नेत्रा पाटिल को जाना है स्विट्जरलैंड लेकिन उसकी किस्मत में लिखी है एक सरकारी दफ्तर की क्लर्की। ए.सी.पी. सौम्या शुक्ला खुद को समझती है जेम्स बॉण्ड लेकिन डिपार्टमैंट ने उसे बना रखा है आइटम गर्ल। दोनों के सपने जुदा, दुनिया जुदा, ज़िंदगी जुदा, ज़िंदगी जीने का ढंग जुदा। एक जगह ये दोनों मिलती हैं और फिर साथ चलने लगती हैं। दरअसल नेत्रा मरने वाली है। उसके पास सिर्फ हंड्रेड डेज़ (सौ दिन) हैं। इस दौरान वह वो सब कुछ कर लेना चाहती है,
जो उसने अभी तक नहीं किया। उसे अपनी बची हुई ज़िंदगी में एक्साइटमैंट चाहिए और यह एक्साइटमैंट उसे देती है ‘सौम्या मईडम’ अपनी मुखबिर बना कर।
डिज़्नी हॉटस्टार की इस वेब-सीरिज़ की कहानी एक साथ कई तरफ चलती है। नेत्रा के छोटे-से घर, उसके निकम्मे पिता-भाई-नाना से लेकर उसके नाकारा ब्वॉय-फ्रैंड की कहानी हमें मुंबई के मिडल-क्लॉस मराठी परिवार में ले जाती है तो वहीं सौम्या का शानदार घर, उसका डी.सी.पी. पति,
उसका प्रेमी, उसकी अल्ट्रा-मॉडर्न सास-ये लोग हमें एक अलग दुनिया दिखाते हैं। पुलिस डिपार्टमैंट के अंदर की उठा-पटक,
सौम्या को औरत होने के नाते दरकिनार करने की साज़िशें, आगे बढ़ने की उसकी ललक,
नेताओं और मुखबिरों से उसकी दोस्ती-ये सब अलग माहौल रचते हैं। वहीं सौम्या की खबरी के तौर पर नेत्रा के कारनामे भी दिलचस्पी जगाते हैं।
इस सीरिज़ की बड़ी बात इसकी कहानी ही है जो हमें न तो कहीं से ‘फिल्मी’ लगती हैं और न ही बोरियत का अहसास होने देती है। भले ही यह कोई अनोखी, महान कहानी या बेहद कसी हुई स्क्रिप्ट न परोसती हो लेकिन अपने पूरे कलेवर, फ्लेवर और तेवर में यह उतना मनोरंजन ज़रूर परोसती है जो एक आम दर्शक के लिए काफी होता है। इस कहानी में कभी थ्रिलर वाला तनाव आता है तो कभी इमोशनल बहाव, सौम्या के साथ होते सौतेले बर्ताव पर गुस्सा आता है तो नेत्रा की हरकतों पर हंसी। हां, रफ्तार कहीं-कहीं काफी सुस्त पड़ जाती है और सौम्या के बॉस का उससे खार खाना बेवजह-सा लगता है। फिर भी सौम्या और नेत्रा, दोनों को ही अपना मनचाहा करते हुए देख कर भी अच्छा लगता है कि नारी-मुक्ति का झंडा लहराए बिना और आज़ादी के नारे लगाए बिना भी मनमानियां की जा सकती हैं। इसे लिखने वालों और निर्देशित करने वालों की काबिलियत यहीं से झलकती है।
ए.सी.पी. बनीं लारा दत्ता जंचती हैं। बेबसी, चालाकी,
कुटिलताओं के भावों को वह अच्छे-से दिखा पाती हैं। नेत्रा के किरदार में रिंकू राजगुरु स्क्रीन को एनर्जी से भर देती हैं। सुपरहिट मराठी फिल्म ‘सैराट’ (जिस पर हिन्दी में ‘धड़क’ बनी थी) की नायिका के तौर पर हम उन्हें पहले ही देख चुके हैं। उनकी अदाएं, उनकी चुटीली संवाद अदायगी, उनकी आंखों से झलकती शरारतें उनके इस किरदार को दिल में जगह देती हैं। परमीत सेठी, सुधांशु पांडेय, करण वाही, जयंत गाडेकर आदि भी अच्छे रहे हैं।
दो-एक जगह गालियां और ‘ऐसी-वैसी’ बातें भी हैं,
सो बच्चों के साथ बैठ कर न देखें। वैसे, बहुत ज़्यादा और बहुत उम्दा कंटेंट न देते हुए भी यह एक हल्की मुस्कुराहट के साथ काफी अच्छा टाइम-पास एंटरटेनमैंट तो देती ही है।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सिरीज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com)
के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Very interesting
ReplyDeleteAmazing review, I will watch the series. Thank you!
ReplyDelete