Saturday 10 November 2018

कहीं ये लोग ‘ठग्स ऑफ बॉक्स-ऑफिस’ तो नहीं?

-दीपक दुआ...
तो लीजिए जनाब, इस गुरुवार को रिलीज हुई ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान को रविवार तक देखने के लिए दर्शकों को आम हफ्तों से ज्यादा पैसे चुकाने पड़ रहे हैं। जी हां, दिवाली का मौका और उस पर से सिर्फ एक बड़ी फिल्म की आवक, यानी पूरा बाजार अपने कब्जे में कर लेने के बाद इस फिल्म की निर्माता कंपनी यशराज की वितरण-टीम ने देश भर के अपने प्रदर्शकों को पिछले दिनों यह निर्देश दिया कि वे अपने कंट्रोल में आने वाले तमाम सिनेमाघरों की टिकटों के रेट इस चार दिन लंबे वीकएंड के लिए बढ़ा दें। जाहिर है कि दिवाली के मौके पर आने वाली बड़े सितारों वाली भव्य बजट में बनी इस फिल्म के लिए दर्शकों की उत्सुकता को भुनाने और अपनी जेबों को जरूरत से ज्यादा भरने के लिए यह कवायद की गई है।

दिवाली, ईद, 15 अगस्त, क्रिसमस जैसे बॉक्स-ऑफिस के लिहाज से गर्म समझे जाने वाले मौकों पर बड़ी फिल्मों के निर्माताओं की निगाहें पहले भी रहती थीं लेकिन हाल के बरसों में ये मौके जिस तरह हॉट-स्पॉटमें तब्दील हुए हैं उसे देखते हुए निर्माता अब कई-कई महीने और कभी-कभी तो कई साल पहले से अपनी किसी खास फिल्म को ऐसे किसी खास मौके पर लाने का ऐलान कर देते हैं। इससे होता यह है कि एक तरफ जहां कोई दूसरा निर्माता उस बड़ी फिल्म के सामने अपनी फिल्म नहीं लाता वहीं दर्शकों के जेहन में भी काफी पहले से उस फिल्म के प्रति हवा बनने लगती है। लेकिन दिक्कत तब आती है जब थिएटरों में लगभग एकाधिकार कर लेने के बाद ये लोग उस मौके पर टिकटों के रेट भी बढ़ा देते हैं। यानी एक तरफ तो आम दिनों और आम फिल्मों के मुकाबले ज्यादा लोग उस फिल्म को देखने आएं और दूसरी तरफ वे लोग आम दिनों और आम फिल्मों के मुकाबले ज्यादा पैसे भी खर्च करें। और अब तो ऐसा चलन ही हो गया है। हाल के वक्त में संजू’, ‘रेस 3’, ‘टाईगर जिंदा है’, ‘ट्यूबलाइटजैसी बड़ी फिल्मों के आने पर ऐसा हो चुका है।

फिल्म समीक्षक मुर्तजा अली मानते हैं कि यह सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग है। वह कहते हैं-यह तो वही सिस्टम हो गया जिसके हम खिलाफ थे कि ब्लैकिए लोग थिएटरों के बाहर बड़ी फिल्मों की टिकटें ब्लैक करते थे। आज वही काम प्रोडयूसर कर रहे हैं। एक फिल्म के लिए एक परिवार द्वारा दो-ढाई हजार रुपए खर्च करना बहुत बड़ी बात है। और इससे यह भी लगता है कि निर्माता को अपनी फिल्म पर भरोसा नहीं है और वह जल्दी-जल्दी लोगों की जेब से पैसे खींच लेना चाहता है जबकि आज भी अच्छी फिल्में तीन-चार हफ्ते तक कमाती रहती हैं। मुर्तजा कहते हैं कि यह एक किस्म का शोषण ही तो है। एक तरफ तो आप विलाप करते हो कि लोग थिएटरों तक आने की बजाय पाइरेसी से फिल्में देखते हैं तो दूसरी तरफ आप ठीक तब टिकटों के दाम बढ़ा देते हो जब आप को पता है कि लोग फिल्में देखने आएंगे ही।

दूसरी तरफ फिल्म वितरक और प्रदर्शक संजय घई इस चलन को गलत नहीं बताते। वह कहते हैं कि बड़ी फिल्म है, बड़ा मौका है तो थोड़े से रेट बढ़ाने में हर्ज ही क्या है। वह बताते हैं कि यशराज ने कोई जबर्दस्ती नहीं की है, बस इतना ही कहा है कि ठग्स ऑफ हिन्दोस्तानकी टिकटों के दाम टाईगर जिंदा हैकी टिकटों से कम रखे जाएं।  उधर वरिष्ठ फिल्म समीक्षक बॉबी सिंग कहते हैं कि अगर फिल्म वाले त्योहारों पर आने वाली बड़ी बजट की फिल्मों के रेट बढ़ाते हैं तो उन्हें लीक से हट कर बनने वाली छोटे बजट की फिल्मों के लिए रेट कम भी तो करने चाहिएं।  इस पर संजय घई का कहना है कि बड़े-बड़े मल्टीप्लेक्स थिएटरों ने मोटी तनख्वाहों पर जो लोग रखे हुए हैं और जिस तरह से अपने खर्चे बढ़ा रखे हैं, उसके लिए उन्हें टिकटों के रेट एक तय स्तर से उपर रखने ही पड़ते हैं। वैसे बॉबी सिंग का यह सुझाव भी गौरतलब है कि जब दिवाली के मौके पर हर तरफ सेल लगती है, डिस्काउंट दिए जाते हैं तो फिल्म वाले ऐसा क्यों नहीं करते? बिजनेस जानने वाला कोई आम आदमी भी यह बात मानेगा कि अगर बड़े मौकों पर फिल्म वाले टिकटों और खाने-पीने के दामों में थोड़ी-सी कटौती कर दें तो उम्मीद से ज़्यादा लोगों को थिएटरों तक खींचा जा सकता है।

यह एक किस्म की दादागिरी ही है कि अगर आपको छुट्टियों में फिल्म एन्जॉय करनी है तो बढ़े हुए दाम दीजिए वरना इंतजार कीजिए। ऐसा इसलिए भी किया जाता है ताकि शुरूआती दिनों में होने वाली कलैक्शन के आंकड़े दिखा कर बाकी दर्शकों को लुभाया जा सके। मसलन इस बार दिवाली बुधवार की थी लेकिन ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान को इसके अगले दिन रिलीज किया गया क्योंकि सब जानते हैं कि दिवाली के दिन शाम और रात के शो में कोई नहीं आता। और गुरुवार रात को ही यशराज ने मीडिया को मेल भेज कर ऐलान कर दिया कि इस फिल्म ने पहले दिन 50 करोड़ की कलैक्शन कर डाली। हालांकि तमाम समीक्षकों ने इस फिल्म को काफी हल्का बताया लेकिन 50 करोड़ के इस आंकड़े से बहुतेरे दर्शकों को लुभाया जा सकता है जबकि सच यह है कि अगर इस फिल्म की टिकटों के रेट सामान्य रहते तो यह आंकड़ा इतना ज्यादा नहीं होता। साफ है कि दादागिरी, धौंस, ठगी और ब्लैकमेलिंग का कारोबार गर्म है, लुटना है तो आइए।
(नोट-यह लेख हिन्दुस्तान समाचार-पत्र में 10 नवंबर, 2018 को प्रकाशित हुआ है।)

(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म-पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज़ से घुमक्कड़। अपने ब्लॉग सिनेयात्रा डॉट कॉम (www.cineyatra.com) के अलावा विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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