शिव अरूर और राहुल सिंह की लिखी एक किताब के एक चैप्टर पर आधारित इस सीरिज़ की खासियत इसका यही यथार्थवाद और विस्तार है जो हमें उस सारी प्रक्रिया के नज़दीक ले जाता है जो ऐसे किसी मौके पर सेना के एक सिपाही से लेकर सरकार के सबसे ऊंचे ओहदे पर बैठे लोगों के बीच शुरू होती है। नौ एपिसोड की इस सीरिज़ के शुरू के कई एपिसोड भूमिका बांधने, पाकिस्तान की शह पर उछल रहे लोगों की कारस्तानियां दिखाने और सर्जिकल स्ट्राइक करने से जुड़े लोगों की तैयारियां को करीब से दिखाने का काम करते हैं। लेकिन कहानी यहां भी बोर नहीं करती है बल्कि बताती है कि इस तरह के फैसले कितने दबाव में लिए जाते हैं और इसके लिए किस किस्म की तैयारियां होती हैं।
राजनेताओं की सोच,
ब्यूरेक्रेसी के तरीकों, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के साथ-साथ मीडिया के दबावों की तरफ भी यह
कहानी हमें लेकर जाती है। इसे लिखने वालों ने सचमुच एक उम्दा टीम की तरह काम किया है। सेना के हमारे जवानों की तैयारियों को भी यह बेहतरीन तरीके से दिखाती है। आखिरी के दो एपिसोड रोमांच का शिखर छूते हैं और हमें अपने जवानों पर गर्व करने का मौका देते हैं।
निर्देशक राज आचार्य बहुत ही कायदे के साथ इस
कहानी को दिखाते हैं। वे कोई महान ऊंचाइयां भले ही नहीं छूते लेकिन शुरू से वह जिस पटरी पर कहानी कोटिकाते हैं, अंत आते-आते उसे वह काफी ऊपर ले जा चुके होते हैं। विक्रम गोखले, नीरज कबी, अनंत महादेवन, आरिफ ज़कारिया जैसे सधे हुए कलाकारों को अपने किरदारों की आत्मा तक को छूते देखना सुखद लगता है। दर्शन कुमार, अमित साध, पवैल गुलाटी, मधुरिमा तुली, मीर सरवर अपने किरदारों के साथ पुरा न्याय करते हैं। अमित साध अपनी बॉडी के साथ-साथ अपनी भंगिमाओं से भी प्रभावित करते हैं। अबू हाफिज़ बने अनिल जॉर्ज इन सबके बीच अलग ही चमक बिखेरते दिखाई देते हैं।
नेक इरादे के साथ बनी यह सीरिज़ उम्दा मनोरंजन देने के अपने वादे पर खरी उतरती है। मुझे अफसोस है कि मैंने इसे इतनी देर से क्यों देखा।
(रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि सिरीज़ कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।)
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
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