-दीपक दुआ...
‘मुबारक हो, दादा साहब फाल्के को रजनीकांत पुरस्कार मिला है।’
अभिनेता रजनीकांत को दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिए जाने की घोषणा के साथ ही उनके बारे में प्रचलित अविश्वसनीय ‘चुटकुलों’ की भीड़ में एक और चुटकुला जुड़ गया। जहां आम सिने-प्रेमियों के लिए सुपरस्टार रजनीकांत को दिया जाने वाला भारतीय फिल्मोद्योग का यह सर्वोच्च पुरस्कार एक सुखद खबर है वहीं रजनी के चाहने वालों के लिए उनके ‘थलाईवा’ को मिला यह पुरस्कार असल में इस पुरस्कार का ही सम्मान है। हिन्दी-मराठी के दर्शक-पाठक इस बात पर हैरान हो सकते हैं और चाहें तो क्रोधित भी,
लेकिन जिन्हें रजनी सर के प्रशंसकों के बीच उनकी लोकप्रियता का अंदाजा है वे भली भांति जानते हैं कि रजनी के चाहने वालों के लिए रजनी से बढ़ कर कुछ भी नहीं है-फाल्के पुरस्कार तो छोड़िए, स्वयं भगवान भी नहीं।
महाराष्ट्र से कर्नाटक जा बसे परिवार में जन्मा और बस कंडक्टरी करके गुजारा कर रहा एक नौजवान, जिसकी महत्वाकांक्षाओं में एक वैस्पा स्कूटर, एक पैकेट सिगरेट और एक कमरे का फ्लैट भर था, वह कब तमिल फिल्मों का सुपरस्टार और देखते ही देखते करोड़ों दिलों का ‘थलाईवा’ बन गया, इसकी कोई तय मियाद नहीं दिखती। अपने फिल्मी सफर में रजनीकांत ने भले ही तमिल के अलावा तेलुगू, कन्नड़ और हिन्दी की ही फिल्में की हों लेकिन उनकी लोकप्रियता सिर्फ इन्हीं भाषाओं के दर्शकों तक ही सीमित नहीं रही। देश भर में उनके चाहने वाले मौजूद हैं और देश से बाहर एशिया के कई मुल्कों में उनके दीवाने दर्शक उनकी फिल्मों का इंतजार बेसब्री से करते हैं। जापान जैसे देश में तो उन्हें वैसे ही चाहा और सराहा जाता है जैसे तमिलनाडु में। उनकी फिल्म ‘मुथु’ का जापान में लगातार 23 हफ्ते तक चलना इस बात की मिसाल है।
हिन्दी के दर्शकों ने बहुतेरे सुपरस्टारों का स्टारडम देखा है। पुराने दर्शक राजेश खन्ना का स्टारडम याद करते हैं कि कैसे उनके निकलने के रास्ते पर लोग, खासकर लड़कियां निगाहें बिछाए, हवा में दुपट्टे उछालते खड़ी रहती थीं। उनकी कार पर लड़कियों के होठों की लिपस्टिक के निशानों के किस्से मशहूर हैं। हृतिक रोशन की पहली फिल्म आने के बाद उनके घर पर युवतियों द्वारा अपने खून से चिट्ठियां लिख कर भेजने की बातें सुनाई जाती हैं। सलमान खान को देख कर ‘सल्लू मैरी मी’ के नारे लगाती लड़कियां दिखती हैं और वहीं मेगास्टार अमिताभ बच्चन की लोकप्रियता तो जगजाहिर है ही। लेकिन हिन्दी वालों को इस बात का अहसास भी नहीं होगा कि रजनीकांत के प्रशंसकों के बीच उनकी लोकप्रियता का स्तर किस आसमान को छूता है। दक्षिण भारत में रजनी सर के ढेरों फैन क्लब हैं। उनके मंदिर हैं जहां उनकी नियमित पूजा होती है। उनकी किसी फिल्म के आने पर फिल्म के होर्डिंग और उनके कट-आउट का दूध से अभिषेक करने, रात भर पहले थिएटरों के आगे कतार लगाने और फिल्म शुरू होने से पहले नारियल फोड़ने की तस्वीरें हिन्दी प्रदेशों के सिने-प्रेमियों को हैरान करती हैं कि कोई इंसान, और वह भी महज एक अभिनेता, कैसे किसी के लिए इतना पूज्य, देवतुल्य हो सकता है।
और यह सब तब है जब रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों के बीच कभी भी अपने असली रूप-रंग को नहीं छुपाने-ढकने की कोशिशें नहीं कीं। जहां लगभग सभी फिल्मी सितारे पर्दे से बाहर के अपने चेहरे को दिखाने के प्रति अतिरिक्त सतर्कता बरतते हैं वहीं रजनीकांत हमेशा बिना किसी मेकअप, बिना विग के गंजे सिर और साधारण लुंगी-शर्ट के साथ तब भी देखे गए जब उनकी कोई ऐसी फिल्म रिलीज होने के कगार पर खड़ी हो जिसमें वह एकदम युवा और स्मार्ट बन कर आ रहे हों। नई पीढ़ी के हिन्दी वाले दर्शक रजनीकांत को जिस ‘रोबोट’ और ‘2.0’ से जानते-पहचानते हैं उसी के प्रचार में शामिल होने आए रजनी सर की असली चेहरे को देख लें तो अचरज से उंगली चबा जाएं।
अपने प्रशंसकों के बीच रजनीकांत का कद कैसा है, इस बात का अंदाजा तब भी हुआ जब 2010 में अपनी छोटी बेटी सौंदर्या की शादी के मौके पर उन्हें एक बयान जारी करके अपने चाहने वालों से माफी मांगनी पड़ी कि मैं आप सब को अपनी बेटी की शादी के समारोह में बुलाना चाहता था लेकिन जगह की कमी के चलते नहीं बुला सका। 2016 में जब सौंदर्या को भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने अपना ब्रांड अंबेसेडर बनाया था जो रजनीकांत के उन प्रशंसकों ने इस पर नाराजगी जताई थी जो जल्लीकट्टू नामक खेल के समर्थक हैं क्योंकि इस खेल पर पाबंदी लगवाने वालों में इस बोर्ड की भी बड़ी भूमिका थी। हाल ही में रजनीकांत के राजनीतिक पार्टी बनाने के बाद बड़ी तादाद में उनसे जुड़े लोग उनके चुनावों में न उतरने के ऐलान से बेहद खफा भी हुए। अपने ‘थलाईवा’ से जुड़ी एक-एक हरकत से खुद को जोड़ कर देखने वाले ऐसे प्रशंसक, मात्र प्रशंसक नहीं हो सकते। ये लोग भक्तों से भी कहीं ऊपर गिने जा सकते हैं।
एशिया में किसी फिल्म के लिए सबसे ज्यादा पारिश्रमिक पाने वाले अभिनेताओं की फेहरिस्त में रजनीकांत का नाम जैकी चान और जेट ली के बाद तीसरे नंबर पर लिया जाता है। लेकिन रजनीकांत की कीमत उनकी फीस, उनकी किसी फिल्म की कमाई, उनके प्रशंसकों की तादाद या उनके बारे में प्रचलित अविश्सनीय चुटकुलों से तय नहीं होती। रजनीकांत का आभामंडल कुछ अलग ही है-कुछ दैवीय, कुछ अलौकिक...।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,
न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
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