‘इंसान दो चीजों से बनता है-किस्मत और मेहनत। और गरीब के पास किस्मत होती तो वह गरीब ही क्यों होता? तो बची मेहनत, वही करनी होगी।’
इस फिल्म का यह संवाद इसका पूरा ज़ायका बता देता है। आगरा में दूसरों के घरों और कारखानों में काम करके अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने का सपना देख रही चंदा एक दिन उस के साथ उसी की क्लास में दाखिला ले लेती है। बेटी को लगता है कि मां खुद तो कुछ बन न सकी और अब अपने सपने उस पर थोप रही है। पर जब उसे अक्ल आती है कि मां का सपना तो उसकी बेटी ही है तब वह मेहनत का पहाड़ तोड़ देती है।