-दीपक दुआ...
2020 की पहली तिमाही खत्म हुई। हर साल की तरह इस साल के पहले तीन महीनों में भी ढेरों फिल्में रिलीज़ हुईं और इनमें से काफी सारी फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर रंग भी बिखेरे। मार्च के मध्य में आकर अगर कोरोना की महामारी के चलते सिनेमाघरों पर ताला नहीं लगता तो बेशक ये रंग और भी निखरते। खैर, आइए इस साल के पहले तीन महीने में रिलीज़ हुई फिल्मों के मिज़ाज और हिसाब-किताब पर नज़र दौड़ाएं।
आमतौर पर नए साल की शुरूआत पिछले साल क्रिसमस के मौके पर रिलीज हुई और बॉक्स-ऑफिस कब्जा जमाए बैठी फिल्म से होती है। यह भी एक कारण है कि साल के पहले शुक्रवार को बड़ी फिल्में नहीं आती हैं। इस साल भी यही हुआ। 2019 के अंत में आई अक्षय कुमार की ‘गुड न्यूज़’ ने टिकट-खिड़की पर लठ्ठ गाढ़ा हुआ था सो इस साल के पहले दस दिन भी इसी की चली।
आंकड़ों की बात करें तो 2019 की पहली तिमाही में आईं 64 फिल्मों के मुकाबले इस साल के पहले तीन महीनों में 50 फिल्में रिलीज़ हुईं। पिछले साल जहां हिट फिल्में 5 थीं और औसत 4, वहीं इस साल हिट फिल्में दो रहीं और औसत आठ। यह अलग बात है कि दिलों को जीत पाने का दम किसी-किसी में ही नजर आया।
तान्हा जी ने छुआ आसमान
एक अनजान निर्देशक ने एक गुमनाम योद्धा पर ‘तान्हा जी-द अनसंग वॉरियर’ नाम से एक फिल्म बनाई जिसके खिलाफ कई लोगों ने छाती कूट-कूट कर विलाप भी किया। लेकिन सिनेमा के पर्दे पर शौर्य की कहानियां देखने के शौकीन दर्शकों ने इस फिल्म को सिर-माथे पर जगह दी और इस फिल्म ने इतनी तगड़ी कलैक्शन की कि इसने हर किसी की बोलती बंद कर दी। मेघना गुलज़ार की ‘छपाक’ ने एसिड अटैक जैसे संवेदनशील मुद्दे को उठाया लेकिन इस फिल्म की कमज़ोर कहानी और उस कहानी में संवेदनाओं की कमी ने इसकी रफ्तार थाम ली और यह औसत बिज़नेस ही कर सकी। कंगना रानौत वाली ‘पंगा’ और सैफ अली खान वाली ‘जवानी जानेमन’ में वो बात नहीं थी कि ये हर किसी को भाते हुए सफलता के रास्ते पर सरपट दौड़तीं, सो ये भी औसत ही रहीं। पद्मिनी कोल्हापुरे के बेटे प्रियांक शर्मा और रवि किशन की बेटी रीवा किशन की शुरूआत ‘सब कुशल मंगल’ जैसी कमज़ोर फिल्म से हुई। कभी ‘शोले’ दे चुके रमेश सिप्पी जैसे निर्देशक की ‘शिमला मिर्ची’ का तो कहीं नाम भी नहीं सुना गया। ‘जय मम्मी दी’ ने एक अच्छी बन सकने वाली कहानी का कूड़ा किया और पिटी। ‘स्ट्रीट डांसर 3डी’ ने डांस तो उम्दा परोसा लेकिन इस किस्म की फिल्में सिर्फ युवाओं तक ही सिमट कर रह जाती हैं। हिमेश रेशमिया ‘हैप्पी हार्डी और हीर’ से फिर यातनाएं देने आए। ‘गुल मकई’ ने कहा कुछ, दिखाया कुछ और पिटी बड़े ज़ोर से। ‘अंतर्व्यथा’, ‘भंगड़ा पा ले’, ‘इंग्लिश की टायं टार्य फिस्स’, ‘सब ने बना दी जोड़ी’ जैसी कई फिल्मों के आने-जाने का पता ही नहीं चला।
छोटे महीने में ढेरों फिल्में
फरवरी में 24 फिल्में आईं जिनमें से विधु विनोद चोपड़ा की ‘शिकारा’ अपने उद्देश्य से भटक कर फ्लॉप हुई। जिन कश्मीरी पंडितों की व्यथा दिखाने की बात इसने की, उन्होंने भी इसे नहीं सराहा। अनिल कपूर वाली ‘मलंग’, विक्की कौशल वाली ‘भूत पार्ट वन-द हॉन्टेड शिप’, तापसी पन्नू वाली ‘थप्पड़’ अपने-अपने तय दर्शक-वर्ग को भाईं और औसत कहलाईं। विक्रम भट्ट की ‘हैक्ड’ की हवा भी नहीं आई। इम्तियाज़ अली की ‘लव आज कल 2020’ इस कदर उलझी हुई थी कि टिकट-खिड़की पर अपने ही धागों में फंस कर गिर गई। ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’ ने एक ‘हट कर’ वाली कहानी को उम्दा अंदाज़ में दिखाया और सेमी-हिट तक जा पहुंची। दैदीप्य जोशी की ‘कांचली’ बढ़िया निकली लेकिन इस किस्म की फिल्में बड़े पर्दे पर भला कहां कुछ हासिल कर पाती हैं। इस महीने की ‘ओ पुष्पा आई हेट टियर्स’, ‘रिज़वान’, ‘कुकी’ जैसी ढेरों फिल्मों के तो नाम भी सामने नहीं आए।
बागी के बाद हुई बगावत
मार्च का महीना ठीक से शुरू हुआ। ‘बागी 3’ जैसी मसालेदार फिल्म ने सूने पड़े बॉक्स-ऑफिस को सहारा दिया और कुछ बेहतर न होने के बावजूद अपने एक्शन और मसालों के दम पर यह हिट तक जा पहुंची। इसके साथ आई संजय मिश्रा वाली ‘कामयाब’ को सिर्फ कुछ खास दर्शकों की तारीफों से काम चलाना पड़ा। इरफान खान वाली ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ अच्छे अभिनय से सजी कमज़ोर कहानी वाली फिल्म निकली। यह फिर भी औसत बिज़नेस कर जाती लेकिन इसके आते ही कई राज्यों में और फिर पूरे देश में सिनेमाघर बंद हो गए और यह अपना-सा मुंह लेकर किनारे हो गई।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी.
से भी जुड़े हुए हैं।)
सन्नाटे का वायरस ..आपके कलम की आवाज़ भी सुनने नहीं दे रहा ।
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