Sunday, 25 April 2021

ओल्ड रिव्यू-उम्मीदें जगाती है ‘निल बटे सन्नाटा’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
इंसान दो चीजों से बनता है-किस्मत और मेहनत। और गरीब के पास किस्मत होती तो वह गरीब ही क्यों होता? तो बची मेहनत, वही करनी होगी।
 
इस फिल्म का यह संवाद इसका पूरा ज़ायका बता देता है। आगरा में दूसरों के घरों और कारखानों में काम करके अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने का सपना देख रही चंदा एक दिन उस के साथ उसी की क्लास में दाखिला ले लेती है। बेटी को लगता है कि मां खुद तो कुछ बन सकी और अब अपने सपने उस पर थोप रही है। पर जब उसे अक्ल आती है कि मां का सपना तो उसकी बेटी ही है तब वह मेहनत का पहाड़ तोड़ देती है।

Sunday, 18 April 2021

रिव्यू-कामुकता और क्राइम की अजीब दास्तानें

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
एंथोलॉजी यानी लगभग एक ही जैसे विषय पर कही गईं अलग-अलग कहानियों को एक ही फिल्म में पिरोना। हिन्दी सिनेमा वालों ने भी हिम्मत करके गाहे-बगाहे इस शैली को अपनाया है। नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई यह फिल्मअजीब दास्तान्सभी ऐसी ही चार दास्तानों को सामने ला रही है जो कमोबेश एक ही धागे से बंधी हुई हैं लेकिन इनमें आपस में कोई नाता नहीं है। असल में यह चार अलग-अलग निर्देशकों की बनाई चार शॉर्ट-फिल्मों का एक संकलन है जिसे एक ही थाली में रख कर परोसा गया है। हर किसी की अपनी-अपनी पसंद की फिल्म अलग-अलग हो सकती है। मगर आइए, पहले इनके गुण-दोषों की बात कर लें।

Friday, 16 April 2021

गोबर करेंगे अजय देवगन...!

 -दीपक दुआ...
वैसे तो बहुत सारे फिल्मी सितारे और फिल्मकार सिनेमा के नाम पर पर्दे पर गोबर ही करते हैं लेकिन अब सचमुच बड़े पर्दे पर गोबर होगा जिसे अजय देवगन, सिद्धार्थ रॉय कपूर और सबल शेखावत लेकर आएंगे। दरअसलगोबरनाम है उस कॉमेडी फिल्म का जिसे अजय देवगन और सिद्धार्थ रॉय कपूर मिल कर बना रहे हैं। प्रसिद्ध विज्ञापन फिल्ममेकर सबल शेखावत इस फिल्म के डायरेक्टर होंगे। यह फिल्म सबल ने संबित मिश्रा के साथ मिल कर लिखी है। 1990 के दशक के समय में भारत के हिन्दी भाषी इलाके की यह व्यंग्यात्मक कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित बताई जा रही है जिसमें एक पशु-प्रेमी पशु चिकित्सक को स्थानीय राजकीय अस्पताल में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। यह फिल्म भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए एक इंसान की हास्यास्पद बहादुरी की यात्रा पर आधारित कॉमेडी होगी।

Tuesday, 13 April 2021

रिव्यू-‘जोजी’ मज़बूत सही मक़बूल नहीं

 -दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
शेक्सपियर के रचे ने फिल्मकारों को हमेशा से लुभाया है। खासतौर से उनकेमैक्बेथके प्रति तो दुनिया भर के फिल्मकारों में आसक्ति रही है। फिर चाहे वह जापान के अकीरा कुरोसावा कीथ्रोन ऑफ ब्लड’ (1957) हो या विशाल भारद्वाज कीमक़बूल’ (2004), इस नाटक का पर्दे पर किया गया चित्रण हर बार कुछ अलग, कुछ गहरा ही रहा है। लेकिन हाल ही में अमेज़न प्राइम पर रिलीज़ हुई मलयालम फिल्मजोजीमें निर्देशक दिलीश पोथान हमें एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं। एक ऐसी दुनिया, कि अगर बताया जाए तो इसमेंमैक्बेथकी कहानी को पकड़ पाना मुश्किल हो सकता है। दरअसल दिलीश ने मूल कहानी के सार को लेते हुए उसमें अपने डाले किरदारों, उन किरदारों की विशेषताओं, उनकी पृष्ठभूमि और परिस्थितियों के ज़रिए अपनी बात कही है।