Friday 9 June 2017

रिव्यू-कुछ भी नहीं है यह ‘राब्ता’

-दीपक दुआ... (Featured in IMDb Critics Reviews)
पंजाब से हंगरी नौकरी करने गए एक लड़के को नौकरी से ज्यादा छोकरियों में दिलचस्पी है। इस बंदे को वहां भी एक हिन्दुस्तानी लड़की मिल जाती है। लेकिन इससे पहले कि इनकी कहानी आगे बढ़े, एक और बंदा बीच में जाता है और साथ ही जाता है इन तीनों के पिछले जन्म का एक अनोखा किस्सा।

बेशक यह कहानी दिलचस्प है। आठ सौ साल पहले एक धूमकेतु धरती के करीब से गुजरा था तो प्यार और तकरार की एक कहानी घटी थी। आठ सौ साल बाद जब वही धूमकेतु फिर धरती के करीब आता है तो उसी अधूरी कहानी के किरदार फिर मिलते हैं और उस कहानी को पूरा करते हैं।

दिनेश विजन बतौर निर्माता बीईंग सायरस’, ‘लव आजकल’, ‘कॉकटेल’, ‘एजेंट विनोद’, ‘हिन्दी मीडियमजैसी फिल्में बना चुके हैं और माना जा सकता है कि दर्शकों के मिजाज को भांपने में वह माहिर हो चुके होंगे इसीलिए उन्होंने खुद निर्देशक बन कर यह फिल्म बनाने का इरादा किया। लेकिन इरादा करने और उस इरादे को पूरा करने में जो फर्क होता है, वह इस फिल्म को देखते हुए साफ महसूस होता है जहां पहले हिस्से में घटनाएं कम घटती हैं और बकबक ज्यादा होती है। इस बकबक को पार्कों, खंडहरों, थिएटरों के कोनों में एक-दूसरे से चिपक कर बैठने वाले जोड़े शायद पसंद कर लें। फिर दूसरे हिस्से में घटनाएं तेजी से घटती हैं लेकिन उन्हें लेखक का सपोर्ट नहीं मिल पाता। कई बार ऐसा महसूस होता है कि दिनेश ने एडिटरों को भी खुल कर काम नहीं करने दिया वरना यह फिल्म दो घंटे 35 मिनट लंबी होती।

अब हमारी हिन्दी फिल्मों में नायक-नायिका को मुलाकात के पहले ही दिन किस्स करते और दूसरे दिन बिस्तर पर पाया जा सकता है। दुनिया का कोई भी देश हो, इन्हें हिन्दी बोलने वाले लोग हर जगह मिल जाते हैं और एक हम हैं कि हाय हिन्दी का रोना रोते रहते हैं। आठ सौ साल पहले ये लोग किस जगह, किस देश, किस सभ्यता में लड़-मर रहे थे, फिल्म बनाने वाले आपको बताना जरूरी नहीं समझते। जरूरी तो वे खैर यह भी नहीं समझते कि इस जन्म के तीन प्रमुख किरदारों में से दो के आगे-पीछे कौन है, वे कहां से आए वगैरह-वगैरह। और अगर यह फिल्म देखते समय आपको मगधीरायाद आए तो हमारी बला से। जब निर्देशक ने परवाह नहीं की तो हम क्यों करें?

सुशांत सिंह राजपूत जंचते हैं। हालांकि वह बहुत बार ओवर हो जाते हैं। कृति सैनन सुंदर लगती हैं लेकिन अभिनय के मामले में वह औसत ही दिखती हैं। जिम सरभ कुछ एक जगह असर छोड़ते हैं। वरुण शर्मा को कायदे का किरदार ही नहीं मिला। दरअसल किरदार खड़े करने में तो लेखक बुरी तरह से चूके हैं। राजकुमार राव को ऐसा रोल दिया कि कोई पहचान ही पाए। संगीत अच्छा है। एक गीत में दीपिका पादुकोण भी दिखी हैं। फिल्म बुरी तरह से बोर करती है और दर्शकों से कोई राब्ता जोड़ पाने में नाकाम रह जाती है।
अपनी रेटिंग-डेढ़ स्टार
(दीपक दुआ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्मपत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज़ पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखने वाले दीपक रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।)

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