Tuesday 29 September 2020

रेट्रो रिव्यू-हंसाती है, सिखाती है ‘ढ’

-दीपक दुआ...  (Featured in IMDb Critics Reviews)
गुजराती-मराठी मेंका मतलब होता है-डफर, यानी पढ़ाई-लिखाई में ज़ीरो, दिमा से ठस्स गुजराती की इस फिल्म में ऐसे ही तीन बच्चे हैं-गुनगुन, बजरंग और वकील जो अहमदाबाद के री किसी कस्बे में रहते हैं और पांचवीं क्लास में पढ़ते हैं। ढ़ते क्या हैं, घिसटते हैं, पिटते हैं, ज़ीरो नंबर लाते हैं। यहां तक कि उनकी टीचर उन्हें यह कह देती है कि तुम्हें तो कोई जादू ही पास करवा सकता है। उन्हें भी यह लगता है कि जब जादूगर सूर्या सम्राट अपने शो में कैसे-कैसे करतब दिखा सकता है तो उन्हें भी पास करवा सकता है। ये तीनों जादूगर को चिट्ठी लिखते हैं और जादूगर इनकी मदद के लिए बीरबल को भेज देता है। बीरबल इनकी मदद करता है और ये तीनों सचमुच डफर से बुद्धिमान बन जाते हैं।दो साल पहले आई गुजराती भाषा की इस फिल्म को उस साल की सर्वश्रेष्ठ गुजराती फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। अब यह नेटफ्लिक्स पर सबटाइटिल्स के साथ मौजूद है। इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत है इसकी सादगी, इसका सीधापन, इसकी मासूमियत और इन सबके साथ मनोरंजन मैसेज का संतुलित मिश्रण। मनीष सैनी, आदित्य विक्रम सेनगुप्ता, पार्थ त्रिवेदी और निनाद पारिख ने अपने लेखन से इस फिल्म को जीवंत बनाए रखा है। बतौर निर्देशक मनीष सैनी अपनी इस पहली ही फिल्म से बेहद परिपक्व होने का प्रमाण देते हैं। बिना उपदेश दिए, बिना फालतू का ज्ञान झाड़े, बिना कहीं बोरियत का अहसास कराए यह फिल्म जो कहना चाहती है, उसे कह पाने में कामयाब रहती है और यह लेखक-टीम निर्देशक, दोनों की सफलता है।तीनों प्रमुख बाल-कलाकारों करण पटेल, कहान और कुलदीप सोढा के साथ-साथ बाकी के तमाम कलाकारों का अभिनय बेहद सहज और सराहनीय रहा है। नसीरुद्दीन शाह, बृजेंद्र काला, अमित दिवतिया, अर्चन त्रिवेदी, कृणाल पंडित जैसे सधे हुए कलाकारों के साथ उम्दा लोकेशंस, कैमरा और गीत-संगीत इसे और मजबूत ही बनाते हैं।
कभी हंसाती, कभी उदास करती, कभी उत्साहित करती तो कभी सोच
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पर मजबूर करती इस फिल्म को हालांकि एक बाल-फिल्म ही कहा जाएगा लेकिन सिनेमा जब अच्छा होता है तो वह उम्र और भाषा के दायरों को तोड़ता है। इसे आप खुद देखिए, अपने बच्चों को दिखाइए, उनके साथ बैठ कर इसे देखिए, बहुत कुछ हासिल होगा।
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रेटिंग की ज़रूरत ही क्या है? रिव्यू पढ़िए और फैसला कीजिए कि फिल्म कितनी अच्छी या खराब है। और हां, इस रिव्यू पर अपने विचार ज़रूर बताएं।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक  पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़।  अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रोंपत्रिकाओंन्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो  टी.वीसे भी जुड़े हुए हैं।)

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