-दीपक दुआ...
साल के पहले शुक्रवार को बड़ी फिल्मों की रिलीज के लिहाज से मनहूस मानने का मिथक बीते कई बरसों से और ज्यादा मजबूत ही होता जा रहा है। इस साल के पहले शुक्रवार को भी जो फिल्में आईं उनमें कोई भी इस काबिल नहीं थी कि उसे देखा जाता या उस पर कोई बात होती। मनोज शर्मा के निर्देशन में हेमंत पांडेय, चंद्रचूड़ सिंह, हृषिता भट्ट, मनोज जोशी जैसे कलाकारों वाली ‘प्रकाश इलेक्ट्रानिक्स’
कहने को तो कॉमेडी फिल्म थी लेकिन इसकी कहानी से लेकर पटकथा, संवाद और निर्देशन तक इस कदर लचर थे कि इसे देख कर और कुछ भले ही आया हो, हंसी बिल्कुल नहीं आई। जाहिर है, ऐसी फिल्म का टिकट-खिड़की पर भी बुरा हश्र होना ही था। इकबाल सुलेमान के निर्देशन में आई ‘आमिर शाहरुख सलमान’ तीन ऐसे युवकों की कहानी दिखाती नजर आई जो तीनों मशहूर खान-हीरोज जैसे दिखते हैं। इस फिल्म की कहानी और पटकथा एकदम पैदल निकली और इसने भी कहीं पानी तक नहीं मांगा।
जनवरी का दूसरा हफ्ता शाद अली की ‘ओके जानू’ लेकर आया। श्रद्धा कपूर और आदित्य राय कपूर वाली इस फिल्म में शाद अली ने हालांकि अपनी और से दिलचस्पी बनाए रखने की काफी कोशिश की लेकिन इसकी कहानी के सपाट ट्रैक और बासेपन ने इसे एक स्तर से ऊपर उठने ही नहीं दिया। आंखों को सुहानी लगने के बावजूद यह फिल्म दिल जीत पाने में नाकाम रही और ज्यादातर दर्शकों ने इसे दूर से ही ओके टाटा बाय कह दिया। पहले हफ्ते की इसकी कलैक्शन महज 19.50 करोड़ रही जो आगे चल कर और गिर गई। इसी के साथ रिलीज हुई नवाजुद्दीन सिद्दिकी वाली ‘हरामखोर’ ने आने से पहले अपने विषय और नवाज की मौजूदगी की वजह से चर्चा भले ही पा ली थी लेकिन अपने मिजाज से यह फिल्म ऐसी नहीं थी जिसे हर कोई देखना पसंद करता। इस किस्म की कहानियां फिल्म समारोहों के विद्वतापूर्ण माहौल में ही ज्यादा देखी और सराही जाती हैं। सिर्फ चंद लोगों की तारीफें बटोर कर यह फिल्म बहुत जल्द किनारे हो गई। केवल सिंह निर्देशित ‘एशले’ का तो नाम भी शायद ही किसी ने सुना हो।
तीसरे हफ्ते में आई ‘कॉफ़ी विद् डी’ एक पत्रकार के डॉन दाउद इब्राहिम का इंटरव्यू लेने की कहानी पर बनी थी। हालांकि इसे एक कॉमेडी फिल्म होना था या फिर व्यंग्य, लेकिन निर्देशक इसमें किसी भी रंग को पूरी तरह से नहीं बिखेर पाई और इसी वजह से यह न इधर की रही और न उधर की। फिर ‘रईस’ और ‘काबिल’ के बुधवार को ही रिलीज हो जाने के चलते इसे सिर्फ पांच दिन ही मिल पाए। सो, इसे इतनी भी कलैक्शन नहीं हो सकी कि फिल्मी कारोबारियों के बीच इसका कोई जिक्र होता। इसके साथ आईं ‘ब्यूटी विद् ब्रेन’, ‘किलर गल्र्स’ और ‘हइना एक चालाक हसीना’ का कहीं अता-पता ही नहीं चला। बीती सदी के उर्दू शायर असरार-उल-हक पर बनी फिल्म ‘मजाज’ का मिजाज भी इस लायक नहीं निकला कि लोग इसे देखने के लिए खिंचे आते। बेहद बोर करती इस फिल्म से दर्शक दूर ही रहे।
26 जनवरी के मौके को भुनाने के लिए शाहरुख खान की ‘रईस’ और हृतिक रोशन की ‘काबिल’ खम ठोंकती नजर आईं। इनमें से ‘काबिल’ की कहानी काफी जानी-पहचानी सी निकली और संजय गुप्ता के निर्देशन का टच भी इसमें नजर नहीं आया। लेकिन अपने मनोरंजक आवरण और कलाकारों की उम्दा एक्टिंग के चलते इस फिल्म को काफी पसंद किया गया। खासतौर से हृतिक के चाहने वालों ने इसे खूब सराहा। उधर शाहरुख खान की ‘रईस’ में भी ऐसी कहानी नहीं पाई गई जो नई हो या अनोखी हो। एक गैंगस्टर और पुलिस के बीच के सांप-सीढ़ी के खेल को पहले भी दसियों बार देखा जा चुका है। इस बार कुछ अलग था तो वह था राहुल ढोलकिया का सेंसिबल निर्देशन और साथ ही शाहरुख की जबर्दस्त एक्टिंग के साथ मनोरंजन का मसाला। इसीलिए रुटीन किस्म की फिल्म होने के बावजूद इसे शुरू से ही काफी तगड़ी कलैक्शन मिलने लगी। खासतौर से मुस्लिम बहुल क्षेत्रों, छोटे सैंटर्स और सिंगल स्क्रीन थिएटरों के दर्शकों ने इसे हाथोंहाथ लिया।
टक्कर की बात करें तो इन दोनों फिल्मों को मिले थिएटरों और शोज की तादाद में ही बड़ा फासला था। जहां ‘रईस’ को मल्टीप्लेक्स थिएटरों में करीब 60 फीसदी शो मिले वहीं ‘काबिल’ को 40 फीसदी से संतोष करना पड़ा। सिंगल स्क्रीन थिएटरों में अच्छे और बड़े सिनेमाघरों पर भी ‘रईस’ का कब्जा रहा। यही कारण है कि समीक्षकों और दर्शकों से कम तारीफें पाने के बावजूद ‘रईस’ को पहले ही शो से तगड़ी कलैक्शन मिलने लगी। बुधवार को रिलीज होने के कारण इन्हें लंबे वीकएंड का फायदा भी मिला। पहले दिन ‘रईस’ करीब 20 करोड़ और ‘काबिल’ करीब 10 करोड़ पर थीं तो वहीं दूसरे दिन ‘रईस’ 26 करोड़ और ‘काबिल’ 19 करोड़ तक बटोर रही थी। सात दिन में ‘काबिल’ लगभग 80 करोड़ और ‘रईस’ लगभग 109 करोड़ इक्ट्ठा कर चुकी थीं। हालांकि यह भी तय है कि ये फिल्में अलग-अलग आतीं तो इससे ज्यादा माल समेटतीं। इन दोनों फिल्मों के साथ आई ‘डबल डीलर’ का कहीं नाम तक नहीं सुना गया।
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