-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)गुजराती-मराठी में ‘ढ’ का मतलब होता है-डफर,
यानी पढ़ाई-लिखाई में ज़ीरो, दिमाग से ठस्स। गुजराती की इस फिल्म में ऐसे ही तीन बच्चे हैं-गुनगुन, बजरंग और वकील जो अहमदाबाद के करीब किसी कस्बे में रहते हैं और पांचवीं क्लास में पढ़ते हैं। पढ़ते क्या हैं, घिसटते हैं, पिटते हैं,
ज़ीरो नंबर लाते हैं। यहां तक कि उनकी टीचर उन्हें यह कह देती है कि तुम्हें तो कोई जादू ही पास करवा सकता है। उन्हें भी यह लगता है कि जब जादूगर सूर्या सम्राट अपने शो में कैसे-कैसे करतब दिखा सकता है तो उन्हें भी पास करवा सकता है। ये तीनों जादूगर को चिट्ठी लिखते हैं और जादूगर इनकी मदद के लिए बीरबल को भेज देता है। बीरबल इनकी मदद करता है और ये तीनों सचमुच डफर से बुद्धिमान बन जाते हैं।
पिछले बरस ‘उरी’ के अपने रिव्यू में मैंने लिखा था कि ऐसी फिल्में ज़रूरी हैं ताकि लोगों को सनद रहे कि देश के भीतर बैठ कर नारे बनाना, सुनना और बोलना अलग बात है और सरहद पर जाकर उन नारों पर अमल करना दूसरी। उस फिल्म में 2016 में जम्मू-कश्मीर के उरी में आर्मी कैंप में घुस आए आतंकियों द्वारा 19 जवानों के मारे जाने के बाद भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुस कर आतंकियों के अड्डों को तबाह करने की सर्जिकल स्ट्राइक दिखाई गई थी। सोनी लिव पर मौजूद यह वेब-सीरिज़ ‘अवरोध-द सीज विद् इन’ उसी सर्जिकल स्ट्राइक के लिए की गई घेरेबंदी को ज़रा और विस्तार से, ज़रा और करीब से, ज़रा और गहराई से,
ज़रा और यथार्थपूर्ण तरीके से दिखाती है।
कल्पना कीजिए कि (मरने के बाद हम कहां जाते हैं, इसकी सिर्फ कल्पना ही हो सकती है) मरने के बाद इंसान अंतरिक्ष में घूम रहे बहुत सारे स्पेस-शिप्स में से किसी एक में जाते हैं। वहां मौजूद एजेंट उनका सामान रखवा कर,
उन्हें ठीक करके, उनकी यादें मिटा कर,
फिर से उन्हें इस दुनिया में भेज देते हैं। ये मरे हुए इंसान इन एजेंट्स के लिए ‘कार्गो’ हैं यानी एक पार्सल, जिन्हें अगले ठिकाने तक पहुंचाना इन एजेंट्स का काम है। आप कह सकते हैं कि वाह, क्या अनोखा कॉन्सेप्ट है...! इस पर तो अद्भुत साईंस-फिक्शन बन सकती है। और चूंकि विषय मृत्यु के बाद का है तो इसमें दार्शनिकता भी भरपूर डाली जा सकती है। पर क्या ‘नेटफ्लिक्स’ पर आई यह फिल्म ऐसा कर पाने में कामयाब रही है?