डियर कमल हासन,
2013 में जब आप ‘विश्वरूप’ लेकर आए थे तो अपन ने उसे साढ़े तीन स्टार से नवाज़ा भी था। यह रहा उस फिल्म की समीक्षा का लिंक-
उस फिल्म के अंत में जब आप (मेजर विसाम अहमद काश्मीरी) ने यह साफतौर पर कह दिया था कि ‘जब तक उमर ज़िंदा है या मैं, कुछ खत्म नहीं होगा, यह कहानी चलती ही रहेगी’,
तो लगा था कि आपके दिमाग में ज़रूर आगे की कहानी होगी और जल्द ही आप उसे लेकर भी आएंगे। पर जब आपने ‘विश्वरूप 2’
को लाने में साढ़े पांच साल लगा दिए तो शक होने लगा था कि आपके पास कहने-बताने को कुछ है भी या फिर सीक्वेल लाने का वह ऐलान खोखला ही था। और अब आपकी ‘विश्वरूप 2’
को देख कर तो यही लगता है कि आपके पतीले में था कुछ नहीं। बस, आपने ज़ोर-ज़ोर से कड़छी हिलाई है ताकि लोग झांसे में आ जाएं।
चलिए, यह बताइए, कि पिछली फिल्म में साल 2011 में अमेरिका को तबाही से बचाने के तुरंत बाद इस फिल्म में आप और आपके साथी लंदन क्या करने चले गए थे?
क्या खुद पर जानलेवा हमले करवाने? और हमले भी कैसे, इतने हल्के और घटिया किस्म के कि देखने वाले को पहले से अहसास हो जाए कि अब क्या होने वाला है। चलिए, अगर चले भी गए थे तो पूरी कहानी वहीं की रख देते। पानी में जाकर हजारों टन के बम-विस्फोटों से लंदन को बचाने वाले आपके मिशन को देख कर किसी तरह की झुरझुरी नहीं होती है और कमल जी, इस किस्म की फिल्म में न,
झुरझुरियां बहुत ज़रूरी होती हैं,
यह तो आप भी मानेंगे।

और कहानी कहने का यह कौन-सा तरीका हुआ कि जिन लोगों ने पिछला पार्ट नहीं देखा उन्हें तो यह पल्ले पड़ने नहीं वाली और जिन्होंने देखा है उनके लिए भी आपने प्रीक्वेल और सीक्वेल की ऐसी गोल-गोल जलेबी बना दी कि बेचारे घूमते ही रह जाएं।

कमल जी, आप भूल गए कि आप ‘द कमल हासन’ हैं। आपकी फिल्म आती है तो उससे उम्मीदें न सिर्फ ज़्यादा होती हैं बल्कि बड़ी भी होती हैं। अपने चाहने वालों की उम्मीदों पर पानी फेर कर आपने उन्हें यह जो फीकी जलेबी परोसी है, उससे दिल भले ही हमारे टूटे हों, साख आपकी कम हुई है,
याद रखिएगा।
-बचपन से आपकी फिल्मों का दीवाना एक फिल्म समीक्षक जो आपके इस काम को सिर्फ दो स्टार की रेटिंग देता है।
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग ‘सिनेयात्रा डॉट कॉम’ (www.cineyatra.com)
के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक ‘फिल्म क्रिटिक्स गिल्ड’ के सदस्य हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
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