यह हार नहीं मानती और धूल झाड़ कर फिर से उठ खड़ी होती है और दौड़ने भी लगती है। कुश्ती के खेल के बहाने यह जिंदगी से जुड़ी सीखें देती है। कई संवादों और दीवार पर लिखे ‘शौचालय बनवाएं’ सरीखे नारों के जरिए इसमें कुछ एक सामाजिक संदेश भी हैं। सलमान की फिल्म में मसालेदार मनोरंजन का होना जायज है, अपेक्षित है और स्वाभाविक भी। ऐसे में कई सारी बातों को अनदेखा करना पड़ता है।
निर्देशक अली अब्बास जफर अपनी पिछली दोनों फिल्मों ‘मेरे ब्रदर की दुल्हन’ और ‘गुंडे’
में बता चुके हैं कि उन्हें कमर्शियल ढांचे में ऐसी फिल्में बनानी आती हैं जो महान भले न हों मगर कामयाब होती हैं। इस बार भी वह अपनी इस कोशिश में सफल हुए हैं। और यह फिल्म तो बॉक्स-ऑफिस पर धोबी-पछाड़ वाला दांव मारने जा रही है।
सलमान खान अपने रोल की जरूरत के मुताबिक कभी छिछोरे तो कभी गंभीर हो जाते हैं और जंचते हैं। अनुष्का शर्मा, अमित साध, कुमुद मिश्रा, परीक्षित साहनी, रणदीप हुड्डा अपने किरदारों को कायदे से जीते हैं। सलमान के दोस्त गोविंद के किरदार में अनंत शर्मा सबसे ज्यादा प्रभावी रहे हैं। विशाल-शेखर का संगीत अच्छा है। इरशाद कामिल अपने गीतों में जरूरी भावनाएं लाने में कामयाब रहे हैं।
अगर आपको मनोरंजन चाहिए, साफ-सुथरा, बिना लाग-लपेट वाला, तो आप इस फिल्म से निराश नहीं होंगे। और हां, आप सलमान के फैन न भी हों तो भी इसे देख सकते हैं-परिवार और दोस्तों के साथ। वो क्या कैवें हैं अंगरेजी में... मस्ट वॉच...!
अपनी रेटिंग-साढ़े तीन स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
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