-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
1997 में आई सलमान खान वाली ‘जुड़वा’ (ज़्यादातर लोग इस शब्द को ‘जुड़वां’ बोलते हैं) की कहानी सब जानते हैं। एक परिवार में जन्मे दो जुड़वा लड़के पैदा होते ही विलेन की कारस्तानी से बिछड़ गए। एक स्ट्रीट स्मार्ट बना तो दूसरा सोफिस्टिकेटिड। पास-पास होते तो जो हरकत एक करता, दूसरे के साथ भी वैसा ही होने लगता। बड़े हुए तो इनकी जिंदगी में लड़कियां भी आईं और विलेन भी। नाचते-गाते, चूमते-चाटते, मारते-पीटते इन्होंने हमारा जम कर मनोरंजन किया था।
‘जुड़वा’ 1994 में आई नागार्जुन वाली तेलुगू फिल्म ‘हैलो ब्रदर’ का रीमेक थी। यह अलग बात है कि ‘हैलो ब्रदर’ 1992 में आई जैकी चान की फिल्म ‘ट्विन ड्रैगन्स’ की कॉपी थी। खैर, ‘जुड़वा’ के डायरेक्टर डेविड धवन अपनी उसी फिल्म की कहानी पर ‘जुड़वा 2’ लेकर आए हैं जिसमें नएपन के नाम पर आज के चमकते, चॉकलेटी चेहरे हैं, आपको हंसाने के लिए हिट फिल्मों के रेफरेंस से गढ़े गए सीन और संवाद हैं, लंदन की दिलकश लोकेशन है। बाकी, वे तमाम मसाले तो हैं ही जिन्हें अपनी फिल्मों में छिड़क कर डेविड धवन दर्शकों को ऐसा मनोरंजन परोसते आए हैं जो आपको तमाम फिक्र-चिंताएं भुला कर ढाई घंटे तक एक अलग ही दुनिया में ले जाता है।
ऐसी फिल्मों में स्क्रिप्ट और स्पीड पर ही खासा जोर रहता है। इस फिल्म में यूनुस सजावल की स्क्रिप्ट ने इंटरवल तक तो जम कर मोर्चा बांधे रखा लेकिन उसके बाद यह कहीं-कहीं ढीली और अतार्किक हुई तो साजिद-फरहद के संवादों ने उसे संभाल लिया। फिर डेविड ने रफ्तार कहीं कम नहीं होने दी और बचा-खुचा काम एडिटर ने संभाल लिया।
वरुण धवन ऐसी भूमिकाओं में जंचते आए हैं। पापा डेविड के ही साथ वह ‘मैं तेरा हीरो’ जैसी मस्त फिल्म दे चुके हैं और इस बार भी उन्होंने वैसी ही रंगत बिखेरी है। बल्कि मैं तो यहां तक कहूंगा कि सलमान खान की गुड लुक्स और उनके छिछोरे किरदारों वाली इमेज को मौजूदा पीढ़ी के हीरोज़ में वरुण ही बेहतर संभाल सकते हैं और संभाल भी रहे हैं। ऐसी फिल्मों में हीरोइनों का मुख्य काम हीरो के साथ डांस-रोमांस करते हुए छोटे कपड़े पहन कर दर्शकों की आंखों को गर्माने का चांस देना होता है और तापसी पन्नू व जैक्लिन फर्नांडीज़ ने यह जिम्मा बखूबी निभाया है। सहयोगी भूमिकाओं में आए तमाम कलाकार भी उम्दा सहयोग दे गए। गाने फिल्म के मिजाज के मुताबिक चटपटे-मसालेदार हैं। हां, सलमान की एंट्री निराशाजनक रही।
इस किस्म की फिल्मों को देखते हुए दिमाग के तंतुओं को ज़ोर नहीं लगाना पड़ता। दिमाग को आराम देना हो, बेदिमाग चीजों को देख कर मिरगी न आती हो और मसालेदार मनोरंजन से परहेज न हो तो इसे देखने चले जाइए तीन से छह, छह से नौ या फिर नौ से बारह...!
अपनी रेटिंग-तीन स्टार
Movie ko hit banane ka shrey aapke superhit review bana deta hai...Sir...Happy navratri
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