-दीपक दुआ... (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
अपनी पहली और पिछली फिल्म ‘आई एम कलाम’ से नीला माधव पांडा ने खुद को एक ऐसे निर्देशक के तौर पर खड़ा कर लिया था जो बच्चों से जुड़े एक गंभीर संदेश को भी सहज और सरल जुबान में मनोरंजन के रैपर में लपेट कर पेश कर सकता है और वह भी बिना किसी फिल्मी मसाले का लेप लगाए हुए। अब अपनी इस दूसरी फिल्म में पांडा ने एक बार फिर यही जोखिम उठाया है। जोखिम इसलिए क्योंकि बच्चों का सिनेमा हो या फिर संदेश देने वाला सिनेमा, अपने यहां का क्रूर बॉक्स-ऑफिस इसे आसानी से स्वीकार नहीं करता। ‘आई एम कलाम’ ने भी टिकट-खिड़की से उतना माल नहीं बटोरा था जितना दूसरे ज़रियों से इक्ट्ठा किया था और अब ‘जलपरी’ के साथ भी यही होने वाला है।
अपनी पहली और पिछली फिल्म ‘आई एम कलाम’ से नीला माधव पांडा ने खुद को एक ऐसे निर्देशक के तौर पर खड़ा कर लिया था जो बच्चों से जुड़े एक गंभीर संदेश को भी सहज और सरल जुबान में मनोरंजन के रैपर में लपेट कर पेश कर सकता है और वह भी बिना किसी फिल्मी मसाले का लेप लगाए हुए। अब अपनी इस दूसरी फिल्म में पांडा ने एक बार फिर यही जोखिम उठाया है। जोखिम इसलिए क्योंकि बच्चों का सिनेमा हो या फिर संदेश देने वाला सिनेमा, अपने यहां का क्रूर बॉक्स-ऑफिस इसे आसानी से स्वीकार नहीं करता। ‘आई एम कलाम’ ने भी टिकट-खिड़की से उतना माल नहीं बटोरा था जितना दूसरे ज़रियों से इक्ट्ठा किया था और अब ‘जलपरी’ के साथ भी यही होने वाला है।