Friday, 16 June 2017

रिव्यू-दिल चुराने में नाकाम ‘बैंक चोर’

-दीपक दुआ... (This review is featured in IMDb Critics Reviews)
एक बैंक में चोरी करने तीन चोर पहुंचे हैं। तीनों दिमाग से पैदल हैं और बेहद बेवकूफाना हरकतें करते हैं। लेकिन इससे पहले कि वे कुछ कर पाएं, वहां पुलिस और सी.बी.आई. वाले भी पहुंच जाते हैं। अब खुलने शुरू होते हैं कुछ राज़ और कहानी में आने लगते हैं नए-नए ट्विस्ट।

एक काॅमेडी फिल्म के तौर पर शुरू होकर बहुत जल्द थ्रिलर बन जाने वाली इस फिल्म से मुझे सचमुच बहुत उम्मीदें थीं। लग रहा था कि काफी दिनों से सूखे पड़े बाजार और नीरस मन को यह फिल्म तर कर देगी। लेकिन अफसोस, कि ऐसा नहीं हो पाया। फिल्म में काॅमेडी है लेकिन वह आप को ठहाके नहीं लगवा पाती। थ्रिल है लेकिन वह आपको चौंकाता कम और उलझाता ज्यादा है। वैसे भी इस किस्म की कहानी में वह नहीं होता जो आप देखना चाहते हैं, बल्कि वह होता है जो लेखक-निर्देशक आपको दिखाना चाहते हैं।

कहानी के पर्दे हटाए बिना भी कहूं तो इस किस्म की कहानियां पहले भी अपने यहां आती रही हैं। इसमें कुछ नया है तो वह है नाॅनसेंस किस्म वाली काॅमेडी जो कहीं-कहीं ही गुदगुदाती है वरना तो यह और बाकी भी बहुत कुछ ठूंसा हुआ-सा लगता है। लव का एंडबना चुके डायरेक्टर बंपी ने नैरेशन को जिस तरह से उलझाया है, वह खुलने पर आनंद कम और खीझ ज्यादा देता है। सोचिए, अगर दो घंटे से भी कम की फिल्म आपको पूरे वक्त बांध कर रखने की बजाय बार-बार उबासियां लेने पर मजबूर करे तो किस का कसूर है? ऊपर से इसका अंत ऐसा रखा गया है कि कल को इसके सीक्वेल बन सकें। बंपी भाई, पहले होमवर्क कर लेना वरना फिर से हम दर्शकों की क्लास लग जाएगी।

रितेश देशमुख इस किस्म के किरदार में खूब जंचते हैं और उन्होंने जम कर काम भी किया है। लेकिन अचानक से उनका किरदार हल्का पड़ जाता है। विवेक ओबराॅय को सख्त और रिया चक्रवर्ती को ग्लैमरस दिखना था, वे दिखे। गेंदा बने विक्रम थापा और गुलाब बने भुवन अरोड़ा का काम शानदार रहा। फिल्म में अगर सबसे उम्दा काम किसी का रहा तो वह हैं जुगनू बने साहिल वैद। हंपटी शर्मा की दुल्हनियाऔर बद्रीनाथ की दुल्हनियाके अपने किरदारों से हट कर वह अपने अभिनय की व्यापक रेंज दिखाते हैं। मेहमान रोल में बाबा सहगल को देखना भी अच्छा लगता है। फिल्म में गाने नहीं हैं। हालांकि एक आइटम नंबर डाला जाता तो थोड़ी राहत मिलती। कुल मिला कर मुस्कुराहट कम और कन्फ्यूज़न ज्यादा-यही है इस फिल्म का वादा।
अपनी रेटिंग-दो स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्मपत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज़ पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)
 

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