Saturday, 23 September 2017

जयपुर की अनोखी ‘सुर-संगत’


-दीपक दुआ...
वे सचमुच अनोखे लोग हैं। हर सुबह संगीत की सुर-लहरियों से उनका दिन शुरू होता है और देर रात तक वे संगीत की ही लहरों में डूबते-उतराते रहते हैं। इन लोगों में लेखक, पत्रकार, प्रकाशक, कलाकार, डॉक्टर, वकील, जज, अध्यापक, फिल्मकार, व्यापारी, दुकानदार, इंजीनियर जैसे तमाम पेशों से जुड़े लोग शामिल हैं। लेकिन इन सबके बीच कोई एक चीज कॉमन है तो वह है संगीत। और संगीत में भी हिन्दी फिल्मों के सुनहरे दौर के संगीत से इन्हें खासा लगाव है। संगीत के प्रति इन संगीत-रसिकों की दीवानगी यह है कि अपनी संगत को इन्होंने नाम दिया है-सुर संगत।

जयपुर से संचालित इस समूह के व्हाट्सऐप पर बने ग्रुप में सुबह से ही उस दिन से जुड़ी फिल्मी हस्तियों के जन्मदिन या पुण्यतिथि के जिक्र के बाद उनसे जुड़े गीतों, संवादों, जानकारियों को डालने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इस संगत के सदस्यों के पास दुलर्भ गीत, रिकॉर्डिंग, फिल्में मौजूद हैं जिन्हें ये एक-दूसरे के साथ साझा करते हैं। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर लोग उम्र के उस पड़ाव पर हैं जब लोग-बाग आरामतलब होकर खुद को रिटायर मानने लगते हैं लेकिन इन सबकी सक्रियता देख हैरानी होती है और इस बात पर यकीन भी कि संगीत से प्यार हो तो जिंदगी कितनी खुशगवार हो जाती है।

एक खास बात यह भी कि पिछले कई साल से इस ग्रुप के लोग हर महीने के दूसरे रविवार को तीन-चार घंटे के लिए एक जगह मिलते हैं और किसी एक विषय पर फिल्मी गीत देखने-दिखाने, गाने-सुनने के अलावा उस पर चर्चा विचारों का आदान-प्रदान भी करते हैं। पहले इनकी यह सुर-संगतकहीं भी जम जाया करती थी लेकिन अब जयपुर स्थित राजस्थान प्रौढ़ शिक्षा समिति ने इन्हें अपने यहां यह संगत जमाने की जगह देने के साथ-साथ दोपहर का भोजन कराने का जिम्मा भी ले लिया है। ऐसी ही एक संगत में मुझे हाल ही में शरीक होने का मौका मिला। जयपुर शहर में कर्फ़्यू लगा होने के बावजूद ये लोग उस दिन अपने शहर से मुंबई गए रूमानी गीतकार हसरत जयपुरी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करने के लिए इक्ट्ठा हुए और हसरत साहब के ऐसे-ऐसे गीत, ऐसी-ऐसी बातें निकल कर आईं कि अजब समां बंध गया।

संगीत में ताकत है, संगीत में उत्साह है, संगीत में पवित्रता है। लेकिन संगीत में यूं सबको एक साथ बांधे रखने की क्षमता भी है, यह जयपुर की इस अनोखी सुर-संगतको देख कर ही मैंने जाना।

 


(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। अपनी वेबसाइट सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
 

5 comments:

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  2. शुक्रिया... पढ़ते रहिए...

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  4. Bahut khoob! Dhayswaad. Phir Kabhi aayiega.

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