Saturday, 10 June 2017

रिव्यू-‘बहन होगी तेरी’... राॅम-काॅम सत्य है

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
मौहल्ले की लड़कियां बहनें होती हैं। इस सीख को बचपन से सुनने के बाद भी कब वे लड़कियां कुछ औरलगने लगती हैं और पड़ोसियों की मदद करते-करते कब वे करीब आने लगती हैं, पता ही नहीं चलता। लेकिन अब घरवालों का क्या करें, वे तो दोनों को बहन-भाई मानते हैं। लड़कियां तो पारिवारिक दबाव में किसी और के संग निकल लेती हैं और बेचारे लड़के टापते रह जाते हैं अबे, बहन होगी तेरीकहते हुए।

ऐसी ही एक लड़की है बिन्नी अरोड़ा (जो खुद को अरोरा कहती है। भई, जब स्क्रिप्ट रोमन में लिख कर दी जाएगी तो यही होगा) सामने वाले घर में रहता है गट्टू नौटियाल जो इसे बहन नहीं मानता। दोनों में इकरार भी हो जाता है लेकिन आड़े जाती है ढेर सारी कन्फ्यूजन और इनका दब्बूपना। और खैर, अंत में तो हीरोइन हीरो के ही संग जानी है।

अब कहने को यह राॅम-काॅम है यानी रोमांटिक काॅमेडी। लेकिन इसमें रोमांस की बात करें तो लड़का बचपन से ही लूज़र किस्म का है-पढ़ाई में कमजोर, निठल्ला, नाकारा। बस, लड़की को बचपन से प्यार करता है। उसकी इसी खूबीके दम पर दिमाग से पैदल यह लड़की उस पर मर मिटती है और वह भी फ्रांस से आए अमीर, संस्कारी, सुशील, स्मार्ट, सफल लड़के को छोड़ कर। हीरो अपना ऐसा है कि तो फिल्म के अंदर उसे कोई पसंद करता है और ही उसे दर्शकों की हमदर्दी मिलती है। अरे भैया, तो फिर क्यों उसे जबरन हीरो बनाने पर तुले हो? पहले उसके लिए एक ढंग का किरदार तो गढ़ लो। जब पर्दे पर लड़के-लड़की के बीच दही नहीं जम रही तो हम दर्शकों के दिमाग की दही करने पर क्यों तुले हो यार...? और यह क्या, लड़की पंजाबी, लड़का उत्तराखंडी, उसका दोस्त हरियाणवी, सबको मिला कर कहानी फिल्माई तो वो भी लखनऊ में। क्यों? क्योंकि यू.पी. सरकार खुस्स होगी, सब्सिडी देगी...?

और रही काॅमेडी की बात, तो उसका तो यूं है मौसी जी कि पता चलते ही आपको खबर कर देंगे। तब तक आप इस फिल्म के संवादों पर ताली की बजाय सिर पीट सकते हैं।

लिखने वालों ने बड़े ही सलीके के साथ इस फिल्म की पटकथा का चीरहरण किया है। जहां बोलना चाहिए वहां संवाद नहीं निकल रहे, जहां नहीं बोलना चाहिए वहां चपर-चपर, चपर-चपर...! और भैये, रिसर्च नाम की कोई चीज होती है, सुने हो कभी। आपके पात्र कहीं भी किसी भी टोन में बोल देंगे, क्यों? लखनऊ की नफासत मत दिखाइए, कम से कम वहां की जुबान का टच तो दीजिए। नौटियाल गढ़वाली होते हैं तो उनके संवादों से महसूस तो करवाइए। पंजाबी में शादी के मौके पर गाए जाने वाले ढेरों मशहूर लोकगीत हैं लेकिन नहीं, आप अरोड़ा परिवार की शादी में बन्नो...गवाएंगे। पहली बार निर्देशक बन कर आए अजय पन्नालाल को अभी खुद को काफी साधना होगा।

राजकुमार राव हकलाते-घबराते-शर्माते अच्छे लगते हैं लेकिन हर वक्त, हर सीन ऐसे एक्सप्रेशन नहीं मांगता, यह उन्हें समझना होगा। कुछ एक जगह तो वह फैल ही गए। उनके दोस्त भूरा के किरदार में हैरी टांगरी और बिन्नी से शादी करने आए राहुल के रोल में गौतम गुलाटी ने अच्छा काम किया। और रही बिन्नी रानी यानी श्रुति हासन की बात, तो उन्हें सचमुच किसी एन.आर.आई. से शादी करके विदेश चले जाना चाहिए। भारतीय दर्शकों पर अहसान होगा।
अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्मपत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज़ पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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