-सत्य व्यास...
नवेंदु जी कहा करते थे कि प्रेम की धमक केदार नाथ साहब की तरह होनी चाहिए। पहचानें
सब, जाने कोई ना। अब चूंकि
नवेंदु जी कहते थे तो अकाट्य था। प्रेम वाली बात रख ली गयी और केदार नाथ साहब को जाने
दिया गया।
‘यह शरीफों का मुहल्ला है...’
‘हैंड्स अप! पुलिस ने तुम्हें चारों तरफ से घेर लिया है...’
‘आप अदालत की तौहीन कर रहे हैं...’
‘ये तो पुलिस केस है...’
‘हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हैं...’
इन जैसे संवादों को कालजयी बनाने के पीछे केदार जी की बड़ी भूमिका रही है। बाज दफा
वही इन संवादों के पीछे खड़े किरदार होते थे।
70 एवं 80 के दशक की फिल्मों का तो यह आलम था कि केदार नाथ सहगल हर दूसरी फिल्म का हिस्सा
होते थे। ‘शोले’, ‘जंजीर’, ‘डॉन’ सहित लगभग पांच सौ फिल्में करने वाले केदार साहब की कद-काठी ऐसी थी कि वह पचास
साला किसी भी किरदार मे फिट बैठते थे। जेलर, डॉक्टर, वकील, जज, पड़ोसी, ग्रामीण, व्यवसायी, होटल मैनेजर, क्लब मालिक, इंस्पेक्टर इत्यादि शायद ही ऐसा कोई किरदार
हो जो 60 साल के अपने फिल्मी सफर में केदार साहब से अछूता रह गया हो। इनकी भूमिकाएं इतनी
छोटी होती थीं कि दर्शक इन्हे नोटिस तो करता था पर याद नहीं रख पाता था। सह-कलाकारों
की शायद यही नियति मायानगरी ने तय की है।
90 के दशक में जब टी.वी. का दौर आया तो केदार जी ने ‘व्योमकेश बख्शी’ सरीखे धारावाहिकों मे भी काम किया। कुछ फिल्मों
के अलावा अगले दशक में केदार जी कैमरे से दूर होते चले गए। स्वास्थ्य कारण भी प्रमुख
रहा। वर्ष 2013 में केदार सहगल उर्फ सहगल साहब उर्फ केदार नाथ साहब का निधन हो गया. उनके निधन
के दिन उन्हें मुंबई ने याद किया। उससे पहले नहीं। वैसे भी याद रखने के लिहाज से मुंबई
काफी संकरी जगह है। दिक्कत फिर भी कोई नहीं है। क्योंकि केदार सहगल जैसे कलाकार फिल्म
प्रेमियों के जेहन मे रहने के लिए होते हैं।
No comments:
Post a Comment