-दीपक दुआ... (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
पर कहानी...?
कहानी का क्या है सर जी, पिछली बार हैप्पी पाकिस्तान गई थी इस बार चीन भेज देंगे। साथ में एक नई हैप्पी को भी जोड़ देंगे। कुछ इंडिया-चीन-पाकिस्तान कर देंगे। कुछ नामों की कन्फ्यूजन पैदा कर देंगे। एक-दो नए लोग जोड़ देंगे। बाकी, अपने बग्गा और आफरीदी तो होंगे ही। उर्दू-पंजाबी के चटकारे लगवा देंगे सर जी। मैं बता रहा हूं, फिल्म चल जाएगी। आप बस,
हां कर दो।
लो जी, बन गई फिल्म ‘हैप्पी फिर भाग जाएगी’। नई वाली हैप्पी आई है चीन में अपने भगौड़े मंगेतर को ढूंढने। पुरानी वाली हैप्पी आई है पति गुड्डू के साथ म्यूज़िकल शो करने। चीनी गुंडों ने उठाना है पुरानी हैप्पी को,
पर वो उठा लेते हैं नई हैप्पी को। साथ ही आ पहुंचते हैं अमृतसर से बग्गा और लाहौर से आफरीदी भी। इस चक्कर में शुरू होती है भागमभाग। उसमें डलता है गरम मसाला। लोग पूछते हैं कि यह क्या गोलमाल है?
पर डायरेक्टर को तो हेराफेरी से ही फुर्सत नहीं मिलती।
सिर्फ सीक्वेल बनाने के लिए अगर सीक्वेल बनाया जाए तो अक्सर जो बन कर आता है वो सीक्वेल नहीं बल्कि ऐसा प्रपोज़ल होता है जो पब्लिक की समझ से खिलवाड़ करते हुए बस उनकी जेबों से माल बटोरने के इरादे से लाया जाता है। ‘हैप्पी भाग जाएगी’ जिस स्वाद की फिल्म थी उसमें भागमभाग के अलावा सबसे गरम मसाला कॉमेडी का था। और कॉमेडी भी ऐसी जिसे देख-सुन कर उस समय तो हंसी आए ही, बाद में भी उसे याद करके होठों पर मुस्कुराहट और दिल में गुदगुदी होती रहे। (पिछली वाली 'हैप्पी भाग जाएगी' का रिव्यू यहां पढ़िए) ऐसा नहीं कि यह सब इस फिल्म में नहीं है। है,
लेकिन उतना ज़्यादा नहीं है कि आप खुल कर ठहाके लगाएं और उतना गहरा नहीं है कि आप दिलों में संजो कर घर ले जाएं। और यह भी याद रखिए कि जब आपको हंसाने के लिए लेखक-डायरेक्टर एक अच्छी-भली फैमिली फिल्म में भी नंगेपन पर उतर आएं तो समझ जाइए कि उनके पास देने को उम्दा माल है नहीं और वो बस मसालों के भरोसे दुकान खोले बैठे हैं।
नई वाली हैप्पी के रोल में सोनाक्षी सिन्हा अच्छी लगती हैं। ‘सन ऑफ़ सरदार’ जैसे ही इस रोल में वो पहले से परिपक्व लगी हैं। पंजाबी फिल्मों से आए जस्सी गिल असरदार काम कर गए। डायना पेंटी, अली फज़ल हल्के रहे क्योंकि उनके किरदार ही हल्के धारण थे। जिमी शेरगिल और पीयूष मिश्रा की जोड़ी लुभाती है। हालांकि इस बार इन्हें पिछली फिल्म जैसे धारदार मौके नहीं मिल सके। फिर भी भारत-चीन-पाकिस्तान के संबंधों पर कुछ अच्छे संवाद सुनाई देते हैं। डेंज़िल स्मिथ, अपारशक्ति खुराना व बाकी कलाकार अच्छा काम कर गए। गीत-संगीत सुनने से ज़्यादा देखने में सही लगता है। मुदस्सर अज़ीज़ के निर्देशन में खामी नहीं है लेकिन अगर उन्होंने फिल्म की स्क्रिप्ट में थोड़ा और रंदा लगाया होता तो यह वाली हैप्पी भी पिछली वाली हैप्पी की तरह दिलों को हैप्पी-हैप्पी कर जाती। फिलवक्त तो यह बस टाइमपास ही करती है।
अपनी रेटिंग-ढाई स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com)
के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
Kya kya na socha tha humne🙄khair koi na...Aapne humesha ki tarah bacha lia...Thank u so much
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