Saturday 11 February 2017

केदार सहगल, फिल्मों का वो डॉक्टर जो कहता था-‘आई एम सॉरी, हम उन्हें नहीं बचा सके...!’



-सत्य व्यास...

नवेंदु जी कहा करते थे कि प्रेम की धमक केदार नाथ साहब की तरह होनी चाहिए। पहचानें सब, जाने कोई ना। अब चूंकि नवेंदु जी कहते थे तो अकाट्य था। प्रेम वाली बात रख ली गयी और केदार नाथ साहब को जाने दिया गया।

केदार नाथ कौन...? केदार नाथ सहगल। हिन्दी फिल्म उद्योग का वह चरित्र अभिनेता जिसने पांच सौ से ज्यादा ही फिल्में कीं, मगर उसके बारे में जानकारी बस इतनी कि वह 2013 मे मर गया। याद दिलाने की कोशिश करूं तो बस एक ही दृश्य जेहन में आता है। फिल्म शोलेके प्रसिद्ध पानी टंकी वाले दृश्य मे नीचे खड़ा वो ग्रामीण जो अपने साथी से कहता है कि अंग्रेज लोग जब मरने जाते हैं तो उसे ही सुसाइड कहते हैं।यदि अब भी आप केदार नाथ सहगल को पहचानने मे असमर्थ हैं तो भी बुरा न मनाइए। यह आपकी गलती नहीं है। केदार नाथ जी जाने और पहचाने जाने से ज्यादा देखे जाने वाले कलाकार रहे। ये हैं केदार नाथ सहगल। 500 से भी ज्यादा फिल्मों में ब्लिंक एंड मिसकिरदार निभाने वाला कलाकार।

केदार नाथ सहगल ने अपने फिल्मी सफर की शुरुआत पृथ्वी राजकपूर अभिनीत 1941 की फिल्म सिकंदरसे की थी। कलाकारों की सूची मे केदार जी का नाम न होने का सिलसिला जो चला वो कई दशकों तक बदस्तूर जारी रहा। जीवनपर्यंत केदार जी झलक भर का किरदार ही निभाते रहे।

अब इन्हें दवा की नहीं, दुआ की जरूरत है...
यह शरीफों का मुहल्ला है...
हैंड्स अप! पुलिस ने तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया है...
आप अदालत की तौहीन कर रहे हैं...
ये तो पुलिस केस है...
हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं...
इन जैसे संवादों को कालजयी बनाने के पीछे केदार जी की बड़ी भूमिका रही है। बाज दफा वही इन संवादों के पीछे खड़े किरदार होते थे।
 
70 एवं 80 के दशक की फिल्मों का तो यह आलम था कि केदार नाथ सहगल हर दूसरी फिल्म का हिस्सा होते थे। शोले’, ‘जंजीर’, ‘डॉनसहित लगभग पांच सौ फिल्में करने वाले केदार साहब की कद-काठी ऐसी थी कि वह पचास साला किसी भी किरदार मे फिट बैठते थे। जेलर, डॉक्टर, वकील, जज, पड़ोसी, ग्रामीण, व्यवसायी, होटल मैनेजर, क्लब मालिक, इंस्पेक्टर इत्यादि शायद ही ऐसा कोई किरदार हो जो 60 साल के अपने फिल्मी सफर में केदार साहब से अछूता रह गया हो। इनकी भूमिकाएं इतनी छोटी होती थीं कि दर्शक इन्हे नोटिस तो करता था पर याद नहीं रख पाता था। सह-कलाकारों की शायद यही नियति मायानगरी ने तय की है।

90 के दशक में जब टी.वी. का दौर आया तो केदार जी ने व्योमकेश बख्शीसरीखे धारावाहिकों मे भी काम किया। कुछ फिल्मों के अलावा अगले दशक में केदार जी कैमरे से दूर होते चले गए। स्वास्थ्य कारण भी प्रमुख रहा। वर्ष 2013 में केदार सहगल उर्फ सहगल साहब उर्फ केदार नाथ साहब का निधन हो गया. उनके निधन के दिन उन्हें मुंबई ने याद किया। उससे पहले नहीं। वैसे भी याद रखने के लिहाज से मुंबई काफी संकरी जगह है। दिक्कत फिर भी कोई नहीं है। क्योंकि केदार सहगल जैसे कलाकार फिल्म प्रेमियों के जेहन मे रहने के लिए होते हैं।

(सत्य व्यास-नई वाली हिन्दी के सशक्त हस्ताक्षर। बनारस टाॅकीजसे बाउंड्री मारी और दिल्ली दरबारसे दिल जीते। क्रिकेट और सिनेमा के जबर्दस्त दीवाने ही नहीं गजब के जानकार भी हैं।)

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